BRICS vs America : पिछले कुछ दिनों से वैश्विक मंच पर एक नया इतिहास रचा जा रहा है। ब्रिक्स यानी ब्राज़ील, रूस, भारत, चीन और दक्षिण अफ्रीका ने पश्चिमी देशों के दबाव के ख़िलाफ़ एकजुट होकर दुनिया को चौंका दिया है। ये देश, जो पहले आपसी मतभेदों के कारण अलग-थलग दिखते थे, अब पश्चिमी दुनिया के सामने एक मज़बूत ताकत बनकर उभरे हैं। यह कोई साधारण कूटनीतिक कदम नहीं, बल्कि वैश्विक अर्थव्यवस्था और शक्ति के समीकरण को बदलने वाला एक बड़ा बदलाव है। आइए इस ऐतिहासिक मोड़ की पूरी कहानी समझने की कोशिश करते हैं।
यह कहानी 2022 में रूस से शुरू हुई। BRICS vs America
पिछले कुछ वर्षों में, पश्चिमी देशों, खासकर अमेरिका और यूरोपीय संघ ने ब्रिक्स देशों पर तरह-तरह के दबाव डाले हैं। 2022 में रूस के लगभग 300 अरब डॉलर के विदेशी मुद्रा भंडार को पश्चिमी देशों ने ज़ब्त कर लिया, जिससे पूरी दुनिया में हड़कंप मच गया। इससे ग्लोबल साउथ यानी विकासशील देशों को बड़ा झटका लगा और उन्हें एहसास हुआ कि पश्चिमी देशों में उनकी संपत्ति सुरक्षित नहीं है। इस घटना ने ब्रिक्स देशों को एक नई दिशा दी और उन्होंने अमेरिकी डॉलर पर निर्भरता कम करने, यानी ‘डी-डॉलराइज़ेशन’ के अभियान को तेज़ कर दिया।
चीन और भारत पर भारी शुल्क लगाए गए। BRICS vs America
इस बीच, अमेरिका ने चीन के खिलाफ अपने व्यापार युद्ध को और तेज़ कर दिया और चीनी वस्तुओं पर भारी शुल्क लगा दिया। जवाब में, चीन ने भी अमेरिका के खिलाफ इसी तरह के कदम उठाए। इसके अलावा, अमेरिका ने रूसी तेल खरीदने पर भारत पर पहले 25 प्रतिशत और फिर 50 प्रतिशत शुल्क लगाया, जबकि इससे पहले उसने वैश्विक बाजार को स्थिर करने के लिए भारत को रूस से तेल खरीदने के लिए प्रोत्साहित किया था। ब्राज़ील पर भी 50 प्रतिशत शुल्क लगाया गया, जिसके जवाब में ब्राज़ील के राष्ट्रपति लूला दा सिल्वा ने साफ़ कहा कि उनका देश इस ‘सज़ा’ को चुपचाप बर्दाश्त नहीं करेगा।
दक्षिण अफ्रीका और ब्राज़ील को भी धमकियाँ दी गईं।
अमेरिकी विदेश विभाग ने दक्षिण अफ्रीका के खिलाफ एक रिपोर्ट जारी की, जिसमें उस पर वहाँ के नस्लीय अल्पसंख्यकों के अधिकारों का उल्लंघन करने का आरोप लगाया गया। दक्षिण अफ्रीका ने इसकी कड़ी आलोचना की और इसे ‘विरोधाभासी’ बताया। इसके अलावा, नाटो प्रमुख ने भारत, चीन और ब्राज़ील को धमकी दी कि वे यूक्रेन मुद्दे पर रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन से बात करें, अन्यथा उन्हें प्रतिबंधों का सामना करना पड़ेगा। यूरोपीय संघ ने भी भारत पर रूसी तेल न खरीदने का दबाव डाला, जबकि वह स्वयं रूस से ऊर्जा संसाधन आयात कर रहा है।
ब्रिक्स के इस उदय को ऐतिहासिक क्यों माना जा रहा है?
ब्रिक्स अब केवल एक आर्थिक गठबंधन नहीं रहा, बल्कि एक ऐसी ताकत बन गया है जो पश्चिमी देशों के एकध्रुवीय विश्व को चुनौती दे रहा है। ये देश एक बहुध्रुवीय विश्व की दिशा में काम कर रहे हैं, जहाँ कोई एक देश पूरी दुनिया पर हावी न हो। भारत, रूस, चीन, ब्राज़ील और दक्षिण अफ्रीका की यह एकता न केवल उनकी संप्रभुता की रक्षा कर रही है, बल्कि ग्लोबल साउथ के अन्य देशों को भी प्रेरित कर रही है। ब्रिक्स की यह एकता वैश्विक व्यापार, कूटनीति और अर्थव्यवस्था में बड़े बदलाव ला सकती है। अब देखना यह है कि ब्रिक्स देश अपनी एकता से इस कहानी को अंजाम तक पहुँचा पाते हैं या नहीं।
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