Super Hit Songs Of Bollywood :आपको पता है कुछ गानों के पीछे ऐसी कहानी है कि उन्हें सुनके लगता है कि अगर वो ऐसे न होते तो शायद इतने हिट न होते कैसे ?तो ज़रा ग़ौर से सुनिए ‘बम्बई का बाबू’ फिल्म का बड़ा मशहूर और सुरीला मगर दर्द में डूबा गाना “चल री सजनी अब क्या सोचे” जो मुकेश की आवाज़ में अगर न होता तो हो सकता है संगीत प्रेमियों को इतना पसंद न होता लेकिन क्या आपको पता है मुकेश से पहले इसे कौन गाने वाला था ? नहीं ! तो हम आपको बता दें कि एस. डी. बर्मन इसे किशोर कुमार से गवाना चाहते थे लेकिन उन्होंने काफी टाल मटोल की और एस डी बर्मन से मिलने ही नहीं आये इसलिए एस डी बर्मन ने ये गीत मुकेश को गाने के लिए कहा और ये गाना मुकेश की आवाज़ में नायाब हो गया।
अगले गाने की बात करें तो याद आता है “दिल के अरमा आंसुओं में बह गए” जो सलमा आग़ा को इतना पसंद आया था कि वो ख़ुद इसे गाना चाहती थीं इसलिए उन्होंने फिल्म निर्माता बी आर चोपड़ा से इसे गाने की ख़्वाहिश ज़ाहिर की ,जबकि रवि ने इसकी धुन आशा भोसले के हिसाब से तैयार की थी ख़ैर गाने में थोड़ी फेर बदल करने के बाद सलमा आग़ा को ये गाने मिले और ‘निकाह’ फिल्म के साथ उनकी पहचान बन गई जिसमें वो नायिका और गायिका दोनों रहीं।
इस फेहरिस्त में अगला गाना है फिल्म ‘ज़िंदगी ज़िंदगी’ से “ज़िंदगी ये ज़िंदगी तेरे हैं दो रूप” जिसकी धुन समझाने के लिए एस डी बर्मन ने जब इसे गा के सुनाया तो मन्ना डे को ये उनकी आवाज़ में इतना भाया कि उन्होंने ये कहकर इस गीत को उनकी आवाज़ में फाइनल कर दिया कि आप बहोत अच्छा गा रहे हैं ,मै आप जैसा नहीं गा सकता और आख़िरकार एस डी बर्मन की आवाज़ में हमें ये प्यारा सा गाना मिला।
अगला गाना है ‘विश्वास’ फिल्म से “आपसे हमको बिछुड़े हुए” जिसकी धुन तैयार की थी , कल्याणजी आनंदजी ने, गायक मुकेश और गायिका लता मंगेशकर का नाम फाइनल हो चुका था लेकिन मुकेश को कहीं बाहर जाना पड़ा और कल्याणजी आनंद जी ने मनहर उधास और सुमन कल्याणपुर से गाना डब करा लिया ताकि ज़्यादा टाइम न लगे पर जब मुकेश लौटे तो उन्होंने इस गीत को गाने से ये कहकर मना कर दिया कि कितनी अच्छी आवाज़ है ये, आप इसी आवाज को लीजिए और मुकेश की ज़िद पर ये गाना मनहर और सुमन कलयाणपुर की झोली में चला गया।
अब जिस गाने की बात हम कर रहे हैं वो है , “रहा गर्दिशों में हर दम” जिसे मुकेश ने बहोत पहले गा दिया था लेकिन जिस फिल्म के लिए गाया था उसमें काफ़ी गाने हो जाने की वजह से नहीं लिया गया पर मनोज कुमार ने ये गाना सुना था और उनकी दिली ख़्वाहिश थी कि ये गाना उन्हीं पे फिल्माया जाए इसलिए फिर फिल्म ‘दो बदन’ में मनोज कुमार की फरमाइश पर इसे मो रफ़ी ने गाया क्योंकि इस फिल्म के गाने वही गा रहे थे और इस तरह ये गाना सुपर हिट हो गया।
