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ये है कर्पूरी ठाकुर को भारत रत्न देने के पीछे बीजेपी की रणनीति

Karpoori Thakur Bharat Ratna

Karpoori Thakur Bharat Ratna

Karpoori Thakur Bharat Ratna: बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री कर्पूरी ठाकुर को भारत सरकार ने मरणोपरांत भारत रत्न से सम्मानित करने का फैसला किया है. ये घोसणा बिहार के जननायक कर्पूरी ठाकुर की 100वीं जयंती से एक दिन पहले की गई. जिसके बाद से ही बिहार से लेकर दिल्ली तक सियासी हलचल तेज हो गई है. करुरी ठाकुर दो बार बिहार के मुख्यमंत्री रहे बिहार के साथ पूरा देश उन्हें उनकी सादगी और ईमानदारी के कारण याद करता है. भारत रत्न मिलने के साथ ही बिहार में क्रेडिट लेने की होड़ सी मंच गई है. बिहार के तात्कालिक मुख्यमंत्री नितीश कुमार ने इस फैसले के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को धन्यवाद कहा. वहीं सूबे के पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव ने कहा कि कर्पूरी ठाकुर को भारत रत्न बहुत पहले ही मिल जाना चाहिए था. लालू और नितीश दोनों कर्पूरी ठाकुर की राजनितिक विरासत पर दवा करते आए हैं. नितीश की पार्टी जेडीयू से कर्पूरी ठाकुर के बेटे राज्यसभा सांसद भी है.

भारत रत्न के एलान के बाद से ही अलग-अलग राजनीतिक दल इसका क्रेडिट लेने में जुटे दिख रहे हैं. लोकसभा चुनाव होने में कुछ ही समय शेष हैं. ऐसे में कर्पूरी ठाकुर को भारत रत्न देने के पीछे चुनाव से जोड़ा जा रहा है. कर्पूरी ठाकुर बिहार की अति पिछड़ी जाति नाई से ताल्लुक रखते थे. बिहार में अति पिछड़ी जातियां सबसे बड़ा जातीय समूह .

जातीय समीकरण को साधने का प्रयाश?

जातीय समीकरण को साधने का प्रयाश किया गया कैसे आइए समझते हैं. बीते साल, दो अक्टूबर को बिहार सरकार ने जातिगत सर्वेक्षण के आंकड़े जारी किए थे. जिसके मुताबिक बिहार की कुल आबादी करीब 13 करोड़ है, और इनमें सबसे अधिक संख्या अत्यंत पिछड़ा वर्ग की है। ये राज्य की कुल आबादी का 36 फ़ीसदी हैं. इसके बाद दूसरी सबसे बड़ी आबादी पिछड़ा वर्ग की है. जो राज्य में 27.12 फ़ीसदी की आबादी रखते हैं. जातिगत सर्वे को कांग्रेस सहित अधिकांश विपक्षी दलों ने समय की मांग बताया और जितनी आबादी उतना हक़ जैसे नारे दिए. नीतीश कुमार की सरकार ने सर्वेक्षण के बाद एक और बड़ा कदम उठाते हुए राज्य में आरक्षण का दायरा बढ़ाकर 75 फ़ीसदी कर दिया. बिहार के ओबीसी वोट बैंक का एक बड़ा हिस्सा अब तक लालू यादव और नीतीश कुमार की पार्टियों के ही साथ रहा है.

कर्पूरी ठाकुर को भारत रत्न से सम्मानित करना राजनितिक चाल है, जिसका फायदा बीजेपी को होता दिख रहा है. पहले जातिगत सर्वे और फिर इसको आधार बनाते हुए आरक्षण बढ़ाने से ये चर्चा तेज़ हुई कि इसका फ़ायदा 2024 के लोकसभा चुनाव में महागठबंधन को हो सकता है. भाजपा यहां एक तीर से दो शिकार करना चाहती है. पहला मकसद ये है कि केंद्र सरकार ने कर्पूरी ठाकुर को भारत रत्न दिया ताकि बीजेपी उनकी धरोहर को अपने खेमे में ला सके. नंबर दो, ये संकेत भी हो सकता है कि नितीश कुमार की दोबारा एंट्री के दरवाजे बीजेपी में खुले हैं.

