हाल ही में उत्तर प्रदेश के संभल में हुए मंदिर-मस्जिद विवाद के बाद, सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना की अध्यक्षता वाली पीठ ने 12 दिसंबर 2024 को एक आदेश जारी किया, जिसमें सिविल कोर्ट को मस्जिदों का सर्वेक्षण करने की मांग करने वाले लंबित मामलों में नए मामले दर्ज करने या आदेश पारित करने से रोक दिया गया। इन मांगों का मुख्य उद्देश्य यह पता लगाना है कि मस्जिदों के नीचे मंदिर की संरचना है या नहीं। मुख्य न्यायाधीश की अध्यक्षता वाली पीठ ने
1991 में पारित उपासना स्थल अधिनियम की वैधता पर सवाल उठाने वाली याचिकाओं की सुनवाई करते हुए एक रोक का आदेश जारी किया – एक क़ानून जो धार्मिक स्थलों के स्वरूप को उसी तरह संरक्षित करता है जैसा कि वे 15 अगस्त 1947 को मौजूद थे। हालाँकि अयोध्या को इससे छूट दी गई थी, परिणामस्वरूप सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद ही पिछले वर्ष ही भगवान रामलला का भव्य मंदिर निर्मित हुआ और मुस्लिम पक्ष को भी मस्जिद बनवाने के लिए जमीन दी गई।
इन मंदिर-मस्जिद विवादों का मुख्य कारण अतीत में तुर्क-अफ़गान और मुगल काल में आक्रमण में तोड़े गए मंदिर और धार्मिक स्थल हैं। इतिहासकारों के अनुसार मंदिरों पर आक्रमण के कई कारण होते थे। ये कारण आर्थिक, धार्मिक और राजनैतिक कुछ भी हो सकते थे। जिनको पूर्व में तोड़ा गया या अभी विवाद चल रहे हैं, इन में से कुछ प्रमुख स्थल निम्न हैं-
1. मुल्तान सूर्य मंदिर –
यह मंदिर वर्तमान में पाकिस्तान के पंजाब सूबे के एक शहर मुल्तान में है। पौराणिक कथा के अनुसार इस मंदिर का निर्माण महाभारत काल में श्रीकृष्ण और जाम्बवती के पुत्र सांब ने कुष्ठ रोग से निदान के लिए करवाया था। भगवान सूर्यनारायण को समर्पित इस मंदिर को ‘आदित्य सूर्य मंदिर’ भी कहा जाता है। इस प्रसिद्ध मंदिर को 10 वीं शताब्दी के अंत में मुल्तान के एक इस्माइली राजवंश के शासकों द्वारा नष्ट कर दिया गया था। हालाँकि यह स्थान अब भारतीय परिक्षेत्र में नहीं आता।
2. नालंदा महाविहार –
यह महाविहार बिहार राज्य के मगध क्षेत्र में राजगीर के पास स्थित है। अनेक पुराभिलेखों और सातवीं शताब्दी में बौद्ध धर्म के अध्ययन के लिए भारत आए चीनी यात्री ह्वेनसांग तथा इत्सिंग के यात्रा विवरणों से इस विश्वविद्यालय के बारे में विस्तृत जानकारी प्राप्त होती है। इस विश्वविद्यालय के स्थापना का श्रेय गुप्त वंश के शासक सम्राट कुमारगुप्त प्रथम को जाता है। इसे 6 वीं शताब्दी के महान शासक हर्षवर्धन और पाल शासकों का भी संरक्षण मिला। भारत के विभिन्न क्षेत्रों के स्थानीय शासकों साथ ही इसे अनेक विदेशी शासकों से भी अनुदान मिला।12 वीं शताब्दी के अंत में भारत पर तुर्क आक्रमणों के समय ही इसका विध्वंस हुआ।
3. मार्तंड सूर्य मंदिर –
यह मंदिर भारत के केन्द्र शासित प्रदेश ‘जम्मू और कश्मीर’ प्रदेश के अनंतनाग ज़िले में स्थित है। यह मंदिर भी भगवान मार्तंड(सूर्य) को समर्पित है। इसका निर्माण कश्मीर पर शासन करने वाले कर्कोटक वंश के शासक ललितादित्य मुक्तापीड़ ने 8वीं शताब्दी में करवाया था। ललितादित्य एक महानतम राजा और योध्दा था। उसने अपने समकालीन कन्नौज के सुप्रसिद्ध शासक यशोवर्मन को पराजित किया था। 15वीं शताब्दी के एक कश्मीरी विद्वान और द्वितीय राजतरंगिणी के रचनाकार जोनराज के अनुसार शाहमीरी सुल्तान सिकंदर बुतशिकन के शासन के दौरान को इस मंदिर को नष्ट कर दिया गया था।
4. सोमनाथ शिव मन्दिर –