“तुमको देखा तो ये ख्याल आया” 1982 में आई ‘साथ -साथ’ फिल्म का ये गाना जिसके बारे में कहते हैं जावेद साहब ने नहीं ड्रिंक ने कमाल कर दिया ,वो ऐसे कि जावेद अख़्तर ये गाना वक़्त पे नहीं लिख पा रहे थे खुद से ही झुंझला रहे थे लेकिन उन्होंने इसे तब लिखा जब वो थोड़ा ड्रिंक कर चुके थे और वो भी महज़ नौ -दस मिनट में।
“देखा एक ख्वाब तो ये सिलसिले हुए” इस गाने की धुन काफ़ी पहले तैयार हो चुकी थी ,गाना भी क़रीब-क़रीब बन चुका था पर यश चोपड़ा चाहते थे कि फूलों की वादियों में ये गाना शूट हो इसलिए जब तक ट्यूलिप के बाग़ीचे नहीं मिल गए तब तक फिल्मांकन रुका रहा और ये गार्डेन मिलने के बाद ही गीत फिल्माया गया और त्रिकोणीय प्रेम कथा का ये प्यार परवान चढ़ा इस सुपरहिट गीत के ज़रिये।
कैसे बने सुपर हिट गाने | How To Make Super Hit Songs
“आके सीधी लगी” गीत हाफ़ टिकट’ फिल्म का ये गाना किशोर कुमार ने महिला और पुरुष दोनों ही स्वरों में अपनी आवाज़ बदल बदल कर गाया है क्योंकि लता मंगेशकर उस वक़्त स्टूडियो नहीं आ पाईं थी और किशोर कुमार ने मज़ाक़ -मज़ाक़ में ही इसे गा दिया जो सबको भा गया और ये गाना इसी रूप में हम तक पहुँचा और हिट हुआ।
फंटूश के गीत “ऐ मेरी टोपी पलट के आ” की धुन और 1957 की फिल्म ‘प्यासा’ के गीत ‘सर जो तेरा चकराए ‘की धुन आर.डी. बर्मन ने बचपन में ही तैयार कर ली थी जिसे उनके पिता सचिन देव बर्मन ने ये कहकर इस्तेमाल की, कि देखते हैं तुम्हारी धुनें लोगों को पसंद भी आएंगी कि नहीं ,और गाना सुपरहिट हो गया। आर डी बर्मन की थोड़ी और बात करें तो उन्होंने ट्रेफिक में फँस कर भी गाड़ी के ब्रेक और रन के साउंड को महसूस किया और उसी से ‘घर ‘ फिल्म के गीत “तेरे बिना जिया जाए न” की धुन तैयार कर दी थी तो वहीं शोले फिल्म में आधी भरी बोतलों में फूँक मार कर ” महबूबा महबूबा ” गाने का ओपनिंग म्यूज़िक बनाया था इसी तरह ‘शान’ फिल्म के गीत “यम्मा यम्मा “को वो यूँ ही सबके कहने पर गाके देख रहे थे पर उनके गले में खराश होने की वजह से उनकी आवाज़ मुखड़े में जच गयी और ये गाना फिल्म की डिमांड बन गया और सुपरहिट हो गया।
अब करते हैं उस गाने की बात जिसके बारे में नौशाद साहब कहते थे शक़ील बदायूँनी ने ये गीत उनके लिए ही लिखा था जिसे उन्होंने राग पहाड़ी और कहरवा ताल में निबद्ध किया था ,वो कहते ,शक़ील हमेशा अपनी तंगदस्ती को मुझसे छुपाते थे और जब बीमार हुए तो अपनी बीमारी को भी मुझसे ऐसे छुपाया कि उनका आख़री वक़्त आ गया और मै बस उनके लिए पैसों का इंतज़ाम करता रहा वो चुपचाप पंचगनी के अस्पताल चले गये, और मै उन्हें दस गुना ज़्यादा फ़ीस के साथ गाने दिलवाता रहा इसलिए कि उन्हें पैसों कि कोई कमीं न पड़े इलाज