The Pride Of Satna – सतना की बेटी अनुष्का ने योग में लहराया परचम, बेटियों के लिए बनीं सफलता की नई मिसाल – आज की युवा पीढ़ी अनेक क्षेत्रों में अपने परिश्रम और प्रतिभा के बल पर देश का नाम रोशन कर रही है। शिक्षा, खेल, विज्ञान, संस्कृति, हर क्षेत्र में बेटियां आत्मविश्वास से भरपूर हैं और निरंतर नई ऊंचाइयां छू रही हैं। ऐसे ही उदाहरण के रूप में सतना की बेटी अनुष्का त्रिवेदी ने हाल ही में राज्य स्तरीय योगा चैम्पियनशिप में शानदार प्रदर्शन कर प्रदेश भर में अपने जिले का नाम रोशन किया है। भोपाल में आयोजित दो दिवसीय राज्य स्तरीय प्रतियोगिता में अनुष्का ने पारंपरिक योगा श्रेणी में उत्कृष्ट प्रदर्शन करते हुए न केवल जीत हासिल की, बल्कि उपस्थित दर्शकों और निर्णायकों की भरपूर सराहना भी प्राप्त की। इस उपलब्धि ने यह स्पष्ट कर दिया है कि योग जैसी भारतीय परंपरा से जुड़ी विधा में भी युवा लड़कियां विश्व पटल पर भारत की उपस्थिति दर्ज कराने के लिए तैयार हैं।
सफर की शुरुआत – आत्मविश्वास से भरी एक साधना
अनुष्का त्रिवेदी, सतना स्थित एकेएस यूनिवर्सिटी की मेधावी छात्रा हैं। उनकी योग में रुचि मात्र एक सह-शैक्षणिक गतिविधि नहीं थी, बल्कि यह उनके जीवन की एक गंभीर साधना बन चुकी है। उन्होंने योग को अपनी दिनचर्या का हिस्सा बनाकर जिस अनुशासन और निरंतर अभ्यास का परिचय दिया, उसका प्रतिफल उन्हें समय-समय पर प्रतियोगिताओं में मिला। राज्य स्तरीय प्रतियोगिता से पहले भी अनुष्का ने जिला स्तरीय योगा प्रतियोगिता में पहला स्थान प्राप्त किया था। इसके अतिरिक्त, उन्होंने ओडिशा में आयोजित इंटर यूनिवर्सिटी योगा चैम्पियनशिप में भी सराहनीय प्रदर्शन किया था, जहां देश के विभिन्न हिस्सों से आए ।प्रतिभागियों के बीच अनुष्का ने अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाया।
प्रतिभा को सम्मान – जब मंच पर मिला गौरव
भोपाल में आयोजित इस प्रतियोगिता के समापन समारोह में, अनुष्का को पूर्व खेल एवं युवा कल्याण मंत्री ऊषा ठाकुर द्वारा सम्मानित किया गया। यह पल न केवल अनुष्का के लिए, बल्कि सतना जिले के लिए भी गर्व का क्षण था। एक बेटी का इस प्रकार सम्मानित होना इस बात का प्रमाण है कि लगन, समर्पण और निरंतर प्रयास से कोई भी मंज़िल दूर नहीं। इस अवसर पर मंच से वक्ताओं ने योग के महत्व, युवाओं में इसकी बढ़ती भूमिका और भारतीय सांस्कृतिक मूल्यों के प्रचार में योग की प्रासंगिकता पर भी प्रकाश डाला।
पारिवारिक पृष्ठभूमि – शब्दों से योग तक का सफर
अनुष्का त्रिवेदी सिर्फ एक योगा चैम्पियन नहीं, बल्कि वह एक ऐसे परिवार से आती हैं जो समाजसेवा और पत्रकारिता के क्षेत्र में भी अग्रणी रहा है। उनके पिता कृपाशंकर त्रिवेदी, सतना जिले के वरिष्ठ पत्रकार हैं, जो अपनी निष्पक्ष लेखनी और सामाजिक सरोकारों के लिए जाने जाते हैं। यह कहना गलत नहीं होगा कि अनुष्का को अनुशासन, सामाजिक जागरूकता और नीतिपरक सोच विरासत में मिली है। योग में रुचि, शारीरिक व मानसिक संतुलन, और आत्म-अनुशासन, ये सभी गुण उनके व्यक्तित्व में साफ झलकते हैं, जो उनकी पारिवारिक पृष्ठभूमि का ही प्रतिफल हैं।
