रीवा का इतिहास भाग- 3 | रीवा के सबसे पुराने मोहल्लों के बसने की कहानी, बड़े रोचक हैं किस्से!

Oldest Locality Of Rewa: रीवा शहर आज बहुत विस्तारित हो चुका है, इसमें बहुत सारे नगर, मोहल्ले और कलोनियां बस चुकी हैं और यह नगर-निगम क्षेत्र से आगे तक फैल चुका है। आज यह जितना आधुनिक बन रहा है, उतना ही रोचक है इसका ऐतिहासिक स्वरूप। तो आइए, रीवा के इतिहास की यात्रा में लौटते हैं पीछे, उस समय में जब रीवा एक नगर के रूप में आकार ले रहा था और यहाँ मोहल्लों आबाद हो रहे थे। रीवा के ये मोहल्ले सिर्फ ईंट और सीमेंट से बनी बस्तियाँ नहीं हैं, बल्कि इनमें बसी हैं सदियों पुरानी कहानियाँ, परंपराएँ और स्मृतियाँ। ये मुहल्ले रीवा की सांस्कृतिक विरासत के जिंदा दस्तावेज हैं, जिनकी पहचान और इतिहास को सहेजना हम सबकी जिम्मेदारी है।

कौन से हैं रीवा के सबसे पुराने मोहल्ले

उपरहटी, तरहटी, गुड़हाई बाजार, निपनियाँ, घोघर, बिछिया, कमसरियत,अमहिया और धोबिया टंकी रीवा शहर के सबसे पुराने मुहल्ले हैं।

उपरहटी

उपरहटी रीवा की सबसे पहली बस्ती मानी जाती है। कहा जाता है कि जब राजा विक्रमादित्य रीवा आए, तो उनके साथ आए लोगों ने यह मोहल्ला बसाया था। ‘उपरहटी’ नाम दो शब्दों से बना है- “ऊपर” और “हटी”। ऊपर का अर्थ हुया ऊंचाई पर और हटी का अर्थ हुआ बस्ती। अर्थात जो बस्ती ऊपर की तरफ बसी वही उपरहटी है, यह नाम इस मोहल्ले की भौगोलिक स्थिति को भी दर्शाता है।

तरहटी

तरहटी शब्द भी दो शब्दों के संयोजन से बना है तरी अर्थात नीचे और हटी का अर्थ हुआ बस्ती। मतलब जो बस्ती नीचे की ओर बसी वह तरहटी है। यह बस्ती किले से नीचे की तरफ बसी होने के कारण ही तरहटी कहलाई। उपरहटी के बाद यह रीवा का सबसे पुराना मोहल्ला है।

गुड़हाई बाजार

गुड़हाई बाजार रीवा का सबसे पुराना बाजार है। जैसा कि इसके नाम से पता चलता है यहाँ कभी गुड़ की मंडी लगा करती थी रीवा नगर बसने के पूर्व ही लमानों और व्यापारियों द्वारा यहाँ मंडी लगती थी। रीवा शहर बसने के बाद बाजार यहाँ लगता रहा, और बढ़ता रहा, लेकिन गुड़ शब्द इससे जुड़ा ही रहा। इसीलिए जब इसने बाजार का रूप लिया तो इसे गुड़हाई बाजार कहा जाने लगा।

निपनियाँ

निपनियाँ भी रीवा के सबसे पुराने मोहल्लों में से एक है। निपनिया शब्द की व्युतिपत्ति नृपरनियाँ शब्द से हुई है इसको बसाने का श्रेय दिया जाता है, रीवा के महाराज भाव सिंह की रानियों को। नृप का अर्थ हुआ राजा और रनियाँ का मतलब हुआ राजा की रानियाँ, जिनके नाम से यह मोहल्ला आबाद हुआ। कालांतर में नृपरनियाँ ही बिगड़ के निपनियाँ हो गया।

