सबको भाता है उदित नारायण की गायकी का ख़ुशरंग अंदाज़

Udit Narayan Singing Style Happy Tone Image

Happy Birthday Udit Narayan: मधु भरी आवाज़ में मुस्कुराहट की मिठास लिए गाते हैं ,हर नायक की अदा में सध जाते हैं एक दिलकश अंदाज़ है उनका कुछ शायराना सा मिज़ाज है उनका, देसी-विदेशी सहित कई भाषाओं में गाते हैं जी हाँ उदित नारायण नाम है उनका वो संगीत जगत पर सितारे के मानिंद झिलमिलाते हैं।
चार राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार और पांच फिल्मफेयर पुरस्कार जीते हैं आपने , भारत सरकार ने उन्हें कला और संस्कृति में योगदान के लिए 2009 में पद्म श्री और 2016 में पद्म भूषण से सम्मानित किया और मध्य प्रदेश सरकार ने आपको लता मंगेशकर पुरस्कार भी दिया है।

मोहम्मद रफी के साथ डेब्यू किया था:-

उदित नारायण ने 1980 में ‘उन्नीस बीस’ फिल्म के लिए मोहम्मद रफी के साथ डेब्यू किया था ये गीत था – ‘मिल गया’ और इसी साल उन्हें किशोर कुमार के साथ भी गाने का मौका मिला।
लेकिन आपने अपनी पहचान बनाई 1988 की आमिर खान और जूही चावला अभिनीत फिल्म क़यामत से क़यामत तक में , जिसमें उनका गीत “पापा कहते हैं” के लिए ही उन्होंने अपना पहला फिल्मफेयर पुरस्कार जीता और बॉलीवुड प्लेबैक सिंगिंग में खुद को स्थापित किया।

तीन दशकों तक किये पुरस्कार अपने नाम :-

इसका साउंडट्रैक 1980 के दशक में सबसे ज़्यादा बिकने वाले एल्बमों में से एक बन गया ये आनंद-मिलिंद के करियर के लिए भी एक बड़ी सफलता थी , और म्यूज़िक कंपनी टी-सीरीज़ के लिए भी । उनके योगदान को मान्यता देते हुए, नेपाल के राजा बीरेंद्र बीर बिक्रम शाह देव ने उन्हें भारतीय सिनेमा और संगीत में योगदान के लिए 2001 में गोरखा दक्षिणा बाहू के आदेश से सम्मानित किया और भोजपुरी सिनेमा के लिए उनके योगदान के लिए ‘चित्रगुप्त सिनेयात्रा सम्मान’ 2015 से सम्मानित किया गया ,वो फिल्मफेयर पुरस्कारों के इतिहास में एकमात्र पुरुष गायक हैं जिन्होंने तीन दशकों (1980, 1990 और 2000 के दशक) में भी पुरस्कार जीते हैं।

माँ ने दिखाई गायकी की राह :-

तो आइए थोड़ा क़रीब से जान लेते हैं उदित नारायण जी को आपका जन्म 1 दिसंबर 1955 को मैथिल ब्राह्मण परिवार में नेपाली नागरिक हरेकृष्ण झा और भारतीय नागरिक भुवनेश्वरी झा के घर बिहार के सुपौल ज़िले के बैसी गांव में हुआ ।
उनके पिता हरेकृष्ण झा एक किसान थे और उनकी माँ भुवनेश्वरी देवी एक लोक गायिका थीं ,जिनकी वजह से ही उदित जी की दिलचस्पी गाने में हुई और उन्होंने सिंगिंग करियर को चुना।

होटलों में भी किया काम :-

उदित नारायण ने 1970 में रेडियो नेपाल के लिए बतौर मैथिली लोक गायक , अपना करियर शुरू किया। इस वक़्त उन्होंने मैथिली और नेपाली में ही ज़्यादा लोक गीत गाए जो बेहद लोकप्रिय हुए फिर धीरे-धीरे सब तरह के गीत गाने शुरू किये और आठ साल बाद, भारतीय विद्या भवन में शास्त्रीय संगीत का अध्ययन करने के लिए नेपाल में भारतीय दूतावास से संगीत छात्रवृत्ति पर बॉम्बे चले आए यहाँ आकर गुज़र बसर के लिए होटल में 100 रुपये महीने पर भी काम किया और फिर भारतीय विद्या भवन में संगीत की शिक्षा ली जिससे उनके सुर और पक्के हो गए।

