Tiger Conservation in India and Madhya Pradesh,Need Strategy & Current Scenario – क्यों ज़रूरी है बाघों का संरक्षण ?इस प्रश्न के साथ इस लेख के माध्यम से कुछ विषयक बातें हैं बाघ के विषय में ,बाघ न केवल वन्य जीवन की एक अद्भुत प्रजाति है, बल्कि वह हमारे पारिस्थितिक तंत्र की स्थिरता का प्रमुख संकेतक भी है। 29 जुलाई को अंतर्राष्ट्रीय बाघ दिवस मनाया जाता है, जिससे दुनिया भर में बाघों की गिरती जनसंख्या और संरक्षण की ज़रूरत को लेकर जागरूकता फैलाई जाती है।बाघों की संख्या में कमी मुख्यतः शिकार, अवैध तस्करी, आवास क्षरण और मानव-पशु संघर्ष के कारण हो रही है। इस लेख में हम जानेंगे कि भारत विशेषकर मध्यप्रदेश में बाघों की क्या स्थिति है और उनके संरक्षण के लिए क्या-क्या समुचित उपाय किए जा रहे हैं।

बाघों का पारिस्थितिक महत्व – Ecological Role of Tigers
बाघ “शिकारियों के राजा” के रूप में जंगलों की जैविक श्रृंखला में सबसे ऊंचे पायदान पर हैं। ये वनस्पति व वन्य जीवों के संतुलन को बनाए रखते हैं। किसी भी जंगल में बाघों की उपस्थिति उस क्षेत्र की जैव विविधता के स्वास्थ्य का प्रमाण है। बाघों का संरक्षण करने का मतलब है पूरे जंगल का संरक्षण करना।
संकट की स्थिति और वैश्विक पहल – Global & National Threats & Actions
अंतर्राष्ट्रीय बाघ दिवस मध्यप्रदेश के लिए खास मायने रखता है. प्रदेश ने न सिर्फ भारत बल्कि दुनिया में भी खुद को ‘टाइगर स्टेट’ के रूप में स्थापित किया है. 2022 की बाघ गणना में भारत में कुल 3,682 बाघों की पुष्टि हुई, जिसमें सबसे ज्यादा 785 बाघ अकेले मध्यप्रदेश में पाए गए।
मध्यप्रदेश यानी बाघों का गढ़-Madhya PradeshThe Tiger State
मध्यप्रदेश न केवल भारत का हृदय स्थल है बल्कि इसे यह भारत का टाइगर स्टेट भी कहा जाता है। बाघों के परिप्रेक्ष्य में वर्तमान स्थिति 2022 की रिपोर्ट अनुसार,समूचे मध्यप्रदेश में 785 बाघ पाए गए हैं। यह संख्या देश के किसी भी अन्य राज्य से अधिक बाताई गई है।

प्रमुख बाघ रिज़र्व्स और अभयारण्यनाम क्षेत्र विशेषता
कान्हा टाइगर रिज़र्व मंडला बारहसिंगा का सुरक्षित घर और बाघों का प्रमुख क्षेत्र।
बांधवगढ़ टाइगर रिज़र्व उमरिया बाघों की उच्च घनता वाला इलाका।
पेंच टाइगर रिज़र्व छिंदवाड़ा-सिवनी “मोगली लैंड” भी कहा जाता है।
सतपुड़ा टाइगर रिज़र्व होशंगाबाद विविध वन्यजीवों की उपस्थिति।
संजय डुबरी टाइगर रिज़र्व सीधी-सिंगरौल पुनर्वास परियोजना के लिए प्रसिद्ध।

