वो आवाज़ थी या जादू जिसकी गिरफ्त में हम यूं आए कि बाहर निकल ही नहीं पाए, हम कैसे भी हो हमें दुनिया अच्छा कहे या बुरा हम अपने सुख दुख किसी से बांटते हो या न बांटते हों पर हम इस आवाज़ से तो ज़रूर खुद को साझा करते हैं वो हमारे हर जज़्बे को आवाज़ देती है, ज़िंदगी का कोई पड़ाव कोई पहलू हो वो हमारे साथ खड़ी लगती हैं, आज भी ,जब वो हमारे साथ नहीं है तब भी वो हमारे दिलों में बस्ती हैं अपने बेमिसाल गीतों के ज़रिए।
दिल से ये आवाज़ आती है कि गीतों की अमर बेल हो तुम , माधुर्य की खनक है तुमसे ,सुर साज की महफिल कुछ नहीं तुमसे जुदा होके , हर किसी के मन मे बसी हो तुम संगीत की प्रथम पाठशाला होके। जी हां हम बात कर रहे हैं स्वर साम्राज्ञी लता मंगेशकर की ,जो इस फानी दुनिया को तो अलविदा कह गईं पर मानो वो अपने लिए की किनारा फिल्म का गीत गा गई थीं ,”नाम गुम जाएगा चेहरा ये बदल जाएगा मेरी आवाज़ ही पहचान है गर याद रहे ….”और ये गीत तो ऐसा है जो वक्त से परे उनकी पहचान बताने के लिए काफी है,जिसे आज कल ,कभी भी सुना जाएगा तो लता मंगेशकर एक ही होंगी उनसी दूसरी कोई आवाज़ नहीं सुनाई देगी इसी सुरीलेपन के लिए उस्ताद बड़े ग़ुलाम अली खान साहब ने कहा था कि कमबख्त कभी बेसुरी ही नहीं लगती ।
जिसे आप उनके किसी भी गीत में महसूस कर सकते हैं ,फिर चाहे वो हमारे शहीदों को श्रद्धांजलि अर्पित करता आंसुओं से भीगा उनको स्वर कोकिला बनाने वाला गीत ऐ मेरे वतन के लोगो हो या नन्हीं सी बच्ची की कहानी सुनाता गीत ,सुनो छोटी सी गुड़िया की लंबी कहानी… ,हो या बहन के रूप में गाया गीत ,हम बहनों के लिए ,मेरे भइया हो ,या फिर एक प्रेमिका का गाया गीत ,फूल तुम्हे भेजा है खत में… ,हो या टूटे दिल की दास्तां सुनाता गीत ,दुनिया वालों सदके तुम्हारे , हो या दोस्त से दगा़ मिलने का क़िस्सा सुनाता गाना ,दुश्मन न करे दोस्त ने… ,हो ,दुल्हन को बधाई देता गीत ,दुल्हन बनती हैं नसीबों वालियां .., हो या फिर तेरा मेरा साथ रहे , या मां के रूप में उनका गाना ,बड़ा नटखट है.. , हो ,इन सब गानों के अलावा इतराने के अंदाज़ को बयां करता गीत ,आजकल पांव ज़मीन पर… , हो और जब भाभी के रूप में आईं तो कहने लगीं ,लो चली मैं अपने देवर….,
ग़ज़लों की बात करें तो उनकी ग़ैर फिल्मी ही नही बल्कि फिल्मों ग़ज़लें भी पुरअसर अंदाज़ में हमारे दिलों में उतर गईं हज़ारों ख्वाहिशे ऐसी की हर ख्वाहिश पे दम निकले ऐसी ही ग़ज़ल है जिसे कई गुलुकारों ने अपनी आवाज़ दी है क़व्वाली , तेरी महफिल में किस्मत आज़माकर हम भी देखेंगे…, को भूल पाना मुश्किल है और जब गाया ,अल्लाह तेरो नाम ईश्वर तेरो नाम…, इनके अलावा भी जिंदगी का कोई पहलू उनके गीतों और आवाज़ से अछूता नहीं रहा हमारे हर अहसास को वो मर्म स्पर्श करती हैं कभी कभी तो उनको सुनके यूं लगता है कि वो हमें परंपरागत भी बना देती हैं क्योंकि लता जी की आवाज़ में त्योहारों का आनंद आता है उनके भाव गीतों के माध्यम से आसानी से व्यक्त हो जाते हैं और हम इतने भावुक हो जाते हैं कि सहज ही हर परंपरा का निर्वहन करने को तैयार हो जाते हैं,और हमारे शादी ब्याह से जुड़े रीति रिवाजों को हम कैसे भूल सकते हैं जिसमें हर रिश्ते के लिए लता जी के गाए गीत हमें मिल जाते हैं और हम गाते गुनगुनाते हुए एक जश्न मना लेते हैं
और अगर हम कहें कि वो अपने इन गीतों में हम सबके जज़्बातों को समझने वाली वो साथी बन जाती हैं जिसकी हमें ज़रूरत होती है तो ग़लत नहीं होगा ।
कुछ गाने तो उन्होंने ऐसे भी गाए जिन्हें सुनकर ये अंदाज़ा लगाना मुश्किल होता है कि ये उन्होंने ही गाए हैं क्योंकि ये उनकी आवाज़ की फितरत से थोड़े अलग मालूम होते हैं जैसे आ जाने जान मेरा ये हुस्न जवां जैसा केब्रे सॉन्ग ।
फिल्म संगीत को शास्त्रीयता की ऊंचाई तक पहुंचाने वाली हम सबकी लता दीदी ,के स्वर ने गीतों को वो मधुरता दी कि हर शब्द सुर में गाता है अपने चरित्र को व्यक्त करता है, जिसमें छुपा होता है वो भाव जिसका हम आनंद लेते हैं फिर चाहे वो किसी भी मूड का गाना हो लता जी ने उसे अपने स्वरों से निखर दिया है ।
आपने अपना पहला हिंदी गाना, “माता एक सपूत की दुनिया बदल दे तू” मराठी फिल्म गजभाऊ के लिए रिकॉर्ड किया, उन्हें सफलता 1948 की फिल्म मजबूर के गीत “दिल मेरा तोड़ा” से मिली। लेकिन , उनकी पहली बड़ी हिट 1949 की फिल्म महल का गाना “आएगा आनेवाला” था। ये वो कारवां था जो उनकी आखिरी फिल्म रंग दे बसंती तक चला गीत था ,लुका छुपी बहुत हुई सामने आ जा न… ,कई प्राइवेट एल्बम्स में भी उन्होंने अपनी मखमली आवाज़ का जादू चलाया ,जिनमें ,अपनी माद्रे वतन को ए आर रहमान के संगीत निर्देशन में खूब पसंद किया गया।
जब अवार्ड लेने मना कर दिया लता जी ने
1974 में, तीन राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार जीतने वाली लता मंगेशकर लंदन के रॉयल अल्बर्ट हॉल में प्रदर्शन करने वाली पहली भारतीय बनीं। भारत रत्न’ पद्म भूषण, दादा साहब फाल्के पुरस्कार, पद्मविभूषण से वो नवाज़ी गईं और एक वक्त वो भी आया जब उन्होंने कोई भी अवॉर्ड लेने से ये कहकर मना कर दिया कि अब नए कलाकारों को अवॉर्ड दीजिए।
लता मंगेशकर का बचपन :
28 सितम्बर, 1929; को ‘इंदौर, मध्यप्रदेश में पंडित दीनानाथ मंगेशकर के घर जन्मीं लता जी का बचपन का नाम हेमा था