विश्वविद्यालय और योग विभाग की भूमिका
अनुष्का की इस सफलता में उनके विश्वविद्यालय और शिक्षकों का भी महत्वपूर्ण योगदान रहा है। एकेएस यूनिवर्सिटी सतना के योग विभाग प्रमुख अवनीश सोनी, प्रति कुलपति डॉ. हर्ष वर्धन, एवं शिक्षकगण दिलीप तिवारी और सुनील पाण्डेय ने उनकी उपलब्धियों पर गर्व व्यक्त करते हुए कहा कि यह जीत न केवल अनुष्का की व्यक्तिगत सफलता है, बल्कि विश्वविद्यालय के पूरे योग विभाग के लिए भी प्रेरणास्रोत है। जानकारी के अनुसार, विश्वविद्यालय अपने विद्यार्थियों को न केवल अकादमिक रूप से सक्षम बनाना चाहता है, बल्कि उन्हें मानसिक, शारीरिक और भावनात्मक रूप से भी सशक्त करने के लिए योग जैसे विषयों को गंभीरता से बढ़ावा दे रहा है।
बेटियां और उनके कीर्तिमानों से सुसज्जित भारत
अनुष्का त्रिवेदी की सफलता महज एक व्यक्तिगत उपलब्धि नहीं, बल्कि यह एक सामाजिक संदेश भी है , कि बेटियाँ आज किसी भी क्षेत्र में पीछे नहीं हैं। वे योग, खेल, विज्ञान, प्रशासन, कला, और उद्यमिता, हर क्षेत्र में अपने सपनों को आकार दे रही हैं। इस संदर्भ में, अनुष्का का उदाहरण देशभर की उन लड़कियों के लिए प्रेरणा बन सकता है, जो सीमित संसाधनों और सामाजिक बंधनों के बावजूद अपने लक्ष्य के लिए प्रयासरत हैं।
आधुनिक जीवन में शांति और शक्ति का स्रोत
अनुष्का की कहानी इस बात को भी रेखांकित करती है कि योग मात्र शारीरिक क्रिया नहीं, बल्कि यह मानसिक संतुलन, आत्म-चिंतन और अनुशासन का मार्ग भी है। जब युवा पीढ़ी योग जैसे भारतीय मूल्यों को अपनाती है, तो वह न केवल शारीरिक रूप से सशक्त होती है, बल्कि उनके भीतर निर्णय लेने की क्षमता, आत्मबल और सहनशीलता भी विकसित होती है। विश्व योग दिवस, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की पहल से शुरू होकर अब वैश्विक मंच पर पहुंच चुका है। ऐसे में देश के भीतर ही जब युवा योग में उत्कृष्ट प्रदर्शन कर रहे हैं, तो यह पूरे भारत के लिए गौरव की बात है।
विशेष – प्रेरणा, प्रोत्साहन और परिवर्तन का प्रतीक , अनुष्का त्रिवेदी की यह उपलब्धि सिर्फ एक पुरस्कार जीतने की कहानी नहीं है, बल्कि यह एक बड़ी सामाजिक सोच को दर्शाती है, जिसमें बेटियों को अवसर मिले, उन्हें समान मंच प्रदान किया जाए, और उनकी मेहनत को उचित सम्मान दिया जाए। यह लेख लिखते समय हमें यह स्मरण होता है कि समाज को समृद्ध और संतुलित बनाने के लिए बेटियों का आगे आना नितांत आवश्यक है। अनुष्का जैसी बेटियाँ आज भी कई घरों में मौजूद हैं – बस उन्हें पहचानने और प्रोत्साहित करने की ज़रूरत है तो आइए, हम सब मिलकर संकल्प लें, कि हर बेटी को उसके सपनों को साकार करने का अवसर मिलेगा। – कि हम योग जैसी भारतीय विधाओं को नई पीढ़ी के जीवन में उतारने का प्रयास करेंगे। और यह कि हम हर उस प्रयास का समर्थन करेंगे जो देश को सशक्त, सम्मानित और समृद्ध बनाता है।