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वसंत देसाई, जिन्होंने अभिनय से संगीत की तरफ रुख किया

Vasant Desai’s Birth Anniversary | न्याज़िया बेगम: रागों का ज्ञाता होना और फिर उन रागों को फिल्म संगीत में ढालना आसान काम नहीं है। और खासकर उस वक्त जब हमारे पास ज़्यादा साधन भी मौजूद नहीं थे, किसी भी विषय को समझने के लिए साधना ही एकमात्र विकल्प था। ऐसे में कुछ अनुपम गीत हमें फिल्म संगीत में सुनने मिलते हैं, जिन्हें गढ़ना बेहद मुश्किल था। ऐसा ही एक गीत हमें याद आ रहा है फिल्म- झनक झनक पायल बाजे से, जिसकी तर्ज़ राग मालगुंजी में ढली है। जी हां ये गीत है- नैन सो नैन नाहीं मिलाओ गुइयां…।

लता मंगेशकर और हेमंत कुमार के गाए इस गीत को लिखा हसरत जयपुरी ने, और संगीतबद्ध किया है वसंत देसाई ने, ये एक ऐसी फिल्म थी। जिसका हर गीत संगीत के पारखियों के लिए अनमोल है, इसी तरह आपके संगीत निर्देशन में आई फिल्म गूंज उठी शहनाई का हर गीत चुनिंदा सुर लहरियों से सजा था। और हां फिल्म गुड्डी के लिए गुलज़ार का लिखा गीत हम कैसे भूल सकते हैं ‘बोले रे पपीहरा….’ जो न केवल शास्त्रीय धुन पर आधारित था बल्कि वाणी जैराम का भी फिल्मों के लिए गाया गया पहला गीत था।

यादगार फिल्मों में दिया संगीत

आपके संगीत निर्देशन में कुछ और बेमिसाल गीत हमें मिले। जिन्होंने स्वयं अपना इतिहास रच दिया। जैसे- जब फिल्म ‘दो आंखे बारह हांथ’ का गीत, ऐ मालिक तेरे बंदे हम…. , आया तो कई स्कूलों में इसे बतौर प्रार्थना शामिल किया गया। ये गीत निकला था भरत व्यास की कलम से, हालांकि गीतकार और संगीतकार की इस जोड़ी ने हमें और भी कई ऐसे गीत दिए, जैसे गीत के ज़रिए निर्बल और बलवान की कहानी भी हममें आत्मविश्वास पैदा करती है। ये गीत था- ये कहानी है दिए की और तूफान की। ऐसे ही अपने संगीत की रौ में बहा ले जाने वाले कई बेमिसाल नगमें वसंत देसाई ने हिंदी और मराठी फिल्मों में संजोए।

अभिनय से की शुरुआत

9 जून 1912 को सावंतवाड़ी राज्य के सोनवाडे गांव में जन्मे और सिंधुदुर्ग जिले के कुडाल क्षेत्र में पले-बढ़े, वसंत बचपन से ही गीत संगीत में रुचि रखते थे। इसलिए वो सन 1930 को प्रभात फिल्म्स से जुड़े और उनकी मूक फिल्म’ खूनी खंजर ‘ से शुरुआत करने के बाद’ धर्मात्मा ‘ और ‘ संत ज्ञानेश्वर ‘ जैसी फिल्मों में भी अभिनय किया। गीत गाए और कभी-कभी गीतों की रचना भी की, फिर अयोध्या का राजा फिल्म में गोविंद राव टेंडे के संगीत सहायक के रूप में काम करते हुए, गीत’ जय जय राजाधिराज’ गाया।

बाद में रखा संगीत क्षेत्र में कदम

गायन में उनकी ये पहल ही थी पर गीत सबको पसंद आए और जल्द ही 1934 में आई फिल्म अमृत मंथन में उनका गया गीत ‘बर्सन लगी बुंदिया’ काफी लोकप्रिय हुआ। पर शायद वसंत उतने खुश नहीं थे और इसलिए अपने ज्ञान को और बढ़ाने का फैसला करते हुए, वो उस्ताद आलम खां और उस्ताद इनायत खान से संगीत की शिक्षा लेने लगे। पर इस दौरान मराठी फिल्मों में संगीत देते रहे, फिर 1942 की हिंदी फिल्म ‘ शोभा’ में संगीत दिया। जिसे उतनी सफलता नहीं मिली, पर वी शांताराम ने उनपर भरोसा किया और अपनी फिल्म ‘शकुंतला’ के लिए उन्हें बतौर संगीतकार चुन लिया गया। बस फिर क्या था, वसंत देसाई उनके भरोसे पर खरे उतरे और फिल्म ने संगीत के दम पर सफलता के नए आयाम तो तय किए ही। इस तरह वसंत, वी शांताराम के पसंदीदा संगीतकार भी बन गए।

बैकग्राउंड म्यूजिक का कमाल

1964 में आई फिल्म ‘यादें’ भी आपके करियर की अहम फिल्म मानी जाती है। क्योंकि इसका पार्श्व संगीत अपने आप में अनूठा और बेमिसाल है। और शायद इसी फिल्म की वजह से सन 1974 में गुलज़ार ने अपनी बिना गानों की फिल्म ‘अचानक’ उन्हें दी, जिसके बैकग्राउंड म्यूजिक ने भी पहले जैसा कमाल कर दिया।

शास्त्रीय संगीत के महारथी थे वसंत देसाई

आपने मराठी गीतों को भी अपने मधुर संगीत से यादगार बनाया। तो वहीं मैत्रीम भजन जो कांची मठ के संत जगद्गुरु श्री चंद्रशेखरेंद्र सरस्वती द्वारा संस्कृत में रचित एक आशीर्वाद गीत था। उसे आपने रागमालिका में पिरोया, इसे 23 अक्टूबर 1966 को संयुक्त राष्ट्र दिवस के अवसर पर भारत रत्न श्रीमती एमएस सुब्बुलक्ष्मी द्वारा संयुक्त राष्ट्र में गाया गया था।

रिकार्डिंग से लौटते वक्त हुई दुखद मृत्यु

संगीत के प्रति ये समर्पण निरंतर जारी था कि 22 दिसंबर को वो पूरे दिन की रिकॉर्डिंग करने के बाद लौटते हुए जब अपने घर की लिफ्ट में पहुंचे तो तकनीकी खराबी की वजह से लिफ्ट उनपर गिर गई और इस हादसे ने उन्हें हमसे छीन लिया। संगीत जगत से एक बेेश कीमती नगीना खो गया पर हमारे लिए जो खज़ाना वो छोड़ गए हैं उसकी चमक हमेशा नए संगीतकारों को रास्ता दिखाएगी।

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