पिता जी रंगमंच कलाकार थे उनका अपना थिएटर भी था जिसमें उनके नाटक भाव बंधन की नायिका का नाम था लतिका जो उन्हें बहोत पसंद आया और उन्होंने हेमा को नाम दे दिया लता जो आगे चलकर गीतों की अमर बेल बन गईं क्योंकि पिता जी ने गाने के साथ अभिनय के भी गुर सिखाए ,पर पिता जी की असमय मृत्यु के कारण घर परिवार अस्त व्यस्त हो गया और आर्थिक तंगी आ गई जिसके बाद न चाहते हुए लता जी को घर खर्च उठाने के लिए अभिनय में जाना पड़ा और 13 साल की उम्र से उन्होंने बतौर बाल कलाकार काम करना शुरू किया ,उन्होंने 1942 से 1948 के बीच हिन्दी व मराठी में क़रीबन 8 फ़िल्मों में काम किया। इन में से कुछ के नाम हैं: “पहेली मंगलागौर” 1942, “मांझे बाल” 1944, “गजाभाऊ” 1944, “छिमुकला संसार” 1943, “बडी माँ” 1945, “जीवन यात्रा” 1946, “छत्रपति शिवाजी” 1954। पर उनकी मंज़िल गीत ही थे ,
लता जी ने एक बार कहा था कि नूरजहां उनकी मॉडल रही हैं. वो उनके गानों को सुनती आई हैं. वहीं, नूरजहां भी अक्सर कहा करती थीं कि जब भी फुरसत में होती हूं तो लता के गाने ज़रूर सुनती हूं. ।
लता जी का संघर्ष :
उनकी आवाज़ ने छह दशकों से भी ज़्यादा संगीत की दुनिया को अपने सुरों से नवाज़ा, 20 भाषाओं में 30,000 से ज़्यादा गाने गाये। उनकी आवाज़ सुनकर कभी किसी की आँखों में आँसू आए तो कभी सीमा पर खड़े जवानों को सहारा मिला।
पर किसी के लिए भी कमियाबी की राह आसान नहीं होती लता जी को भी बहुत मुश्किलों का सामना करना पड़ा , कड़ी धूप में मीलों पैदल चलकर जाती थीं स्टूडियो के लिए ताकि पैसे बचा सकें लेकिन उनकी चप्पलें मुंबई की सड़कों पर बिछे तारकोल में चिपक जाती थीं और थके क़दम उठ नहीं पाते थे आगे का सफर तय करने के लिए फिर वो सड़क पर ही रुक कर उसे साफ करती तक कहीं जाकर बड़ी मुश्किल से कोई गाना मिलता क्योंकि कई संगीतकारों ने उन्हें शुरू में बहुत पतली आवाज़ का कहकर काम देने से साफ़ मना कर दिया था।
उस समय नूरजहाँ ,शमशाद बेगम और सुरैया जैसी गायिकाओं का राज था जिनके साथ लता मंगेशकर जी की बराबरी की जाती थी जिसकी वजह से लता जी ने अपनी गायकी को और गायिकाओं के अंदाज़ में ढाला और शुरुआत के कुछ गाने उनके इतना मैच करते हैं इंडस्ट्री की गायिकाओं से कि ये अंदाज़ा लगाना मुश्किल है कि ये लता जी गा रहीं हैं लेकिन धीरे-धीरे उन्होंने अपनी अलग पहचान बना ली और अपनी ही शैली विकसित की जिससे वो लता मंगेशकर बन गईं जिसे फिर कोई कॉपी नहीं कर सका काम भी ऐसे मिलने लगा कि वो सबकी पहली पसंद बन गईं।
लता जी संगीत प्रेमियों के दिलों पर छाती गयीं :
लता जी को पहचान मिली सन् 1947 में, जब फ़िल्म “आपकी सेवा में” उन्हें एक गीत गाने का मौक़ा मिला।
