न्याज़िया
मंथन। आपको नहीं लगता कभी-कभी हमारे पैर तो आगे बढ़ जाते हैं पर हम आगे नहीं बढ़ पाते, हमारा दिल दिमाग पिछली बातों को भूल नहीं पाता, उन लोगों के बारे में सोचता रहता है जो पीछे छूट चुके हैं, ये कब हुआ? कैसे हुआ? क्यों हुआ ?हम इन्हीं सवालों में उलझे रह जाते हैं लेकिन ज़रा सोचिए, पीछे मुड़कर देखने से क्या फायदा बल्कि इससे हमारा आज भी खराब हो सकता है, हमारा आज में जीना मुश्किल हो सकता है इसलिए जो छूट गया उसका हमारा साथ बस इतना ही था यही सोचना बेहतर है क्योंकि कोई कैसे हमसे छूट गया ये नियति थी या उसका फैसला ये सोचना उतना ज़रूरी नहीं जितना ये मानना ज़रूरी है कि जो हमारा है वो हमें छोड़कर जा ही नहीं सकता अगर मौत भी अपनों को ले जाए तो भी वो हमारे दिलों में रहते हैं और हमें ताक़त देते रहते हैं, हमें कमज़ोर नहीं पड़ने देते और हम उनकी यादों के सहारे जीना सीख जाते हैं आगे बढ़ते हैं नए आयाम तय करते हैं ।
जो चला गया उसके लिए हम कुछ नहीं कर सकते
जाने वाले को जो देना था वो हमें देकर चला गया और हमें जो देना था हम भी उसे दे चुके, अब हम चाह के भी उसके लिए कुछ नहीं कर सकते क्योंकि गुज़रा हुआ वक़्त लौटकर नहीं आता ,पर अगर आपके दिल में उसके लिए हमदर्दी है तो आप सोच लो कि वो मजबूर रहा होगा और अगर कहीं उसने आपके प्यार को ठुकराया है और आपको अब उससे नफ़रत हो रही है तो ये समझ लो कि ये उसकी बद नसीबी है कि वो आपके साथ और नहीं रह सका।
प्रेम जो मांगे उसे दे दें
ये यक़ीन करिए कि अगर वो आपका अपना होता तो बिना मजबूरी के आपको छोड़कर नहीं जाता और अगर आपकी कोशिशों के बावजूद अपना नहीं बन पाया और छूट गया तो उसके लिए हमारा मोह निरर्थक है या हम उसके लायक नहीं या वो हमारे योग्य नहीं। यहां तक कि अगर वो हमारे सामने भी है और हमसे दूर जाना चाहता है तो उसे छोड़ दीजिए ,क्योंकि प्यार में किसी को बांधा नहीं जाता वो जो मांग रहा है उसे दे दीजिए,यही प्यार है, वो आपका होगा तो उसे भी आपके प्यार की ज़रूरत होगी क़द्र होगी वरना मोह के धागे उसके लिए ज़ंजीर से कम नहीं होंगे। इसलिए न किसी को बांधे न बंधे ,अगर आख़री सांस तक वो आपको छोड़के जा न सके तो वो आपका है और जो चला जाए ,उसके लिए अफसोस कैसा आगे बढ़िए शायद किसी और को आपकी ज़रूरत हो ,कोई आपके प्यार का मुंतज़िर हो उसका हांथ थामिए।
प्रेम निर्जीव से हो या जीव से साधना ही इसकी प्राप्ति का मार्ग है
किसी भी प्यार को पाने के लिए साधना करनी पड़ती है ,उसकी हर मांग को पूरा करने के लिए निस्वार्थ भाव से तप करना होता है और अगर हम उसकी आशाओं पर खरे नहीं उतरते तो वो हमसे छूट जाता है इसलिए जब तक प्रयास करना चाहिए जब तक प्राण हैं क्योंकि जीव सिर्फ जीवन रेखा से ही विवश है। ग़ौर ज़रूर करिएगा इस बात पे फिर मिलेंगे आत्म मंथन की अगली कड़ी में धन्यवाद।