Tirupati Balaji prasad controversy : तिरुपति बालाजी मंदिर इस समय पूरे देश में चर्चा का विषय बना हुआ है। दरअसल, इस विश्व प्रसिद्ध मंदिर के प्रसाद (Tirupati Balaji prasad controversy) को लेकर हुए चौंकाने वाले खुलासे के बाद आंध्र प्रदेश ही नहीं बल्कि पूरे देश में राजनीति तेज हो गई है। दरअसल, मंदिर के प्रसाद को लेकर दावा किया गया था कि प्रसाद के लड्डू बनाने में घटिया सामग्री और जानवरों की चर्बी का इस्तेमाल किया जाता है।
देश भर में चर्चा का विषय बना तिरुपति बालाजी मंदिर
तिरुपति बालाजी का मंदिर ही नहीं, बल्कि इसका प्रसाद (Tirupati Balaji Temple Prasad History) भी पूरी दुनिया में मशहूर है। दरअसल, मंदिर में प्रसाद के तौर पर लड्डू दिए जाते हैं। यहां बांटा जाने वाला प्रसाद बेहद खास तरीके से बनाया जाता है और इसे बनाने की परंपरा करीब 200 साल पुरानी है। ऐसे में प्रसाद को लेकर चल रहे विवाद के बीच आइए जानते हैं कि तिरुपति बालाजी का प्रसाद क्यों खास है और इससे जुड़ी अन्य रोचक बातें।
तिरुपति बालाजी मंदिर के प्रसाद की क्या खासियत है ? Tirupati Balaji prasad controversy
तिरुपति मंदिर में मिलने वाला प्रसाद यानी लड्डू बेहद खास माना जाता है। मान्यता है कि इस प्रसाद के बिना मंदिर के दर्शन पूरे नहीं माने जाते। प्रसाद के लड्डू पोटू नामक रसोई में बनाए जाते हैं। यहां रोजाना करीब 8 लाख लड्डू तैयार किए जाते हैं। साथ ही इसे बनाने के लिए एक खास विधि का इस्तेमाल किया जाता है।
खास सामग्री से बनाए जाते हैं लड्डू ।
दरअसल यह प्रसाद दित्तम विधि से बनाया जाता है कहते हैं , यह शब्द प्रसाद में इस्तेमाल होने वाली सामग्री और उसके अनुपात के लिए इस्तेमाल किया जाता है। दित्तम में अब तक 6 बार बदलाव किया जा चुका है। फिलहाल तैयार किए जाने वाले प्रसाद में बेसन, काजू, इलायची, घी, चीनी, मिश्री और किशमिश का इस्तेमाल किया जाता है।
कई तरह के होते हैं लड्डू । Tirupati Balaji prasad controversy
आमतौर पर मंदिर के लिए अलग-अलग तरह का प्रसाद तैयार किया जाता है, लेकिन दर्शन करने आने वाले भक्त इसे प्रोक्तम लड्डू कहते हैं। किसी भी विशेष त्यौहार के अवसर पर भक्तों को अस्थानम लड्डू वितरित किया जाता है, जिसमें काजू, बादाम और केसर अधिक मात्रा में होते हैं। जबकि कल्याणोत्सवम लड्डू कुछ विशेष भक्तों के लिए बनाए जाते हैं।
प्रसाद की 200 साल पुरानी परंपरा
मंदिर में प्रसाद बांटने की यह परंपरा करीब 200 साल पुरानी है। वर्ष 1803 में तिरुमाला तिरुपति देवस्थानम (टीटीडी) ने मंदिर में प्रसाद में बूंदी बांटना शुरू किया था। बाद में वर्ष 1940 में इस परंपरा को बदल दिया गया और लड्डू बांटे जाने लगे। इसके बाद वर्ष 1950 में प्रसाद बनाने में इस्तेमाल होने वाली मात्रा तय की गई और आखिरी बदलाव वर्ष 2001 में दित्तम में किया गया, जो आज भी लागू है।