Operation Cactus: साल 1988 में ऑपरेशन कैक्टस के दौरान भारत की तीनों सेनाओं ने ही रोका था मालदीव का तख्तापलट। इस 2 दिन के ऑपरेशन के बाद 68 श्रीलंकाई लड़ाकों और सात मालदीव के लोगों को गिरफ्तार कर लिया गया था. उनसे पूछताछ की गई और मालदीव में उन पर मुकदमा चलाया गया. लुथुपी समेत चार को मौत की सजा सुनाई गई. जिसे बाद में तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी के कहने पर बदल दिया गया था.
मालदीव के राष्ट्रपति मोहम्मद मोइज्जू ने हाल ही में कहा कि भारत अपनी सेना को मालदीव से वापस बुला ले. कुछ दिनों से भारत और मालदीव के बीच पीएम मोदी के लक्षद्वीप दौरे को लेकर मालदीव सरकार के मंत्रियों द्वारा कई विवादित टिप्पणियां भी की गईं थी. लेकिन शायद मालदीव को ये नहीं भूलना चाहिए की ये वही भारत है जिसने कभी मालदीव का उस हालात में साथ दिया जब किसी ने नहीं दिया।
3 नवंबर साल 1988 को भारतीय विदेश मंत्रालय के फॉरेन सर्विस ऑफिसर रोनेन सेन के पास फोन आया. खबर थी कि मालदीव में विद्रोह की. लड़ाके सभी जगह बंदूक लेकर घूम रहे हैं. इन हालातों से बचने के लिए मालदीव के राष्ट्रपति मामून अब्दुल गय्यूम कहीं छिप गए हैं।
दरअसल श्रीलंका से उग्रवादी संगठन पीपुल्स लिबरेशन ऑर्गनाइजेशन ऑफ़ तमिल ईलम के उग्रवादियों को इस बात का इंतजार था कि गय्यूम 3 नवंबर को भारत जाने वाले हैं। उनके जाते ही मालदीव पर कब्जा करना है. दरअसल गय्यूम उस दिन भारत दौरे पर आने वाले थे, लेकिन तत्कालीन पीएम राजीव गांधी की व्यस्तता के चलते यह दौरा रद्द हो गया था. लेकिन उग्रवादियों ने अपना प्लान कैंसिल नहीं किया।
करीब 100 श्रीलंकाई पर्यटकों के वेश में मालदीव पहुंचे। दरअसल इस तख्तापलट की पूरी साजिश श्रीलंका में कारोबार करने वाले मालदीव के अब्दुल्लाह लुथुपी ने रची थी. उग्रवादियों ने एयरपोर्ट, बंदरगाह और सरकारी भवनों पर कब्जा कर लिया था. उन्होंने जल्द ही राजधानी माले की सरकारी इमारतों पर कब्जा कर लिया था. वे तुरंत गय्यूम तक पहुंचना चाह रहे थे. इसी बीच गय्यूम ने भारत समेत कई देशों को भी इमरजेंसी मैसेज भेजा भारत में कई चैनल्स के जरिए संदेश भेजे गए थे
मालदीव में विद्रोह होते ही फॉरेन सर्विस ऑफिसर रोनेन सेन ने PMO से भारत के तत्कालीन आर्मी चीफ जनरल वीएन शर्मा के आर्मी हाउस में फोन किया। उन्हें पूरे मामले की जानकारी दी गई. सेन ने बताया कि मालदीव में लड़ाकों ने कई मंत्रियों को अगवा कर लिया है. वहां के पर्यटन मंत्री ने सैटेलाइट फोन के माध्यम मदद मांगी है. सेन ने पूछा कि क्या आर्मी इस मामले में मदद कर सकती है? इसके बाद जनरल वीएन शर्मा ने कहा कि हम तुरंत इसके लिए काम शुरू कर रहे हैं. आप उस सैटेलाइट फोन के पास ही रहिएगा। हम इस मामले में ऑपरेशन रूम में प्रधानमंत्री से चर्चा करना चाहते हैं. इसी के साथ शुरुआत हुई ऑपरेशन कैक्टस की.