राजनितिक पंडितों की माने तो ” कर्पूरी ठाकुर का 1977-78 में जो फार्मूला था, उसे ही आगे बढाकर नितीश कुमार की सरकार ने रिज़र्वेशन को 75 फ़ीसदी कर दिया है, जिसमें 10 फ़ीसदी आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के लिए है. इन सबका बिहार पर असर तो पड़ी रहा था. बिहार के बहार भी इसका असर दिख रहा था. बीजेपी सरकार को लगा की अभी एलान करने का यही सही समय है. नितीश कुमार और लालू प्रसाद यादव जो कर्पूरी ठाकुर को अपना राजनितिक गुरु मानते हैं. वो काफी समय से डिमांड करते रहे हैं कि कर्पूरी ठाकुर को भारत रत्न मिले। ये फ़ैसला भारतीय जनता पार्टी ने बहुत सही समय में लिया है. और भाजपा की तो यह बहुत पुरानी चाल रही है कि किसी भी प्रदेश के बड़े नेता को अपनी पार्टी के साथ जोड़ लेने की जैसे गुजरात में सरदार वल्लभ भाई पटेल को अपनी पार्टी से जोड़ लिया जो असल में कांग्रेस के नेता थे. बिहार में भी यही चाल चली गई है क्योंकि, उनके पास बिहार में कोई बड़ा नेता नहीं है. तो सोचा होगा की कर्पूरी ठाकुर का नाम अपने साथ लिया जाए.

कमंडल के बाद मंडल की राजनीति

22 जनवरी को राम मंदिर प्राण प्रतिष्ठा की गई. राम मंदिर बनवाना बीजेपी के घोषणापत्र का प्रमुख हिस्सा था. जिसका फ़ायदा बीजेपी होगा. हालांकि, बीजेपी हिन्दू वोट को कितना साध पाएगी ये लोकसभा चुनाव के बाद ही पता चल पाएगा। लेकिन इसके 24 घंटे के अंदर कर्पूरी ठाकुर को भारत रत्न देने के एलान को राजनीतिक विश्लेषक कमंडल के साथ मंडल वोट बैंक को बैलेंस करने की रणनीति से जोड़ रहे हैं. ख़ासतौर पर बिहार में, जहां आने वाले चुनाव में बीजेपी के सहयोगी रह चुके नीतीश अब आरजेडी के साथ हैं. राजनीति की भाषा में कमंडल को हिन्दुत्व और मंडल पिछड़ों के उभार से जोड़ा जाता है. हालांकि, जेडीयू प्रमुख नितीश कुमार कब तक आरजेडी के साथ रहते हैं. कहां नहीं जा सकता क्योंकि हालिया बिहार की राजनितिक उठा पाठक के से तो यही लगता है कि ऊंट किसी भी करवट में बैठ सकती है.

कमंडल का तोड़ मंडल है और बीजेपी के फ़ैसले के पीछे एक बड़ी वजह ये तथ्य भी है. “बीजेपी ने 1990 के दशक में सोशल इंजीनियरिंग शुरू की. उस दौर में पिछड़े वर्ग से आने वाले कल्याण सिंह और उमा भारती जैसे लोगों को आगे किया गया और नरेंद्र मोदी भी अन्य पिछड़ा वर्ग से आते हैं. काफ़ी सालों से बीजेपी ये कोशिश कर रही है कि कमंडल की राजनीति का तोड़ कही जाने वाली मंडल की राजनीति को अपने में समाहित कर ले.” प्रधानम्नत्री नरेंद्र मोदी ने राम मंदिर प्राण प्रतिष्ठा के अवसर पर अपने भाषण में शबरी, निषादराज, गिलहरी और जटायु जैसे के जिन किरदारों का नाम गिनाया उससे दिखा कि ये हिंदुत्व के एक व्यापक दायरे में सामाजिक न्याय के मुद्दे को समाहित करने का तरीका है.

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