और 1949 तक बरसात, अंदाज, दुलारी और महल के गीतों के ज़रिए वो अपनी पतली और मधुर आवाज़ के साथ संगीत प्रेमियों के दिलों पर छा गईं । पर एक कमी फिर भी रह गई उनके मराठी टोन की वजह से सबने अंदाज़ा लगाया कि उनके उर्दू अल्फाज़ों का तलफ़्फ़ुज़ ठीक नहीं होगा इसलिए उन्हें ग़ज़लों से दूर रखा पर फिर इस कमी को भी उन्होंने पूरा कर लिया उर्दू सीख कर और ऐसे सीखी कि कभी कोई नुक्ता ग़लत नहीं हुआ गाने में ,इस बात पे एक बात याद आ रही है,…कवि और फिल्म जानकार यतीन्द्र मिश्रा की लता मंगेशकर पर एक किताब है ‘लता-सुर गाथा’, इसमें लता मंगेशकर से जुड़ी कई दिलचस्प वाकये दर्ज हैं।
यातीन्द्र मिश्रा ने ये किताब लता मंगेशकर से बातचीत के आधार पर ही लिखी है। इसमें एक किस्सा नरगिस दत्त की माँ जद्दनबाई से लता मंगेशकर को मिली तारीफ का भी है। तो हुआ यूं कि बॉम्बे टॉकीज में ‘महल’ फिल्म के लिए रिकॉर्डिंग चल रही थी, लता मंगेशकर गीत को रेकॉर्ड कर रहीं थीं, वहीं पर किसी फिल्म की शूटिंग के सिलसिले में नरगिस दत्त और उनकी माँ जद्दनबाई भी थीं, और वे दोनों लता मंगेशकर को गाते हुए सुन रहीं थीं। जद्दनबाई खुद एक नामी गायिका थीं, रिकॉर्डिंग खत्म होने के बाद जद्दनबाई ने लता मंगेशकर को अपने पास बुलाकर उनके गाने की तारीफ करते हुए, उनका नाम पूछा, और जद्दनबाई ये जान कर खुद हैरान रह गईं कि वे मराठी हैं इसके बावजूद वो उर्दू लफ्जों के इस गीत को इतना बेहतरीन गा रहीं हैं, और ये मशहूर गीत था’आएगा आने वाला आएगा’ जिसके अंतरे के बोल “दीपक बग़ैर कैसे परवाने जल रहें हैं” का ‘बग़ैर’ शब्द सुनकर जद्दनबाई बहोत खुश हो गईं, और उन्होंने लता मंगेशकर से कहा था, तुम एक दिन बहुत बड़ी गायिका बनोगी और जल्दी ही उनके ये बात सच हो गई।
लता जी का गया हर गीत हमें मंत्रमुग्ध कर देता है हम उसकी रौ में बह जाते हैं फिर चाहे वो
शास्त्रीय संगीत पर आधारित ,पिया रोज नैन लगे रे हो…,या पाश्चात्य धुन पर आधारित , आ जाने जाँ …,हो या फिर लोक धुन की खुशबू में रचा-बसा,दिल तड़प तड़प के दे रहा …., हो या फिर भटकती आत्मा के रहस्य को उजागर करता ,कहीं दीप जले कहीं दिल हो …, या आज रे मैं तो कबसे खड़ी इस पार हो । आपने दिग्गज शास्त्रीय गायकों में पं भीमसेन जोशी और पं जसराज के साथ भी मनोहारी युगल-गीत गाए हैं। गज़ल के बादशाह जगजीत सिंह के साथ आपकी एलबम “सजदा” ने लोकप्रियता की बुलंदियों को छुआ और भी कई ग़ैर फिल्मी गीत ग़ज़ल और भजन हमारे दिलों के क़रीब हैं जैसे – नैना लोभी रे…तुमसे मिलकर।
श्याम बेनेगल ; “लता मंगेशकर के जैसा कोई और हुआ ही नहीं है
फ़िल्मकार श्याम बेनेगल कहते कि “लता मंगेशकर के जैसा कोई और हुआ ही नहीं है। एक मिस्र की ‘उम्मे कुल्सुम’ थीं और एक लता।” पंडित हरिप्रसाद चौरसिया की लता जी के बारे में राय है कि “कभी-कभार ग़लती से ऐसा कलाकार पैदा हो जाता है।” पटकथा लेखक और गीतकार जावेद अख़्तर ने लता मंगेशकर के लिए कई लाजवाब और दिल को छू लेने वाले गीत लिखे हैं। वे कहते हैं, “हमारे पास एक चांद है, एक सूरज है, तो एक लता मंगेशकर भी है।”
