Memories of 15 August 1947:गुलामी से आजाद होते भारत की पहली सुबह की कहानी

Memories of 15 August 1947: आज पूरा देश 78वां स्वतंत्रता दिवस मना रहा है। हमें आजाद हुए 77 वर्ष पूरे हो चुके है। आज देश भर में उत्सव मनाया जा रहा है और जगह जगह सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित हो रहे है। लेकिन ये जानना बेहद दिलचस्प है कि आजादी की सुबह पूरे देश में किस तरह का माहौल था।

आज हर व्यक्ति उस रात के बारे में जानना चाहता है जब हमारे पूर्वजों ने आजाद मुल्क में पहली बार सांस ली होंगी। यह जानना बेहद दिलचस्प है कि कैसी रही होंगी 14 – 15 अगस्त 1947 की रात। कैसा रहा होगा अपनी दिल्ली का नजारा ? कैसे लोगों ने एक आजाद होते देश को न केवल प्रत्यक्ष तौर पर देखा होगा बल्कि जिया भी होगा। आज हम आपको बताते है कि कैसी रहीं होगी वो रात और आजादी की वो पहली सुबह

Freedom At Midnight के लेखक डोमिनिक लैपियर साफ़ तौर पर 14 अगस्त 1947 के ऐतिहासिक दिन का वर्णन करते हुए लिखते है कि सरकारी दफ्तरों , सैन्य छावनियों , निजी मकानों पर फहराते यूनियन जैक को उतारा जाना शुरू हों चुका था। यह दिन अपने आप में बेहद महत्वपूर्ण था।

14 अगस्त को सूर्य जब डूबा तो यूनियन जैक ने ध्वज दंड का त्याग कर दिया , ताकि वह चुपके से भारतीय इतिहास के भूतकाल की एक चीज बनकर रह जाए। समारोह के लिए आधी रात को धारा सभा भवन पूरी तरह तैयार था। जिस कक्ष में भारत के वायसरायों की भव्य ऑयल – पेंटिंग्स लगी रहा करती थी , वहीं अब अनेक तिरंगे झंडे शान से लहरा रहे थे।

कॉलिन्स और लैपियर लिखते है , ” 14 अगस्त की सुबह से गांव -गांव शहर – शहर में जश्न का माहौल शुरू हो गया था। दिल्ली के केंद्र ( लाल किला ) में लोगों का हुजूम उमड़ने लगा। लोग बैलगाड़ी , कार , साइकिल , मोटर कार , घोड़ों पर सवार होकर दिल्ली की ओर चल दिए। सभी आजादी की पहली सुबह का प्रत्यक्ष दर्शी बनना चाहते थे। लोग नाच-गा रहे थे। एक दूसरे को बधाइयाँ दे रहे थे और हर तरफ राष्ट्र गान की धुन सुनाई पड़ रही थी। ‘

गांव से आये लोग अपने बच्चों को आजादी का मतलब अपने -अपने हिसाब से समझा रहे थे। जैसे अब हमारे खेत में ज्यादा फसल होंगी , अब कही आने -जाने पर रोक टोक नहीं होगी , अब हम ज्यादा पशु रख सकेंगे क्योंकि अब हमें आजादी मिल गई। लोगों ने बसों का टिकट लेना बंद कर दिया , लोग कहने लगे अब टिकट की क्या जरूरत अब तो हम आजाद हो गए।

सबके मन में आजाद भारत को लेकर एक सोच थी , एक सपना था। क्योंकि इनमें से कोई भी आजाद भारत में कभी नहीं रहा था। लोग देखना चाहते थे कि आजाद भारत कैसा होता है ?

आर. एल . हांडा लिखते हैं – ” रात तीन बजे तक शपथ – ग्रहण आदि की बाद समारोह समाप्त हो गया। उस दौरान तमाम लोग वापस घर लौट गए , कुछ लोग रात में फुटपाथ में सो गए। अगले दिन 15 अगस्त को पंडित जवाहर लाल नेहरु ने यूनियन जैक की जगह भारत का अपना तिरंगा फहराया।

आजादी की पहली सुबह का ये जश्न आधी रात से ही जारी था। 14 -15 अगस्त से लोग उत्साहित थे। उस रात वन्देमातरम् और जन गण मन के राष्ट्रीय गीतों से चारों तरफ एक नवीन ऊर्जा का प्रवाह हो रहा था।

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