भारत के पश्चिमी छोर पर गुजरात राज्य के सौराष्ट्र क्षेत्र के वेरावल में स्थित है। मान्यता है 12 ज्योतिर्लिंग में से प्रथम इस सोमनाथ ज्योतिर्लिंग की स्थापना स्वयं चन्द्रदेव (सोम) ने की थी। प्राचीन पौराणिक कथाओं के अनुसार सोम अर्थात् चन्द्र ने, दक्ष प्रजापति की 27 कन्याओं से विवाह किया था। लेकिन उनमें से रोहिणी नामक अपनी पत्नी को अधिक महत्व दिया करता था। इस अन्याय को होते देख क्रोध में आकर दक्ष ने चन्द्रदेव को शाप दे दिया कि अब से हर दिन तुम्हारा तेज (काँति) क्षीण होती रहेगी। फलस्वरूप हर दूसरे दिन चन्द्र का तेज घटने लगा। शाप से विचलित और दुःखी सोम ने भगवान शिव की आराधना शुरू कर दी। अन्ततः शिव प्रसन्न हुए और सोम के शाप का निवारण किया। सोम के कष्ट को दूर करने वाले प्रभु शिव का स्थापन यहाँ करवा कर उनका सोम के कारण नामकरण हुआ “सोमनाथ”। इस मंदिर का निर्माण भी भिन्न-भिन्न समय में भिन्न-भिन्न राजवंशों के विभिन्न शासकों ने करवाया था। बाद में गुजरात के चौलुक्य (सोलंकी) वंश के शासकों ने इस तीर्थ को संरक्षण दिया। समृद्ध व्यापारिक नगर और बंदरगाह होने के कारण, इतिहास में इस मन्दिर और तीर्थ को कई आक्रमणों का सामना करना पड़ा। इनमें सबसे प्रमुख था ग़ज़नी के महमूद का सन् 1025 ई. में किया गया हमला, इस आक्रमण में मंदिर की सम्पत्ति लूटी और उसे नष्ट कर दिया गया। बाद में सोलंकी वंश के ही शासक कुमारपाल ने इसका पुनर्निर्माण करवाया। इसके बाद कई आक्रमणों के झेलने और नष्ट होने के बाद 1951 में देश की आज़ादी के बाद सरदार पटेल और के. एम. मुंशी के प्रयासों से यह पुनः निर्मित हुआ।
5. ज्ञानवापी मस्जिद काशी –
माना जाता है मूल विश्वेश्वर मंदिर यहीं था। 12 ज्योतिर्लिंग में से एक विश्वनाथ मन्दिर और तीर्थ भगवान शिव को समर्पित है। प्रतिहार, कलचुरी और गहड़वाल वंश के शासकों के काल में यह सुप्रसिद्ध तीर्थ था। 12 वीं शताब्दी के अंत में 1194 ई. चंदावर के युद्ध में मोहम्मद गौरी द्वारा कन्नौज के राजा जयचंद की पराजय के बाद तुर्क फौजों ने काशी पर हमला किया और कई मंदिर तोड़े जिसका जिक्र फ़ारसी तवारीखों में भी है। बाद में मुग़लकाल में आमेर के राजा मान सिंह और राजा टोडरमल खत्री के प्रयासों से यह मंदिर पुनः बनाया गया। लेकिन 1669 ईसवी में औरंगजेब के आदेश के बाद इसे दोबारा तोड़ दिया गया। बाद में कई रियासतों जैसे बूंदी, जयपुर, उदयपुर,रीवा इत्यादि के कई राजाओं ने यहाँ कई निर्माण कार्य करवाये। अंततः इंदौर की महारानी अहिल्याबाई होलकर ने पुनः काशी विश्वनाथ मंदिर का निर्माण करवाया। ग्वालियर की महारानी बैजाबाई और पंजाब केसरी महाराज रणजीत सिंह ने भी यहाँ दान इत्यादि दिए। हालाँकि यहाँ ज्ञानवापी मस्जिद विवाद बहुत समय से चल ही रहा है।
6. अढ़ाई दिन का झोपड़ा अजमेर–
राजस्थान के अजमेर नगर में स्थित इस मस्जिद का निर्माण मोहम्मद गौरी के एक गुलाम कुतुबुद्दीन ऐबक ने, अजमेर के चौहानवंशीय शासक पृथ्वीराज तृतीय को 1192 में हुए तराइन के दूसरे युद्ध में पराजित करने के बाद करवाया था, इसका वास्तुकार हेरात का अबू बक्र था। ढाई दिन में मस्जिद के निर्माण के कारण ही इसे अढ़ाई दिन का झोपड़ा या ढाई दिन की मस्जिद कहते हैं। लेकिन अभिलेखीय साक्ष्यों के अनुसार यहाँ प्रीइस्लामिक संरचनाएं प्राप्त हुई हैं। यह मूलतः एक संस्कृत विद्यालय था। जिसका निर्माण चौहानवंश के शासक विग्रहराज चतुर्थ ने “सरस्वती कण्ठा भरण” (संस्कृत विद्यालय) के रूप में करवाया था। इस मस्जिद का निर्माण संस्कृत महाविद्यालय के स्थान पर ही हुआ, इसका प्रमाण अढाई दिन के झोपड़े के मुख्य द्वार के बायीं ओर लगा संगमरमर का एक शिलालेख है जिस पर संस्कृत में इस विद्यालय का उल्लेख है। इसकी दीवारों पर विग्रहराज चतुर्थ द्वारा रचित ‘हरकेली नाटक’ के भी साक्ष्य मिलते हैं।