के लिए भी। मना करने के बावजूद उन्होंने मेरे कहने पर रात में , ‘राम और श्याम’ फिल्म के लिए गीत लिख दिया जिसके बोल थे “मैंने चाहा कि बता दूँ मै हक़ीक़त अपनी, तू ने लेकिन न मेरा राज़-ए-मोहब्बत समझा, मेरी उलझन मेरी हालात यहाँ तक पहुँचे, तेरी आँखों ने मेरे प्यार को नफ़रत समझा, अब तेरी राह से बेगाना चला जायेगा, शम्मा रह जायेगी परवाना चला जायेगा ,आज की रात मेरे दिल की सलामी लेले …”। और वो मुझे अपने दोस्त को इस नग़्मे के ज़रिये आख़री सलामी पेश करके 20 अप्रैल 1970 को दुनिया -ए-बज़्म से रुख़्सत हो गए।
“छोटी सी ये दुनिया” ,रंगोली फिल्म का ये गीत कैसे बना ये जानकार तो आप हैरान ही हो जाएगें दरअसल शंकर जयकिशन ने एक बार शैलेन्द्र से वादा किया था कि वो उन्हें बतौर गीतकार काम दिलाने के लिए निर्माताओं से सिफारिश करेंगे लेकिन वो ज़रा व्यस्त हो गए और अपना वादा भूल गए इस पर शैलेन्द्र ने उन्हें एक नोट लिखकर भिजवाया जिसमें कुछ पक्तियां लिखी थीं ,छोटी सी ये दुनिया पहचाने रास्ते हैं कहीं तो मिलोगे कभी तो मिलोगे तो पूछेंगे हाल। ” कहने को तो ये चंद लाइनें थीं लेकिन इसमें इशारों-इशारों में गहरा पैग़ाम दिया गया था शंकर और जयकिशन को शैलेन्द्र जी ने जिसे वो समझ भी गए कि भई छोटी सी दुनिया है जाने पहचाने रास्ते हैं ,आज नहीं तो कभी तो मिलेंगे ही फिर वादा भूलने की वजह पूछेंगे वो । ये समझते ही शंकर और जयकिशन ने शैलेन्द्र को इन लाइनों को मुखड़ा बनाकर पूरा गाना लिखने को कहा जिसके बाद 1962 की फिल्म ‘रंगोली ‘में इसे इस्तेमाल किया गया और इस तरह हमें मिला बेहद खूबसूरत गीत।
यहाँ एक गीत का ज़िक्र भी ज़रूरी है “ज़रा सामने तो आओ छलिये छुप छुप छलने में क्या राज़ है यूँ छुप न सकेगा परमात्मा मेरी आत्मा की ये आवाज़ है. ..” जिसे भारत व्यास ने तब काग़ज़ पर उतारा जब उनके बेटे श्याम सुन्दर व्यास घर छोड़ कर चले गए थे ,और इसी दुख के दौरान सुभाष देसाई फिल्म ‘जनम जनम के फेरे’ के लिए उनसे गीत लिखवाने आए और भरत जी ने वही पर्चा उन्हें ये कहकर पकड़ा दिया कि मैंने अपने बेटे के दुख में बस यही लिखा है और कुछ नहीं लिख पाउँगा तो सुभाष देसाई ने उसे वैसा ही फिल्म में इस्तेमाल करने को कह दिया और गाना सुपरहिट हो गया हालाँकि उनके बेटे के मिल जाने के बाद उन्होंने फिल्म के और गाने भी लिखे ऐसे ही ‘रानी रूपमती’ फिल्म का गीत “आ लौट के आजा मेरे मीत तुझे मेरे गीत बुलाते हैं ” भारत व्यास ने अपने दोस्त संगीतकार एस.एन. त्रिपाठी को मनाने के लिए लिखा था।
