पद्म श्री बाबूलाल दाहिया जी के संग्रहालय में संग्रहीत उपकरणों एवं बर्तनों की जानकारी की श्रृंखला में ,आज हम आपके लिए लेकर आए हैं, कृषि आश्रित समाज में बाँस शिल्पियों द्वारा बनाए गए उपयोगी बर्तन एवं वस्तुएं। कल हमने बाँस शिल्पियों द्वारा निर्मित कई वस्तुओं की जान कारी दीथी।आज उसी श्रंखला में अन्य वस्तुओं की जानकारी भी दे रहे हैं।
छिटवा
छिटबा दो तरह के होते हैं। एक तो तीजा को भगवान शिव के पूजा में जो फुलहरा बनता है उसमे उपयोग होता है। वह बांस के बने सपाट गोल आकार के छिटवा में ही फूलों को गूथ कर सजाया जाता है। पर दूसरा डबरे पोखरों में उगी जंगली पसही नामक धान के दाने को एकत्र करने के लिए। उस छिटबा को बालियों में मार कर पकी हुई धान को टोकरों में एकत्र किया जाताहै । परन्तु यह छिटवा अन्दर की ओर कुछ झुका और अधिक बड़ा होता हैं। हाथ में लेकर धान के दाने टोकने में झाड़ने के लिए इसमें लगभग डेढ़ हाथ लम्बी बाँस की एक लाठी का टुकड़ा भी लगा रहता है। पर अब यह चलन से बाहर होता जा रहा है।
जबारे बोने की जलहरी
यह एक ढाई तीन हाथ की लाठी में बीच- बीच में कुछ खपच्चियाँ निकाल तीन टोकनी बुन दी जातीं हैं जिसमें मिट्टी खाद डालकर जबारे बोए जाते हैं। जबारे सिराते समय जब महिलाएं कलस में बोया जबरा सिर में लेकर चलती हैं तब एक पुरुष लाठी की टोकनी में बोए इस जबारे को भी हाथ में लेकर चलता है।
बेलहरा
बेलहरा में हरे पान के पत्ते रखे जाते हैं। इसमें यदि पान के पत्तों को कपड़े में लपेट कर रख दिया जाय तो वह 15 -20 दिनों तक खराब नही होते। बल्कि और कड़क एवं जायकेदार हो जाते हैं।
ढोलिया
यह बाँस का एक ऐसा उपकरण है जिससे गेहूं चने आदि की बुबाई की जाती है। इसे बाँस शिल्पी सँकरी गहरी टोकरी नुमा बनाते हैं जिसमें सुतली अथबा चमड़े की पट्टी लगा दी जाती है। उस पट्टिका के लग जाने से कांधे में टांग कर चलने में सहूलियत हो जाती है।
छोपा
यह बाँस की खपच्चियों से बना मछली पकड़ने का एक उपकरण होता है जो खेतों के उथले पानी में चल रही मछलियों के पकड़ने के काम आता है। उसे ऊपर पतला ओर नीचे खोखा नुमा चौड़ा बनाया जाता है।पर अब चलन से बाहर है।
गेलरा
यह बाँस की एक इंच चौड़ी पतली खपच्चियाँ बनाकर बुना हुआ टोकने की तरह का एक बर्तन है। इसे कमरी से जोड़ उसमें भर कर सामग्री लेजाई जाती है। इसका आदिवासी बाहुल्य क्षेत्रों में काफी उपयोग है।
खोम्हरी
यह बांस की खपच्चियों एवं पलास के पत्तों से बना एक टोप होता है जो खेतों में काम करते समय किसान एवं श्रमिक लोग पानी अथबा धूप से बचने के लिए लगाते थे। पर अब चलन से बाहर है।
झारा
प्राचीन समय में जब आज जैसे ट्रे-तश्तरी नही हुआ करते थे तब बांस शिल्पियों ने लगभग एक हाथ लम्बा चौड़ा गोलाकार एक ट्रे बना दिया था जो झारा कहलाता था एवं तश्तरी के स्थान पर काम में आता था। उस समय किसानों और मध्यम आय के परिवारों में नाश्ते में फूली हुई चनेकी दाल ही नाश्ते में दी जाती थी जो इसी झारे में दाल भरे दोने रखकर ही परोसी जाती थी।
आज के लिए बस इतना ही कल फिर मिलेंगे, इस श्रृंखला में नई जानकारी के साथ।