UP Politics : उत्तर प्रदेश में एक समय था जब मायावती (Mayawati) की बहुजन समाज पार्टी (BSP) प्रदेश की सबसे मजबूत पार्टी हुआ करती थी। लेकिन आज बसपा खत्म होने की देहलीज पर खड़ी है। पार्टी की मुश्किलें खत्म होने का नाम नहीं ले रही हैं। यूपी की सत्ता पर चार बार काबिज रहने वाली मायावती की पार्टी अब बहुत खराब दौर में पहुंच गई है। साल 2026 के अंत तक बसपा का संसद में कोई सदस्य नहीं रहेगा। क्योंकि बसपा का आखिरी सांसद रामजी गौतम रिटायर (Ramji Gautam Retirement) होने जा रहें हैं।
2026 से संसद में नहीं सुनाई देगी बसपा की आवाज
वर्तमान में बसपा (Bahujan Samaj Party) के पास सिर्फ एक ही सांसद है। राज्यसभा में बसपा के सांसद रामजी गौतम ही एकमात्र सांसद हैं। रामजी गौतम नवंबर 2026 में रिटायर होने जा रहें हैं। जिसके बाद संसद में बसपा का कोई प्रतिनिधि नहीं बचेगा। यह पहली बार होगा जब 36 साल से चली आ रही बसपा की आवाज संसद में कभी नहीं सुनाई देगी।
विधानसभा में बसपा के पास सिर्फ एक विधायक
बसपा का गठन 1984 में हुआ था। 1989 में पहली बार उसे बड़ी सफलता मिली, जब तीन बसपा सांसद लोकसभा में चुने गए। तब से लेकर अब तक, चाहे सरकार में हो या विपक्ष में, बसपा का संसद में प्रतिनिधित्व रहा है। 2014 में लोकसभा में बसपा को कोई सीट नहीं मिली, लेकिन फिर भी उसके कुछ सदस्य राज्यसभा में बने रहे। मायावती खुद 1994 से राज्यसभा की सदस्य हैं। लेकिन अब ये सिलसिला टूटने वाला है। उत्तर प्रदेश की विधानसभा में बसपा के पास सिर्फ एक विधायक है। विधानसभा की 403 सीटों में से बसपा के पास इतना भी समर्थन नहीं है कि वह अपने उम्मीदवार को जितवा सके। पार्टी पहले ही विधान परिषद से बाहर हो चुकी है।
खतरे में है बसपा का ‘राष्ट्रीय पार्टी’ का दर्जा
बसपा का ‘राष्ट्रीय पार्टी’ का दर्जा भी खतरे में है। 2024 के लोकसभा चुनाव में पार्टी का वोट शेयर केवल 2.04 प्रतिशत रह गया है। चुनाव आयोग के नियमों के मुताबिक, राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा बनाए रखने के लिए जरूरी है कि पार्टी कुछ मानकों को पूरा करे, जो अब बसपा के लिए आसान नहीं है। अगर यह दर्जा चला गया, तो यह पार्टी के लिए बड़ा झटका होगा।
2027 के विधानसभा चुनाव से है बसपा को उम्मीद
अब बसपा की आखिरी उम्मीद 2027 में होने वाले उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव पर टिकी है। अगर पार्टी कम से कम 40 सीटें जीत लेती है, तो वह 2029 में फिर से राज्यसभा में अपना सदस्य भेज पाएगी। मायावती नई रणनीतियों के साथ वापसी की कोशिश कर रही हैं, लेकिन रास्ता बहुत कठिन नजर आ रहा है।