“तेरी प्यारी प्यारी सूरत को किसी की नज़र न लगे चश्म ए बद्दूर…”फिल्म ‘ससुराल’ का ये गाना जिसके लिखने के पीछे हसरत जैपुरी ने एक यादगार लम्हें के बारे में बताते हुए कहा था कि उस दिन उनका बेटा पैदा हुआ था और उसकी प्यारी सूरत को देखकर उन्हें ये मुखड़ा याद आया था जिसे फिल्म में नायिका की खूबसूरती बयान करने के लिए इस्तेमाल किया गया । तो वहीं फिल्म ‘प्रिन्स’ का गीत “बदन पे सितारे लपेटे हुए” उन्होंने तब लिखा जब विदेश में चमकीली पोशाक पहने एक महिला को अचानक सामने से गुज़रते देखा और हाँ “ये मेरा प्रेम पत्र पढ़ कर, के’ तुम नाराज़ न होना….” गीत सच में ,उनका राधा के नाम लिखा गया प्रेम पत्र ही था जिसे वो मन ही मन प्यार करते थे लेकिन उस तक ये पत्र न पहुँचा पाए और राजकपूर साहब ने इसे फिल्म ‘संगम ‘में इस्तेमाल करके हम सब तक पहुँचा दिया।
अगला गीत जुड़ा है शैलेन्द्र से दरअसल शैलन्द्र अपनी फिल्म ‘तीसरी क़सम’ के फ्लॉप हो जाने की वजह से इतने व्यथित और उदास थे कि उन्हें कुछ सूझ ही नहीं रहा था और विजय आनंद उन्हीं से अपनी फिल्म ‘गाइड’ के गाने लिखवाने की ज़िद पकडे बैठे थे ऐसे में बहोत ज़बरदस्ती करने पर उन्होंने फिल्म की सिचुवेशन को समझकर गाने का एक मुखड़ा लिख दिया “आज फिर जीने की तमन्ना है आज फिर मरने का इरादा है ” पर फिर काफी दिन बीत जाने के बाद भी आगे नहीं लिख पा रहे थे विजय आनंद ने उनसे वजह पूछी तो उन्होंने बताया कि मुझे कुछ सूझ ही नहीं रहा है ये सुनकर विजय आनंद ने उन्हें खाने पे बुलाया या कहलें बाक़ायदा शाही दावत की ,उसके बाद दरवाज़ा बंद कर दिया और कहा आज आप जब तक नहीं जा सकते जब तक अपने गानों से इतिहास न रच दे तो ज़रा तरस खाइये अपने से मिलते जुलते, नायिका जूली के हालात पर वो भी आपकी ही तरह अपनी कला से दुनिया को ख़ुश करना चाहती है अपनी कला से प्रेम करती है लेकिन उसका पति उसकी कला से ही उसे दूर करना चाहता है ऐसे में राजू आज उसे फिर से उसकी कला के पास ले आया है मानों वो जी उठी है जीने मरने की हद से भी आगे गुज़र जाना चाहती है लेकिन अब इसके आगे जूली क्या कहेगी ! तो शलेन्द्र जी ने फ़ौरन लिख दिया “काँटों से खींच के ये आँचल तोड़ के बंधन बाँधी पायल कोई न रोको दिल की उड़ान को दिल वो चला अअअअअ आ आ आज फिर। ….अपने ही बस में नहीं मै . …. आज फिर। ..मै हूँ ग़ुबार या तूफाँ हूँ। … कल के अंधेरों से निकल के… आज फिर जीने की तमन्ना है। “इन अंतरों के साथ गाना पूरा हुआ और विजय आनंद इन बोलों के साथ जूली के आज़ाद होने की ख़ुशी में वाह वाह कहते नहीं थके पर शैलेन्द्र अब और नहीं लिखना चाहते थे और विजय आनंद उनको जाने नहीं दे रहे थे फिर उन्होंने कहा अब जूली के सामने राजू का फरेब आ चुका है जैसे मेरी दी हुई दावत का सच तुम्हारे सामने आ गया है तो बस एक गाना और लिख दो ,इस मिन्नत से बेबस होकर शैलेन्द्र ने गीत लिखा “मोसे छल किये जाए सैयां बेईमान …..”. और इस तरह शैलेन्द्र की क़लम से निकले ये नायब नगीनें।