भारत सरकार ने अधिसचूना जारी कर कहा है कि देश के के तीन नए आपराधिक कानून 1 जुलाई 2024 से लागू होंगे। जानिए, क्या हैं ये कानून? आपराधिक न्याय व्यवस्था से संबधित तीनों नए कानून भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता 2023 एक जुलाई से लागू होंगे। गृह मंत्रालय ने इससे जुड़ी अधिसूचना 24 फरवरी को जारी कर दी. इन तीनों कानूनों को पहले ही राष्ट्रपति की मंजूरी मिल गई थी. तब ये तीनों विधेयक कानून बन गए थे. अब इन्हें लागू करने की अधिचूना जारी कर गई है. भारतीय न्याय संहिता, भारतीय नागरिक संहिता और भारतीय साक्ष्य अधिनियम अब पुराने भारतीय दंड संहिता,आपराधिक प्रक्रिया संहिता और साक्ष्य अधिनियम की जगह ले लेंगे। हिट एंड रन से जुड़े प्रावधान पर अमल नहीं लेकिन हिट एन्ड रन से जुड़े प्रावधान के अमल पर रोक रहेगी।
भारतीय न्याय संहिता की धारा 106 (2) हिट एंड रन से जुड़ी है. मोटर ट्रांसपोर्ट यूनियनों ने भारतीय न्याय संहिता की धारा 106 (2) पर आपत्ति जताते हुए विरोध प्रदर्शन किया था, जिसमें हिट एंड रन मामले में 10 साल की सजा और जुर्माने का प्रावधान है. इस धारा में अगर आप तेज गति और लापरवाही से गाड़ी चलाकर किसी की मौत की वजह बनते हैं और पुलिस को सुचना दिए बिना भागते हैं तो सजा का प्रावधान है. ट्रक ड्राइवर्स इस प्रावधान के खिलाफ हैं. सरकार के कई बैठकों के बाद भरोसा दिया था कि धारा को लागू करने का फैसला ऑल इंडिया मोटर्स ट्रांसपोर्ट कांग्रेस के साथ चर्चा के बाद होगा। भारतीय दंड संहिता, आपराधिक प्रक्रिया संहिता और सुरक्षा अधिनियम जो अंग्रेजों के जमाने से चला आ रहा है, उसकी जगह अब यह नए तीनों कानून ले लेंगे। राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने 25 दिसंबर को कानूनों पर अपनी सहमति दी थी. राज्यसभा में कानूनों के पास होने के बाद गृह मंत्री अमित शाह ने कहा था, “संसद में पारित तीनों विधेयक, अंग्रेजो द्वारा लागू किये गए कानूनों की जगह लेंगे और एक स्वदेशी न्याय प्रणाली का दशकों पुराना सपना साकार होगा।” पहली बार आतंकवाद को परिभाषित किया गया आतंकवाद शब्द को पहली बार भारतीय न्याय संहिता में परिभाषित किया गया है. यह IPC में पहले मौजूद नहीं था.
बीएनएस में आतंकवाद को धारा 113 (1) के तहत दंडनीय अपराध बनाया गया है. इस कानून में आतंकवाद की स्पष्ट परिभाषा दी है, राजद्रोह को अपराध के रूप में समाप्त कर दिया है. आतंकवाद से जुड़े अपराधों के लिए मौत की सजा या आजीवन कारावास से दंडनीय बना दिया गया है, इसमें पैरोल की सुविधा नहीं होगी। बीएनएस, भारतीय दंड संहिता, 1860 के राजद्रोह प्रावधानों को निरस्त करता है. इसे भारतीय न्याय संहिता की धारा 152 से बदला गया है, राष्ट्र की एकता और अखंडता को खतरे में डालने वाले कृत्यों पर ध्यान केंद्रित करने वाली सभी धाराएं इसमें जोड़ी गई है. महिलाओं और बच्चों के खिलाफ अपराध भारतीय न्याय संहिता में यौन अपराधों को संबोधित करने के लिए ', महिलाओं और बच्चों के खिलाफ अपराध ', नामक एक चैप्टर जोड़ा गया है. इसके अलावा संहिता में 18 वर्ष से कम उम्र की महिलाओं के बलात्कार से संबंधित मामलों में आजीवन कारावास या मौत की सजा का प्रावधान किया गया है. कानून के मुताबिक़ बालात्कार के दोषी को कम से कम 10 साल की कठोर कारावास की सजा का प्रावधान है, इस सजा को आजीवन कारावास तक बढ़ाया जा सकता है और जुर्माना भी लगाया जा सकता है.
इसके अलावा गैंगरेप के मामले में 20 साल की सजा या उम्रकैद की सजा का प्रावधान है. इसके अलावा शादी का बहाना, नौकरी का झांसा और पहचान बदलकर महिलाओं का यौन शोषण करने को अपराध माना जायेगा। मॉब लिंचिंग के लिए उम्रकैद या मौत की सजा भारतीय न्याय संहिता मॉब लिंचिंग और हेत क्राइम मर्डर के लिए आजीवन कारावास कारावास या मौत की सजा का भी प्रावधान किया गया है.