Uttrakhand Panchayat Election : आज हम आपको एक ऐसे गांव की कहानी बताएंगे जहां 78 सालों से चुनाव नहीं हुए और साथ ही ये भी बताएंगे कि वहां मुखिया बनकर चीन कैसे जाता है। उत्तराखंड के 12 जिलों में त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव की तारीखों का ऐलान हो गया है. यहां दो चरणों में मतदान होगा। पहले चरण का मतदान 10 जुलाई और दूसरे चरण का 15 जुलाई को होगा। ऐसे में चुनावी बिगुल बज चुका है. सभी पार्टियां तैयारियों में जुट गई हैं। इस बार प्रधान ग्राम पंचायत के 7,499 पदों के लिए चुनाव होने हैं। लेकिन नैनीताल जिले में एक गांव ऐसा भी है, जहां चुनाव के शोर से कोई फर्क नहीं पड़ता। यहां पिछले कई सालों से आपसी सामंजस्य से प्रधान का चुनाव हो रहा है।
बिना चुनाव के चुने गए 10 प्रधान। Uttrakhand Panchayat Election
इस गांव का नाम तल्ला बोथों है, जो नैनीताल में है. इस गांव में अब तक 10 प्रधान चुने जा चुके हैं. लेकिन आज तक इस गांव में चुनाव की जरूरत नहीं पड़ी। क्योंकि यहां ग्राम प्रधान निर्विरोध चुने जाते हैं. इस गांव से केवल वही उम्मीदवार नामांकन दाखिल करने जाता है, जिसे गांव के लोग आपसी सहमति से चुनते हैं। इस गांव के बुजुर्गों और सभी लोगों की सहमति से यहां ग्राम प्रधान चुना जाता है, जो गांव की सभी जरूरतों को पूरा करता है और अपना काम अच्छे से करता है।
आज तक चुनाव कराने की जरूरत क्यों नहीं पड़ी?
आजादी के बाद से तल्ला बोथों गांव में कभी चुनाव कराने की जरूरत नहीं पड़ी। यहां पांच साल में चुने जाने वाले ग्राम प्रधान के लिए गांव के बुजुर्ग खुली बैठक बुलाते हैं। इस बैठक में सबसे पहले यह देखा जाता है कि आरक्षण नीति के तहत किस वर्ग को मौका मिलना चाहिए। इसके बाद सभी इच्छुक उम्मीदवारों। उनके परिवारों को बैठक में बुलाया जाता है।
सर्वसम्मति से ग्राम प्रधान चुना जाता है। Uttrakhand Panchayat Election
बैठक में सभी उम्मीदवार अपने विचार रखते हैं। फिर सभी ग्रामीण मिलकर उम्मीदवारों में से एक उम्मीदवार चुनते हैं, जो प्रधान बनने के योग्य हो। इसके साथ ही जो ईमानदार और भरोसेमंद हो। उसके बाद ही उसे नामांकन के लिए भेजा जाता है। इसी प्रक्रिया के तहत तल्ला बोथों में ग्राम प्रधान चुने जा रहे हैं। इस गांव की पूर्व प्रधान गीता मोहरा का कहना है कि वह भी बिना किसी मतदान के चुनी गई हैं।
क्या कहा पूर्व प्रधान गीता मोहरा ने? Uttrakhand Panchayat Election
पूर्व प्रधान गीता मोहरा ने कहा कि जब मैं ग्राम प्रधान चुनी गई थी, तब न कोई मतदान हुआ था, न कोई प्रचार। गांव वालों ने मुझे चुना और मैंने जाकर नामांकन दाखिल किया। गांव के लोगों का मानना है कि अगर ग्राम प्रधान को चुनावी मुकाबले से बाहर रखा जाए तो इससे गांव की एकता मजबूत होती है। तब वह सिर्फ एक पद नहीं रह जाता बल्कि वह गांव का सेवक और प्रतिनिधि बन जाता है।
चुनाव में खर्च होने वाला पैसा गांव के विकास में लगाया जाता है।
तल्ला बोथों गांव के लोगों का कहना है कि वह चुनाव पर होने वाले खर्च की बचत कर रहे हैं। ऐसे में उनकी मांग है कि उनके द्वारा बचाए गए इस पैसे को उनके गांव के विकास में खर्च किया जाए या फिर किसी और तरीके से उनके गांव को इस पैसे का लाभ मिले। उन्होंने कहा कि नीम करौली बाबा के कैंची धाम से करीब 10 किलोमीटर दूर स्थित इस गांव में बंदरों का आतंक है। इस समस्या का समाधान किया जाना चाहिए। यह एक ऐसा गांव है जहां पक्की सड़कें, पानी, बिजली जैसी सभी तरह की सुविधाएं हैं। इसके साथ ही गांव में सोलर लाइट भी लगी हुई हैं।
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