कई देशों ने मदद से किया था इनकार
मालदीव सरकार द्वारा कई देशों से इस हमले पर मदद मांगी गई. लेकिन उन्होंने मना कर दिया। इनमें से सिंगापुर और पाकिस्तान भी थे. वहीं अमेरिका और ब्रिटेन के लिए इतने काम समय में सहायता पहुंचाना बेहद मुश्किल था. इसी बीच तत्कालीन पीएम राजीव गांधी ने तुरंत एक्शन लेने के लिए हां कर दिया। उन्होंने इमरजेंसी मीटिंग बुलाई जिसमें तीनों सेना प्रमुख मौजूद थे. 3 नवंबर की दोपहर तक राजनीतिक मामलों के लिए बनी कैबिनेट कमेटी ने गय्यूम के लिए सैन्य मदद की इजाजत दे दी. आगरा में मौजूद पैरा ब्रिगेड को तुरंत ये मैसेज पहुंचाया गया.
इसके बाद 3 नवंबर की रात को शुरू हुआ. भारतीय वायुसेना के इल्यूशन IL-76 विमान ने पैराशूट रेजिमेंट की 6वीं बटालियन और 17वीं पैराशूट फील्ड रेजिमेंट सहित 50वीं इंडिपेंडेंट पैराशूट ब्रिगेड की टुकड़ियों को आगरा वायुसेना स्टेशन से एयरलिफ्ट किया। वायुसेना के पहुंचने से पहले भारतीय नौसेना के एयरक्राफ्ट मालदीव के ऊपर निगरानी का काम शुरू कर चुके थे. एयरक्राफ्ट ने वहां से हुलुले एयरस्ट्रिप की तस्वीरें भेजना शुरू कर दीं थी.
वायुसेना के जवानों ने 2 हजार किलोमीटर से ज्यादा की दूरी तय करते हुए मात्र नौ घंटे में माले इंटरनेशनल एयरपोर्ट पर उतरे। यही एक ऐसा एयरपोर्ट था जहां पर विद्रोहियों का कब्ज़ा नहीं हुआ था. ये एयरपोर्ट माले की सेना के कब्जे में था. इसके बाद भारतीय सेना ने राजधानी माले की और कूच कर दिया। इसी बीच भारत ने कोच्चि से भी सेना की टुकड़ी को मालदीव के लिए रवाना कर दिया। माले पर भारतीय वायुसेना के मिराज विमान उड़ान भर रहे थे. भारतीय सेना की मौजूदगी ने उग्रवादियों को हैरानी में डाल दिया।
जब उग्रवादी भागने लगे
भारतीय सेना माले में जा धमकी। उग्रवादियों को खदेड़ा जाने लगा. नतीजा ये हुआ कि श्रीलंका से आए उग्रवादी वापस भागने लगे. उन्होंने एक जहाज को अगवा कर लिया। अगवा जहाज को अमेरिकी नौसेना ने इंटरसेप्ट किया। इसकी जानकारी भारतीय नौसेना को दी गई. जिसके बाद गोदावरी से एक हेलीकॉप्टर ने उड़ान भरी. उसने अगवा जहाज पर भारत के मरीन कमांडो उतार दिए. कमांडोज को कार्रवाई में 19 लोग मारे गए.
68 श्रीलंकाई लड़ाके गिरफ्तार किए गए
इस ऑपरेशन में 68 श्रीलंकाई लड़ाकों और सात मालदीवियों को गिरफ्तार कर लिया गया था उनसे पूछताछ की गई और मालदीव में उन पर मुकदमा चलाया गया. लुथुपी सहित चार को मौत की सजा दी गई. जिसे बाद में भारत के प्रधानमंत्री राजीव गांधी के कहने पर बदल दिया गया था. यह अभियान 2 दिन तक चला, जिसके बाद बाद लुथुपी की कोशिशों को नाकाम कर दिया गया.