रीवा व्हाइट टाइगर रिजर्व समृद्ध बाघों की पहचान
मुकुंदपुर अब व्हाइट टाइगर सफारी के नाम से ही जाना जाता है,जो मध्य प्रदेश के रीवा ज़िले में स्थित है और यह दुनिया की पहली व्हाइट टाइगर सफारी होने का गौरव रखता है जहां सफेद शेर पलते हैं। इसकी स्थापना 2016 में की गई थी, जहां मोहन नामक पहले सफेद बाघ की विरासत को संरक्षित करने का प्रयास किया गया। वर्तमान में यह रिजर्व पर्यटन और बाघ संरक्षण का महत्वपूर्ण केंद्र बन चुका है, जहां सफेद बाघों के साथ-साथ अन्य बाघ प्रजातियों व तेंदुए, रीछ, हिरण, नीलगाय और पक्षियों की विविध प्रजातियां भी पाई जाती हैं। यह रिजर्व न केवल वन्यजीवों के लिए एक सुरक्षित आश्रय स्थल है, बल्कि पर्यावरण शिक्षा, अनुसंधान और स्थानीय आर्थिक विकास को भी बढ़ावा दे रहा है। शासन द्वारा देखरेख और सीमित मानव हस्तक्षेप के चलते यहां वन्यजीवों की स्थिति संतुलित बनी हुई है।
बाघ संरक्षण के समुचित उपाय – Effective Tiger Conservation Measures
- जंगलों की कटाई पर नियंत्रण,
- मानव अतिक्रमण रोकना,
- कोर और बफर ज़ोन की पहचान और सुरक्षा के समुचित दायरे तय हों।
आधुनिक तकनीक का उपयोग
ट्रैकिंग कॉलर, कैमरा ट्रैपिंग, सैटेलाइट मॉनिटरिंग हो ताकि वन्य प्राणी व वातावरण और व्यवस्था पर न सिर्फ नज़र रखी जा सके बल्कि आवश्यकताओं को नियमित व अव्यवस्थाओं को नियंत्रित किया जा सके और AI के माध्यम से भी डेटा आधारित निगरानी करना भी लाभकारी हो सकता है।
मानव-पशु संघर्ष की रोकथाम
- गांवों का पुनर्वास,
- स्थानीय समुदायों को वन्यजीव मित्र बनाना,
- वन रक्षक दलों को संसाधन देना।
शिक्षा और जन-जागरूकता
स्कूलों, कॉलेजेज व गांवों में बाघ जागरूकता अभियान चलाएं और युवाओं को वन्य प्राणी संरक्षण के प्रति जिम्मेदार बनाना होगा। इको-टूरिज़्म के माध्यम से संरक्षण और आजीविका का संतुलन भी अत्यंत महत्वपूर्ण है।
सख्त कानून और प्रवर्तन – वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम – 1972 की जानकारी का विस्तार
बाघ की खाल और अंगों की तस्करी पर कड़े दंड के बारे में,ख़ास कर उन क्षेत्रों में प्रमुखता से स्थानीय सामाजिक आयोजनों, टीवी चैनल, रेडियो के माध्यम से विस्तृत जानकारी जन सामान्य तक पहुंचाई जानी चाहिए जहां लोग शिकार का शौक रखते हैं या जहां जानवरों की खालों से सजावटी सामान, कपड़े व उनके शारीरिक अंगों का उपयोग होता है।
स्थानीय भागीदारी और भविष्य की राह
बाघ संरक्षण यानी बाघों को बचाने का काम सिर्फ सरकार का नहीं, हर नागरिक की जिम्मेदारी है कि स्थानीय जनजातियां, वनवासी समुदाय, युवा, NGO,वन विभाग और वैज्ञानिक-सबका सहयोग आवश्यक है,ताकि भविष्य की दिशा में वन से वन्य, वन्य से वसुंधरा की भावना से काम वो भी सार्थकता से किया जा सके। बाघ संरक्षण को सिर्फ एक मिशन ही नहीं, जन आंदोलन बनाना होगा ,प्रत्येक टाइगर रिज़र्व में स्थानीय भागीदारी को अनिवार्य बनाना होगा।
विशेष – जीवन की जंगली व्यवस्था का प्रहरी है बाघ, इसलिए बाघ केवल एक जानवर नहीं, वह वन का राजा, पारिस्थितिक संतुलन का संवाहक और हमारी सांस्कृतिक पहचान का हिस्सा है। मध्यप्रदेश की अग्रणी भूमिका देश और विश्व के लिए एक उदाहरण है कि राजनीतिक इच्छाशक्ति, जन सहयोग और वैज्ञानिक दृष्टिकोण से क्या कुछ संभव है।आइए, इस अंतर्राष्ट्रीय बाघ दिवस पर हम यह संकल्प लें कि “जहां बाघ सुरक्षित है, वहीं जीवन सुरक्षित है।