घोघर

अब बात करते हैं घोघर मोहल्ले की, जो बना है गोघर से, जिसका अर्थ हुआ गायों का घर अर्थात अर्थात गौशाला से। कथा है महाराज व्यंकट रमण सिंह जूदेव एक बार बिहार में लगने वाले सोनपुर पशु मेले में जा रहे थे। जहाँ पर उन्हें पता चला कसाई बहुत सारी गायों को खरीद कर ले जा रहें हैं, जिसके बाद महाराज ने उनसे सारी गायें खरीद ली और रीवा ले आए, जहाँ पर गायों के रखने इत्यादि का प्रबंध जहाँ किया गया, वह गोघर कहलाया और आगे चलकर गोघर से ही घोघर हो गया।

कमसरियत

कमसरियत दरसल अंग्रेजी के कमसेरियट शब्द से बना है, कमसेरियट का अर्थ होता है वह स्थान जहाँ पर फौज के रसद आपूर्ति की व्यवस्था हो। यही कमसेरियट देशज भाषा में कमसरियत हो गया। दरसल पहले यह बासिनपुरबा नाम का गाँव था, बासिनपुरबा का अर्थ शायद पूरब की तरफ बसे हुए गाँव से है। चूंकि यह गाँव रीवा किले के पूर्व दिशा की तरफ ही बसा हुआ था। लेकिन कालांतर में रीवा राज्य की सेना के दफ्तर के निर्माण के साथ ही बासिनपुरबा की जगह इसे कमसरियत कहा जाने लगा।

अमहिया

इसका नाम पड़ा अमहिया नदी के कारण, चौंक गए ना आप आखिर रीवा में अमाहिया नदी कब थी। लेकिन ठहरिए नदी थी नहीं, नदी है जिसे हम आज अमहिया नाला कहते हैं, या झिरिया नाला भी। लेकिन नाला बनने से पूर्व यह एक नदी था, जिसका पानी पीने में भी प्रयोग किया जाता था। इसका मूल नाम झिरिया नदी था, लेकिन रीवा में राजशाही आबाद होने के बाद झिरिया नदी के दोनों किनारों में आम के वृक्ष लगवाए गए थे, जिसके बाद इस नदी को झिरिया की जगह अमहिया नदी कहा जाने लगा और इसके किनारे बसे हुए मोहल्ला को अमहिया मोहल्ला कहा जाने लगा।

धोबिया टंकी

दरसल धोबिया टंकी को पहले धोबिया ताल के नाम से जाना जाता था। जहाँ पर आज संजय गांधी अस्पताल है कभी पानी से लबालब भरा हुआ तालाब था। जहाँ पर कपड़े धोए जाते थे। लेकिन कालांतर में तलब का क्षरण हो गया। बाद में कुछ वर्षों बाद ही वहाँ पर शहर की जल आपूर्ति के लिए शासन द्वारा एक टंकी का निर्माण करवाया गया। जिसके बाद इसे इसके पुराने नाम धोबिया ताल की जगह इसे धोबिया टंकी कहा जाने लगा।

बिछिया

बिछिया मोहल्ले का नाम कभी सदानीरा रही बिछिया नदी के कारण पड़ा। वैसे कहा जाता है इसका पुराना नाम रनबहादुर गंज था। किवदंती है यहीं पर राजा विक्रमादित्य ने अपने दो शिकारी कुत्तों को एक खरहे अर्थात खरगोश का पीछा करते देखा था, लेकिन इस स्थान पर पहुँच कर खरहा डटकर शिकारी कुत्तों का मुकाबला करने के लिए खड़ा हो गया।

रीवा के ये मोहल्ले सिर्फ ईंट और सीमेंट से बनी बस्तियाँ नहीं हैं, बल्कि इनमें बसी हैं सदियों पुरानी कहानियाँ, परंपराएँ और स्मृतियाँ। ये मुहल्ले रीवा की सांस्कृतिक विरासत के जिंदा दस्तावेज हैं, जिनकी पहचान और इतिहास को सहेजना हम सबकी जिम्मेदारी है।

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