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वाणी जयराम जो गुड्डी फिल्म में बनीं जया बच्चन की आवाज

न्याज़िया बेगम / साउथ इंडियन सिनेमा की एक प्ले बैक सिंगर को, ऋषिकेश मुखर्जी ने अपनी 1971 की फिल्म गुड्डी में गाने का मौका दिया, यूँ तो फिल्म में उन्हें तीन गाने मिले, लेकिन एक गीत जिसके बोल थे “बोले रे पपीहारा”, जो मियां की मल्हार राग में निबद्ध था इसने उनकी शास्त्रीय प्रतिभा को प्रदर्शित किया और इस गाने के लिए उन्हें तानसेन सम्मान से भी नवाज़ा गया, कई और सम्मान व पुरस्कार भी मिले और इस गीत ने लोकप्रियता की जो ऊंची उड़ान भरी, उससे हिंदी फिल्म संगीत में भी बतौर गायिका उनका नाम जुड़ गया। जी हां ये थीं वाणी जयराम, जो इसके बाद 1970 से 1990 के दशक के अंत तक भारत भर के कई संगीतकारों की पसंद रहीं। हिन्दी ही नहीं, उन्होंने कई भारतीय भाषाओं जैसे तेलुगू, तमिल, मलयालम, कन्नड़, मराठी, ओड़िया, गुजराती और बंगाली भाषाओं में भी गीत गाए।
पंडित रविशंकर द्वारा रचित मीरा के गीत “मेरे तो गिरधर गोपाल” के लिए, उन्हें सर्वश्रेष्ठ पार्श्व गायिका का पहला फिल्मफेयर पुरस्कार मिला, उन्होंने इस फिल्म के लिए 12 से अधिक भजन रिकॉर्ड किए जो बेहद लोकप्रिय हुए और तब से उन्हें आधुनिक भारत की मीरा भी कही जाने लगा।
पर उनका फिल्म संगीत में पदार्पण कैसे हुआ? तो हम आपको बता दें कि 30 नवंबर 1945 को तमिलनाडु के वेल्लोर में संगीतकारों के एक ब्राह्मण परिवार में जन्मीं वाणी का असली नाम कलाइवाणी था, उन्हें बचपन से ही घर में ही संगीत सीखने को मिला था, पर बाद में उन्होंने कदलूर श्रीनिवास अयंगर, टीआर बालासुब्रमण्यम और आर एस मणि के मार्गदर्शन में औपचारिक कर्नाटक संगीत का प्रशिक्षण लिया। वाणी छोटी थीं जब से रेडियो सीलोन चैनल से चिपकी रहती थीं, फिल्मी गानें उन्हें इतना आकर्षित करते थे कि वो गानों के पूरे ऑर्केस्ट्रेशन को याद करती थीं और उन्हें दोहराती रहती थीं।
उनका पहला रिलीज़ गाना टीएम साउंडराजन के साथ 1973 की फिल्म वीट्टुक्कु वंधा मारुमगल के लिए एक युगल रोमांटिक गीत था, गीत “ओर इदम उन्नीदम” की रचना शंकर-गणेश की जोड़ी ने की थी, जिनके साथ बाद के वर्षों में वाणी जी ने तमिल सिनेमा में अधिकतम गाने रिकॉर्ड किए। वाणी जी ने जब 1969 में जयराम जी से शादी की तब जयराम जी ने उनके गायन कौशल को जानते हुए, उन्हें हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत सीखने के लिए राजी़ किया और वाणी ने पटियाला घराने के उस्ताद अब्दुल रहमान खान के अधीन प्रशिक्षण लिया, उस वक्त वो बैंक में नौकरी भी करती थीं उनके ससुराल के घर परिवार में भी संगीत को बड़ा पसंद किया जाता था।


अपने हुनर में निखार लाते हुए, संगीत की रौ में वो बह निकलीं और उन्हें एहसास हुआ कि सुर साज़ और आवाज़ ही उन्हें सच्चा सुख दे प रहा है, उनके लिए भाषा मायने नहीं रखती क्योंकि संगीत एक ही है, और तब वह नौकरी छोड़कर पूरी तरह से संगीत के प्रति समर्पित हो गईं। उन्होंने खान साहब से ठुमरी, ग़ज़ल और भजन जैसे विभिन्न गायन रूपों की बारीकियाँ सीखीं और 1969 में ही उन्होंने अपनी पहली स्टेज परफार्मेंस दी, उसी साल उनकी मुलाकात संगीतकार वसंत देसाई से हुई, जो गायक कुमार गंधर्व के साथ एक मराठी एल्बम रिकॉर्ड कर रहे थे उन्होंने वाणी जी को भी सुना, और आवाज़ सुनने के बाद, देसाई ने उन्हें कुमार गंधर्व के साथ उसी एल्बम के लिए “रुणानुबंधाचा” गीत गाने के लिए चुना इसके बाद ही वो हिंदी फिल्म गुड्डी के गीतों के लिए चुनी गईं।

