EPISODE 66: पद्मश्री बाबूलाल दाहिया के संग्रहालय में संग्रहीत उपकरण एवं बर्तन

Padma Shri Babulal Dahiya

पद्म श्री बाबूलाल दाहिया जी के संग्रहालय में संग्रहीत उपकरणों एवं बर्तनों की जानकारी की श्रृंखला में आज हम आपके लिए लेकर आए हैं , कृषि आश्रित समाज में उपयोग वाले धातु के बर्तन एवं वस्तुएं। कल हमने पीतल की दौरी,पीतल का गगरा उसी की गुंड एवं कांसे के घड़े आदि धातु शिल्पियों के बनाए बर्तनों की जानकारी दी थी ।आज उसी श्रंखला में अन्य बर्तनों एवं वस्तुओं की जानकारी प्रस्तुत कर रहे हैं।

तांबे का लोटा

यह लोटा शुद्ध तांबे का बना होता है जिसमें देवताओं को स्नान कराया जाता है। कुछ लोग रात्रि में इस लोटे में भर का पानी रख देते हैं और फिर सुबह उसे ही पीते हैं। उनका कथन है कि यह जल स्वास्थ के लिए उत्तम होता है।

गंगा जली

एक छोटे आकार का लोटे की तरह का बर्तन यह गंगा जली भी है जिसमें प्राचीन समय में प्रयागराज संगम से पूजा हेतु गंगाजल लाया जाता था। क्योकि लोग जब पवित्र नदी गंगा में अपने परिजनों के अस्ति विसर्जन करने जाते तो वहां से इसी गंगाजली में गंगा का पवित्र जल लाते और उसकी पूजा कर प्रसाद के रूप में भी उस जल को बांटते। पर अब अक्सर बोतलों में ही लाते हैं।

फूलदान

यह एक पीतल के घड़े के आकार का बर्तन है जो फूलदान कहलाता है। इसमें पहले शुभ अवसरों पर फूल रखे जाते थे। इसलिए इसका ऊपर का मोहड़ा काफी संकरा होता है। पर स्टील आदि के सस्ते बर्तन आजाने से इसका उपयोग भी अब काफी कम हो गया है। यही कारण है कि यह पूरी तरह से पुरावशेष का रूप ले चुका है।

यद्यपि हमारी कृषि आश्रित समाज की संस्कृति में फूलदान, इत्रदान आदि अधिक शान शौकत वाली चीजों का प्रचलन नही था। फिर भी सम्पन्न लोगों के घरों में यह भी रहता था। कुछ लोग तो अपने घर में रख अन्य लोगों की मदद भी करते थे।

काँसे का लैम्प

कहते हैं आवश्यकता अविष्कार की जननी है। अस्तु धातु शिल्पी ताम्रकार समुदाय ने काँसे के बर्तन भर नही बनाया बल्कि लोगों की आवश्यकता को महसूस करते हुए एक अनोखा दीपक( लैम्प ) भी बनाया था जो प्रकाश वान हो लम्बे समय तक अंधकार को दूर करता रहा।

दीपक तो अनेक प्रकार के हैं। प्राचीन समय में जब कैरोसीन की खोज नही हुई थी तब तक तो अलसी के तेल से मिट्टी का दिया ही प्रकाश का स्रोत था जो प्रतीक के रूप में हर धार्मिक आयोजनों में आज भी शामिल है। पर कैरोसीन आने के बाद यदि मृदा शल्पियों ने मिट्टी की ढिबरी बनाई तो धातु शल्पियों ने भी उसी तरह की एक खोज करली थी। और वह है काँसे का लैम्प जो बहुत समय तक सम्पन्न किसानों के घर की शान रहा। पहले इसमें अरण्डी का तेल भी जलाया जाता था। लेकिन अब बिजली ने उसे भी कबाड़ खाने में अंगड़ खन्नगड़ वस्तुओं के बीच पहुँचा दिया है।

आज के लिए बस इतना ही कल फिर मिलेंगे नई जानकारी के साथ।

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