7. भोजशाला धार –
मध्यप्रदेश के मालवा क्षेत्र के धार में स्थित ज्ञान और कला की देवी सरस्वती को समर्पित यह एक पाठशाला है, जिसका निर्माण मालवा के सुप्रसिद्ध परमार वंश के राजा भोज ने करवाया था। भोज के उत्तराधिकारियों उदयादित्य और नरवर्मन के प्राप्त स्तुति लेख भी इसकी पुष्टि करते हैं। अर्जुनदेववर्मन के समय के एक अभिलेख में एक कर्पूर मंजरी नामक संस्कृत नाटक भी प्राप्त हुआ है, जिसका रचनाकार मदन है जो उस समय के प्रसिद्ध जैन विद्वान आशाधर का शिष्य और अर्जुनवर्मन का शिक्षक था। बाद में मालवा पर शासन करने वाले स्थानीय सुल्तानों के समय इस पाठशाला को तोड़कर मस्जिद में परिवर्तित कर दिया गया था। भोज एक राजा और योद्धा ही नहीं विद्या व ज्ञान का पोषक और स्वयं विद्वान था उसने संस्कृत भाषा में कई ग्रंथों की रचना भी की थी। वह एक महान निर्माणकर्ता भी था, उसने भोजपुर नगर की स्थापना की और एक विशाल सरोवर भी खुदवाया था, जिसके तटबंधों को मालवा के सुल्तान होशंगशाह ने तुड़वा दिया था। भोजशाला को लेकर हाल फ़िलहाल काफी विवाद देखने को मिला है।
8. अयोध्या राम जन्मभूमि –
मान्यता है कि यहाँ भगवन राम का जन्म हुआ था। यहाँ प्रथम बार मंदिर का निर्माण किसने करवाया इसके तो कई दावे होते रहे हैं। लेकिन विष्णु-हरि लेख के अभिलेखीय साक्ष्य के आधार पर यह कहा जा सकता है कि 12वीं शताब्दी के मध्य में कन्नौज के गहड़वाल वंश के शासक महाराज गोविंदचंद्र के सामंत अनयचन्द्र द्वारा करवाया गया था। हालांकि कुछ इतिहासकारों द्वारा इसकी पहचान त्रेता के ठाकुर अभिलेख के रूप में की है। इसमें काफी विवाद भी रहा है। 1526 में पानीपत के प्रथम युद्ध के बाद बाबर के एक सिपहसालार मीर बाकी ने अयोध्या में एक मस्जिद बनवाई थी, जिसके बारे में दावा किया जाता है कि यह रामलला के मंदिर को तोड़ के ही बनाई गई थी। इस विवाद का लम्बा इतिहास रहा है, 2023 में सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद ही पिछले वर्ष ही भगवन रामलला का भव्य मंदिर निर्मित हुआ और मुस्लिम पक्ष को भी मस्जिद बनवाने के लिए जमीन दी गई। इस तरह इस विवाद का एक शांतिपूर्ण हल निकाला गया जिसे सभी पक्षों ने स्वीकार किया।
9. मथुरा ईदगाह मस्जिद –
उत्तरप्रदेश के मथुरा में श्रीकृष्ण जन्मभूमि के मंदिर परिसर में स्थित इस मस्जिद के बारे में दावा किया जाता है यह श्रीकृष्ण जन्मस्थल है, जिसका निर्माण केशवदेव मंदिर के अवशेषों पर हुआ था। राजा विजयपाल के एक सामंत जज्ज ने यहाँ मंदिर का निर्माण करवाया था, जिसे लोदी वंश के सुल्तान सिकन्दर ने ध्वस्त कर दिया था। कुछ इतिहासकारों ने विजयपाल नाम के इस राजा की पहचान कन्नौज के राजा विजयचन्द्र के तौर पर की है। बाद में ओरछा के राजा वीर सिंह बुंदेला ने पुनः एक भव्य मंदिर का निर्माण करवाया था। जिसे 1670 में मुग़ल बादशाह औरंगजेब के समय पुनः तोड़ कर मस्जिद बनवा दी गई थी। इससे पहले 1018 गजनी के महमूद ने भी मथुरा और महावन पर आक्रमण के समय भी इस नगर को बहुत जन-धन की बहुत हानि उठानी पड़ी थी। महमूद इस नगर के वैभव और भव्यता को देख स्तब्ध था। 1757 में इस नगर को अफगान अहमद शाह दुर्रानी के आक्रमण को भी झेलना पड़ा। पिछले वर्ष ही उत्तरप्रदेश हाईकोर्ट में इस स्थल को लेकर एक याचिका दायर की गई थी, जो फिलहाल लंबित है।
इनके साथ देश में और भी कई स्थल हैं जिनके बारे में यह दावा किया जाता रहा है कि पूर्व में ये मंदिर थे।