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इतिहास में ‘वास्को द गामा’ की, भारत के लिए नए व्यापारिक मार्ग की खोज, इतनी महत्वपूर्ण क्यों थी

Vasco Da Gama’s Visit To India: इतिहास में 8 जुलाई का दिन ऐतिहासिक रूप से अत्यंत महत्वपूर्ण है, क्योंकि इसी दिन पुर्तगाली नाविक वास्को डी गामा, भारत तक पहुंचने के लिए नए मार्ग की खोज के लिए निकला था। वास्को द गामा की समुद्री यात्रा केवल एक मार्ग की खोज नहीं थी, बल्कि विश्व इतिहास में यह एक ऐतिहासिक मोड़ था, जिसने भारत के दरवाज़े यूरोपीय शक्तियों के लिए खोल दिए। इस यात्रा ने व्यापार, संस्कृति और राजनीति तीनों क्षेत्रों को प्रभावित किया। यह एक ऐसी यात्रा थी जिसने न केवल समुद्र के नक्शे बदले, बल्कि आने वाले समय में इतिहास की दिशा भी बदल दी थी।

वास्को द गामा भारत क्यों आना चाहता था

15वीं शताब्दी के अंत तक यूरोप के व्यापारी भारत की अपार संपदा, विशेष रूप से मसालों, रेशम और कीमती पत्थरों तक सीधा पहुँच बनाना चाहते थे। क्योंकि भारतीय मसालों और वस्त्रों की यूरोप के बाजारों में अत्यधिक मांग थी। दिक्कत यह थी ज़मीनी मार्गों पर ऑटोमन तुर्क शासकों का नियंत्रण था, जिसके कारण यूरोपीय व्यापारियों को भारी शुल्क चुकाना पड़ता था। इसी परिस्थिति में पुर्तगाल ने एक समुद्री मार्ग की खोज शुरू की, और इस ऐतिहासिक प्रयास का नायक बना वास्को द गामा।

वास्को द गामा कौन था

वास्को द गामा पुर्तगाल का एक प्रसिद्ध नाविक और खोजकर्ता था। उसका जन्म लगभग 1460 ई. में सिनेस, पुर्तगाल में हुआ था। वह पुर्तगाली राजा मैन्युअल प्रथम के आदेश पर भारत के लिए समुद्री मार्ग की खोज करने निकला था। और उसने भारी संघर्षों के बाद, यह कठिन कार्य कर भी लिया। जिसके कारण यूरोप को भारत तक पहुँचने के लिए एक नया समुद्री मार्ग मिला। उसने तीन बार भारत की यात्रा की थी। वह 1502 में दोबारा भारत की यात्रा की। 1524 में वह तीसरी बार भारत आया और कोच्चि में उसकी मृत्यु हो गई। लेकिन उसकी इन यात्राओं ने भारत और यूरोप के इतिहास को हमेशा के लिए बदल दिया।

ऐतिहासिक यात्रा की शुरुआत

वास्को द गामा, राजा के आदेश के बाद 8 जुलाई 1497 को पुर्तगाल के लिस्बन बंदरगाह से, 4 जहाजों के दल और लगभग 170 साथियों के साथ भारत यात्रा पर चला। इस यात्रा में मुख्य जहाज़ साओ गैब्रिएल था। वास्को द गामा का दल अटलांटिक महासागर पार करके अफ्रीका के पश्चिमी तट की ओर गया। वे केनरी द्वीप, केप वर्डे द्वीप, सेंट हेलेना खाड़ी और अंत में केप ऑफ गुड होप अर्थात दक्षिण अफ्रीका पहुँचे।

अफ्रीका से भारत की यात्रा

वास्को द गामा, अपने दल के साथ, अफ्रीका के पूर्वी तट से गुजरते हुए मोज़ाम्बिक, मोंबासा और मलिंदी पहुँचा। यात्रा के दौरान ही मोज़ाम्बिक के राजा ने उसकी मदद भी की थी। आगे एक अरबी नाविक को साथ लेकर हिंद महासागर पार करते हुए, वह 20 मई 1498 को वे भारत के पश्चिमी तट पर कालीकट पहुँचा। हालांकि कुछ भारतीय इतिहासकारों का मत है, वह एक गुजराती व्यापारी का पीछा करते हुए भारतीय तटों तक पहुँचा था। जहां पुर्तगाल से चलते समय उसके साथ 170 लोग थे, वहीं भारत पहुंचते-पहुंचते उसके दल में केवल 55 लोग ही बचे थे।

भारत में वास्को द गामा

भारत के कालीकट पहुँचने के बाद, उसने वहाँ के राजा “जमोरिन” से मुलाकात की। वास्को द गामा ने मसालों और अन्य व्यापारिक वस्तुओं के व्यापार को करने की माँग की, लेकिन स्थानीय व्यापारियों और अरब व्यापारियों से उसे विरोध का सामना करना पड़ा। फिर भी 1499 में वह बहुत सारे मसाले लेकर पुर्तगाल लौटा।

वास्को द गामा की भारत यात्रा का महत्व

यह पहली बार था जब यूरोप से भारत तक सीधी समुद्री व्यापारिक मार्ग स्थापित हुआ। इससे पुर्तगाल को यूरोप में मसालों के व्यापार में वर्चस्व मिला। यह यात्रा औपनिवेशिक युग की शुरुआत मानी जाती है, जिसमें बाद भारतीय उपमहाद्वीप और हिन्द महासागर के क्षेत्र में डच, फ्रांसीसी और अंग्रेज भी आए। कालांतर में अंग्रेज भारतीय उपमहाद्वीप पर अपना वर्चस्व स्थापित करने में सफल रहे।

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