आकाशवाणी गायक बनें :-

यहां हम आपको ये भी बताते चलें कि , उदित नारायण ने नेपाल में एक प्रोग्राम में मैथिली गाना गाया था जिसे सुनकर कुछ लोगों ने उन्हें रेडियो पर गाने की सलाह दी जिसके बाद 1971 से काठमांडू रेडियो पर आपने रेडियो पर गाना शुरू किया उनका पहला गीत था- ‘सुन-सुन-सुन पनभरनी गे तनी घुरीयो के ताक’ जिसे श्रोताओं ने खूब पसंद किया। आकाशवाणी में बतौर गायक काम करते हुए उन्होंने नेपाली फिल्म ‘सिंदूर’ से अपने करियर की शुरूआत की थी।

प्यार को था भरोसा :-

जब उदित जी ने हिंदी फिल्मों की तरफ रुख़ किया तो किसी ने उन पर ज़्यादा ग़ौर नहीं किया लेकिन नेपाल में उनसे मिली दीपा को उन पर इतना भरोसा था कि वो एक फिल्म में उदित जी को सिंगर लेने की शर्त पर अपना पैसा लगाने को भी तैयार थीं जी हाँ ये उदित नारायण और दीपा जी की लव स्टोरी की शुरुआत थी इसके बाद आप दोनों ने शादी कर ली और दीपा उनकी पत्नी बन गईं।

फिल्म फेयर के साथ राष्ट्रीय पुरस्कार भी जीते :-

80 के दशक में यूँ तो उदित जी ने कई गाने गाए लेकिन आमिर खान और जूही चावला अभिनीत फिल्म “क़यामत से क़यामत तक” का गाना “पापा कहते हैं बड़ा नाम करेगा” ने उनके पापा का कहना सच किया और उदित जी का नाम इतना बड़ा हो गया कि न केवल कई अवॉर्ड उन्होंने अपने नाम कर लिए बल्कि उन्हें हिंदी फिल्मों से ऑफर भी मिलने लगे। इसके बाद आपने, ‘दिलवाले दुल्हनिया ले जायेंगे ‘ फिल्म के गीत “मेहंदी लगा के रखना …”,’राजा हिन्दुस्तानी ‘ के गीत “परदेसी… ,” ‘हम दिल दे चुके सनम ‘के गीत “चाँद छुपा बादल में. ..” और ‘लगान ‘ के गीत मितवा …” के लिए फिल्म फेयर अवॉर्ड जीते। तो वहीं राष्ट्रीय पुरस्कार जीते ,”मितवा…”,”जाने क्यों लोग. ..”,” ज़िंदगी खूबसूरत है. …” और “ये तारा वो तारा …” गाने के लिए।

अभिनय के हुनर में भी हैं माहिर :-

1985 की नेपाली फिल्म ‘कुसुमे रुमाल’ में आपने अभिनय भी किया और सभी गाने भी गाए, जो नेपाली फिल्म उद्योग में ऑल टाइम क्लासिक्स में से एक है, जिसमें आपने भुवन केसी और त्रिप्ति नादकर के साथ अभिनय किया था और ये फिल्म बॉक्स ऑफिस की शीर्ष दस सूची में 25 सप्ताह तक रही और उस समय सबसे अधिक कमाई करने वाली नेपाली फिल्म बन गई।

अपना एक अलग स्टाइल बनाया :-

ये ऊपर वाले का तोहफा ही है उनके लिए कि अदाकारी भी कुदरती तौर पर उनके अंदर है जो उनकी गायकी में भी दिखती है,
यूं लगता है ऊंचे नीचे स्वरों में उनकी आवाज़ की मिठास मानो संगीत प्रेमियों के लिए गीत का सरमाया बन जाती है।
उदित नारायण ने अपने इस हुनर को बचपन में ही भाप लिया था शायद इसीलिए वो इसी दिशा में आगे बढ़ते रहे और अपनी इसी शिद्दत की वजह से वो फिल्म इंडस्ट्री में भी एक ऊंचे मक़ाम पर हैं। नेपाल में तो गायकी में उनका कोई सानी ही नहीं मानते हैं इसलिए किसी और सिंगर से उनकी तुलना ही नहीं की जाती हालांकि उनकी मातृभाषा मैथिली हैं।
उदित नारायण जी के बेटे आदित्य सिंगर ,होस्ट और एक्टर भी हैं।


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