इस तरह वक्त तो गुज़र जाता है…

न्याज़िया

मंथन। जब हम खाली होते हैं तो मनोरंजन के साधन ढूंढते हैं दिल बहलाने के लिए ,खुद को थोड़ा हुनरमंद साबित करने के लिए कुछ नया बनाने की कोशिश करते हैं इस तरह वक्त तो गुज़र जाता है लेकिन हम अपनी पीठ नहीं थप थापा पाते क्यों ,कोई ख़लिश सी लगती है, क्या किसी से मुलाक़ात नहीं हुई है बहुत दिनों से ? सोचा है आपने कैसा होगा वो क्या कुछ बदल गया होगा उसमें ,क्या कोई है ऐसा आपकी फेहरिस्त में जिससे मुलाक़ात के मुंतज़िर हैं आप ? नहीं! तो ज़रा ग़ौर करिए आप खुद से कब मिले थे कब टटोला था अपने अंतर्मन को जो दुविधाओं से घिरा हुआ ,शांति की तलाश में इधर उधर भटक रहा है , ऐसी किस मंज़िल की चाह में है वो जिसके जानिब बेचौन होकर बस क़दम बढ़ाए जा रहा है ।

कैसा एहसास है ये

अगर आप भी ऐसा महसूस कर रहे हैं तो एक दिन खुद से मुलाक़ात कर ही लीजिए यक़ीन मानिए जो आपके अंदर है उससे अच्छा कोई नहीं है ,वो आपका सच्चा साथी है उसको सुकून दीजिए तभी आपको सुकून मिलेगा ,याद करिए ,आख़री दफा कब मिले थे उससे और क्या कहा था उसने ,क्या चाहिए था उसे क्या दे पाए उसको वो आप नहीं ! न, इसीलिए तो बेचौन हैं आप ।

दो पल उसके साथ

बेशक ज़िंदगी की मुश्किलें हमें खुद से मुलाक़ात का मौक़ा नहीं देती लेकिन एक मुलाक़ात का बहाना ढूंढिए कितने रंग चढ़े हैं उस पर आपके पता तो करिए वो भोला सा इंसान जो आपके अंदर है उसमें दुनियाबी बुराइयां चढ़ने तो नहीं लगी या वो इनसे आहत तो नहीं हो गया समझने की कोशिश करिए वो प्यारा सा इंसान जो आपको रास्ता दिखाता है ,आजकल ख़ामोश क्यों है ,जब आप पास जाएंगे इसके तो पाएंगे ये आप ही तो हैं मासूम छोटे बच्चे जैसे जिसकी दुनिया से जुदा अपनी दुनियां है मगर आपके अंदर, ये प्यारा सा भोला सा आपका मन है जो ज़्यादा कुछ नहीं चाहता आपसे, सिवाय दो बातों के तो मिलिए इससे ,और मिलते रहा करिए क्योंकि वो एक बेहतरीन शख्सियत का मालिक है। सोचिएगा ज़रूर इस बारे में ,फिर मिलेंगे आत्म मंथन की अगली कड़ी में धन्यवाद।

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