रीवा। कभी राजभोग की खुशबू लेकर भगवान अपना भोग पूरा करते थें, तो वही भगवान अब दाल और जली रोटी को देखकर आत्मसंतुष्टी कर रहे है। भगवान के भोग का यह मामला रीवा के ऐतिहासिक लक्ष्मणबाग मंदिर से सामने आ रहा है। ऐसा बताया जा रहा है कि लक्ष्मणबाग में विराजमान चारोधाम के 12 मंदिरों में भगवान को पुजारी दाल और जली रोटी का भोग लगने के लिए मजबूर हो रहे है, जबकि यह वही लक्ष्मणबाग है जंहा विराजमान भगवान की ठाठ-बाट देखते ही बनती थी और भगवान को राजभोग लगता था।
300 साल पुराना है मंदिर
लक्ष्मणबाग मंदिर तकरीबन 300 साल पुराना है। रीवा के तत्कालीन नरेश विश्वनाथ सिंह ने इस मंदिर की स्थापना करवाई थी। यहां चारोधाम के देवता विराजमान है। बताते है कि इस मंदिर को बनाए जाने के पीछे रीवा महाराज की सोच थी कि उनके राज्य की जनता अगर चारोधाम की यात्रा नही कर पाती है तो वह लक्ष्मणबाग की यात्रा करके चारोधाम के भगवान का दर्शन और पूजा का पुण्य लाभ ले सकें। यहां के लोगो का कहना है कि स्वतंत्रता के बाद भी काफी समय तक इस मंदिर की शोभा देखते बनती थी। वर्ष 2005 में यहां महंत को पद से हटाकर कलेक्टर को प्रशासक बनाया गया है। इस मंदिर में जंहा पहले रोजाना भजन-कीर्तन, तुलसी-चंदन की खुशबू और पकवानों की महक होती थी तो अब यहां सन्नाटा रहता है।
कई राज्यों में है संपत्ति
लक्ष्मणबाग संस्थान की स्थापना के साथ ही राज परिवार ने इसे धन सम्पदा से भी परिपूर्ण किए थें। रीवा ही नही कई राज्यों में लक्ष्मणबाग की संपत्तियां हैं। 45 स्थानों पर अब भी मंदिर हैं, जो कि इस संस्थान के लिए इंकम का स्रोर्स है, हांलाकि कई जगह मुकदमें बाजी भी चल रही, फिर भी जो इंकम है उससे भगवान के भोग पर असर पड़े यह लोगो को आश्चर्य लगता है। रीवा के चिरहुला मंदिर परिसर के साथ ही संभाग के विभिन्न हिस्सों में स्थित खेती के लिए भूमियों और बगीचों की नीलामी आदि से लक्ष्मणबाग के लिए इंकम बनाई गई है, फिर भी मंदिर में भगवान को भोग और दियाबाती की समस्या आ रही है। यह शासन- प्रशासन के लिए जांच का विषय है और जांच के बाद ही सच्चाई सामने आएगी।