अभिनेता दिलीप कुमार साहब कहते थे कि “लता जी की आवाज़ एक रौशनी है, जो सारे आलम के गोशे-गोशे में मौसिकी का उजाला फैलाती है। उनकी आवाज़ एक करिश्मा है।”
अमिताभ बच्चन कहते हैं कि “लता मंगेशकर की आवाज़ एक सदी की आवाज़ है।”
मशहूर नाटककार विजय तेंडुलकर कहते हैं कि “इस दुनिया में लोग बहुत व्यावहारिक होते हैं, पर लता जी के गीत रोज़ सुनते हैं। उससे किसी का पेट नहीं भरता, लेकिन सुने जा रहे हैं पागलों की तरह।” शास्त्रीय गायक उस्ताद आमिर ख़ान कहते कि “हम शास्त्रीय संगीतकारों को जिसे पूरा करने में तीन से डेढ़ घंटे लगते हैं, लता जी वह तीन मिनट में पूरा कर देती हैं।”
प्रसिद्ध संगीतकार एस. डी. बर्मन ने एक बार कहा था कि “जब तक लता है, तब तक हम संगीतकार सुरक्षित हैं।”
प्रसिद्ध ग़ज़ल गायक जगजीत सिंह ने कहा था कि “बीसवीं सदी की तीन बातें याद रखने लायक हैं, एक चांद पर आदमी की जीत, दूसरा बर्लिन की दीवार का टूटना और तीसरा लता का जन्म।”
शाहरुख़ खान भी कायल हैं लता जी के :
अभिनेता शाहरुख़ ख़ान का कहना है कि “मेरी ख़्वाहिश है कि मैं किसी अभिनेत्री की भूमिका निभाऊं और मुझे पर्दे पर लता जी की आवाज़ पर अभिनय करने का मौका मिले।” सन 1974 में दुनिया में सबसे अधिक गीत गाने का ‘गिनीज़ बुक रिकॉर्ड’ उनके नाम पर दर्ज है। उन्होंने 1980 के बाद से फ़िल्मों में गाना कम कर दिया था और कहानी, संवाद आदि पर अधिक ध्यान देने लगी थीं। पर जब भी वो गीतों को आवाज़ देती वो बेशकीमती हो जाता ऐसे ही गीत हैं ,जिया जले जा जले…,दो पल रुका ख्वाबों का …,मेंहदी लगाके रखना …,आवाज़ दो हमको हम खो गए …,और भी ऐसे कई गाने ।
लता जी के नाम से पुरस्कार दिए जाते हैं :
लता जी ही एकमात्र ऐसी जीवित महिला गायिका थीं, जिनके नाम से पुरस्कार दिए जाते हैं। आनंद गान बैनर’ तले फ़िल्मों का निर्माण भी उन्होंने किया है और इसके साथ ही संगीत भी दिया है। रिकॉर्डिंग के लिये जाने से पहले लता जी कमरे के बाहर अपनी चप्पलें उतारती थीं और हमेशा नंगे पाँव गाना गाती थीं। उन्होंने अपना सारा जीवन संगीत को समर्पित कर दिया ,घर परिवार की ज़िम्मेदारी और संगीत से बढ़कर उनके लिए कुछ नहीं था जिसकी वजह से उन्होंने कभी विवाह भी नहीं किया ,संगीत प्रेमियों के लिए सरस्वती का रूप रहीं और एक किंवदंती की तरह ही उन्होंने बसंत पंचमी में मां सरस्वती की पूजा के बाद 6 फरवरी 2022 को अंतिम सांस लेकर अपने चाहने वालों के दिलों में ये आस्था और मज़बूत कर दी।