साल 1975 वाणी के लिए सबसे महत्वपूर्ण वर्ष रहा, क्योंकि उन्होंने फिल्म अपूर्वा रागंगल में गाए गए गीतों के लिए सर्वश्रेष्ठ महिला पार्श्व गायिका का अपना पहला राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार जीता। “एझु स्वरंगलुकुल” और “केल्वियिन नायगाने” गीतों ने उनकी लोकप्रियता को ऊंचाइयों पर पहुंचा दिया और वो एक ऐसी गायिका के रूप में जानी जाने लगीं, जिन्हें हमेशा मुश्किल गाने, गाने के लिए चुना जाता था। 1979 में उन्हें फ़िल्म मिली, मीरा जिसमें वरिष्ठ गायक अग्र चरण पंडित दिनकर कैकिनी के साथ उन्होंने गीत गाए। के. विश्वनाथ की 1979 में आई संगीतमय फिल्म शंकरभरणम के लिए वाणी ने पांच गाने गाकर अपना दूसरा राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार जीत लिया, इन्हीं गानों के लिए उन्हें आंध्र प्रदेश सरकार के सर्वश्रेष्ठ महिला पार्श्व गायिका के नंदी पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया।
1991 में उन्हें तेलुगु गीत – “अनाथिनीयारा हारा” ( स्वाति किरणम ) में सर्वश्रेष्ठ महिला पार्श्व गायिका का तीसरा राष्ट्रीय पुरस्कार मिला, इसके अलावा ओडिशा, आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु और गुजरात राज्यों से राज्य सरकार के पुरस्कार भी आपके नाम हैं उन्हें दक्षिण भारतीय फिल्म संगीत में उनकी उपलब्धियों के लिए फिल्मफेयर लाइफटाइम अचीवमेंट अवार्ड – साउथ से सम्मानित किया गया। उनके कुछ और उम्दा गीत हम आपको याद दिलाएं तो फिल्म पाकीज़ा में उनका एक शास्त्रीय गीत था और आईना में आशा भोंसले के साथ एक युगल गीत था, आर. डी. बर्मन के संगीत निर्देशन में उन्होंने फिल्म छलिया में मुकेश के साथ एक युगल गीत गाया था, फिल्म परिणय में मन्ना डे के साथ एक युगल और सोलहवाँ सावन में एक एकल गीत गाया, गीत हमको मन की शक्ति देना, मन विजय करें तो आज भी कई स्कूलों में प्रार्थना के रूप में गाया जाता है ये सभी गीत आप सुन सकते हैं और उनके सुरों की परवाज़ का अंदाज़ा लगा सकते हैं।
वाणी का करियर 1971 में शुरू हुआ और पाँच दशकों से ज़्यादा समय तक चला। उन्होंने एक हज़ार से ज़्यादा भारतीय फ़िल्मों में पार्श्वगायन किया और 20,000 से ज़्यादा गाने रिकॉर्ड किए, जिनमें उन्होंने हज़ारों भक्ति गीत और प्राइवेट एल्बम रिकॉर्ड किए और भारत और विदेशों में भी कई कार्यक्रम प्रस्तुत किए, वाणी “संगीत पीत सम्मान” से सम्मानित होने वाली सबसे कम उम्र की कलाकार थीं।
राष्ट्रीय पुरस्कार विजेता दिग्गज पार्श्व गायिका वाणी जयराम को 2023 में, तीसरे सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार पद्म भूषण पुरस्कार से सम्मानित किया गया था, लेकिन इसी साल 4 फरवरी 2023 को अचानक ऐसी खबर आई जिसने संगीत प्रेमियों को झकझोर के रख दिया 77 साल की वाणी जयराम अपने घर में मृत पाई गईं। उनके माथे पर चोट के निशान थे।
ये क्यों हुआ? कैसे हुआ? ये तो पता नहीं लेकिन वो अपने गाए गीतों के ज़रिए हमेशा जावेदा रहेंगी।

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