Site icon SHABD SANCHI

आज 31 दिसंबर है फिर आने वाला पल जाने वाला है…..

aane wala (1)

aane wala (1)

Aatm Manthan :आज है 31 दिसंबर यानि हर बार की तरह ये साल भी जाने वाला है कुछ खट्टी-मीठी यादें छोड़कर किसी की झोली में ग़म तो किसी के दामन में खुशियाँ समेट कर पर ज़रा ग़ौर से सोचिए हर हाल में हमारे साथ कोई न कोई तो खड़ा रहा होगा जिसने ग़मों में हमें संभाला होगा तो हमारी खुशियों में चार चाँद लगाया होगा तो चलिए आज उन्हीं को ढूँढने की कोशिश करते हैं और नए साल की मुबारकबाद के साथ उनका शुक्रिया भी अदा करते हैं ,आभार व्यक्त करते हैं ताकि वो यूँ हीं हमेशा हमारे साथ रहें।

कैसे पहचाने उन्हें :-

खुशियाँ तो हम ज़माने के साथ बाँट लेते हैं लेकिन ग़म सबके साथ नहीं बाँट पाते इसके लिए हम उसीको चुनते हैं जो हमारे दिल के बहोत क़रीब होता है और बेशक जो दिल के क़रीब होता है वो हमारा अपना ही होता है फिर वो हमारी ख़ुशी में शामिल हो न हो ग़म में हम उसे ज़रूर तलाश करते हैं और ये भी ज़रूरी नहीं कि उनसे हमारा कोई खून का रिश्ता हो ही, ये वो लोग हैं जो दुनिया की नज़र में हो सकता है हमारे लिए ग़ैर हो लेकिन हमारे लिए वो अपनों में शामिल हो जाते हैं।

छोटी सी भी विपत्ति अपने परायों की पहचान कर देती हैं :-

जो अपना होता है उसके लिए हमारी छोटी से छोटी परेशानी बहोत बड़ी होती है और उससे निकलने में वो हमारी हर तरह से मदद करता है हर वो संभव प्रयास करता है जो उसके बस में है ,कुछ नहीं तो दुआ ही कर देता है परमात्मा से,और हमारे लिए ये क्या कम है।

ग़ैरों की बात करें तो उनमें खून के रिश्ते वाले वो लोग भी आते हैं जिनके लिए हमारी बड़ी से बड़ी परेशानी छोटी होती है और वो हर तरीक़े से हमारी ही ग़लती ढूँढ़ते हैं ,उस मुश्किल में फँसने के लिए हमें ही ज़िम्मेदार ठहराते हैं कभी कभी तो हमारा या हमारी परिस्थितयों का मज़ाक़ भी बना देते हैं।

अपनों को और क़रीब लाने के फायदे :-

अगर हम अपने परायों की पहचान करके केवल दिल से हमें अपना मानने वालों को अपने क़रीब रखें तो हम मज़बूत महसूस करेंगे , जीवन के संघर्ष भी हमें कमज़ोर नहीं कर पाएँगें ,कामियाबी हमारे क़दम चूमेगी और खुशियों की बहारें हमारे आँगन में झूमेंगीं पर इसके लिए सबसे पहले ये ज़रूरी है की हम भी अपने शुभ चिंतकों का ख्याल रखें , उनके भले के लिए भी प्रार्थना करें। ये पल बीत जाते हैं पर इनमें छुपा एहसास कभी नहीं मिटता इसलिए किसीका ज़ख़्म कुरेदना तो किसी का मरहम लगाना याद रह जाता है तो क़द्र करिये रहत और चैन की साँस देने वालों की और तैयार हो जाइये इन अपनों को ‘हैप्पी न्यू इयर’ कहने के लिए अपने दिलकश अंदाज़ में, फिर मिलेंगे आत्म-मंथन की अगली कड़ी में ,धन्यवाद।

Exit mobile version