नवदुर्गा। नवदुर्गा उत्सव बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है। तो इसके नामकरण को लेकर जो उल्लेख मिलता है वह शरदऋतु से जुड़ा हुआ है। इस वर्ष शारदेय नवरात्रि 22 सिंतबर से शुरू हो रही है। मां दुर्गा की प्रतिमाएं भी तैयार हो गई। मां दुर्गा के भक्त पूजा-अर्चना की तैयारी कर लिए है। देवी पंडालों में विराजमान होकर जगत जननी शक्ति स्वरूपा मईया भक्तों को दर्शन देगी।
दुर्गा और महिषासुर के बीच हुआ था भंयकर युद्ध
नवदुर्गा पूजा को लेकर जो तथ्य मिलते है उसके तहत देवी दुर्गा ने आश्विन के महीने में महिषासुर पर आक्रमण कर उससे 9 दिनों तक युद्ध किया और 10वें दिन उसका वध किया। इसलिए इन नौ दिनों को शक्ति की आराधना के लिए समर्पित कर दिया गया। महिषासुर ने अपने शक्तिशाली और मायावी रूप का उपयोग करते हुए कभी भैंस, कभी शेर, तो कभी हाथी का रूप धारण किया। देवी की शक्ति माँ दुर्गा ने अपनी अस्त्र-शस्त्रों और शक्तियों का प्रयोग करते हुए महिषासुर के सभी रूपों को विफल कर दिया। 10वें दिन, देवी दुर्गा ने महिषासुर को उसके महिष (भैंस) के रूप में देखा और अपने त्रिशूल से उसका वध कर दिया। यही वजह है कि 9 दिनों तक मां दुर्गा के सभी रूपों की पूजा की जाती है और 10वे दिन को बुराई पर अच्छाई की जीत उत्सव के रूप में मनाया जाता है, यानि की दुर्गा पूजा का सबसे महत्वपूर्ण पहलू यह है कि यह राक्षस महिषासुर पर देवी दुर्गा की जीत का उत्सव है, यह बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है।
शरदऋतु से पड़ा शारदेय नवरात्रि
चूंकि आश्विन मास में शरद ऋतु का प्रारंभ हो जाता है, इसलिए इसे शारदीय नवरात्रि कहा जाता है। हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार, नौ रूपों को राक्षस-राज महिषासुर के साथ युद्ध की नौ दिनों की लंबी अवधि के दौरान दुर्गा के नौ चरण माना जाता है , जहां 10वें दिन को हिंदुओं के बीच विजयादशमी के रूप में मनाया जाता है और इसे सबसे महत्वपूर्ण त्योहारों में से एक माना जाता है।
इस तरह के भी उल्लेख
मातृ-शक्ति की पूजा को लेकर कहा जाता है कि यह त्योहार देवी दुर्गा के मातृ स्वरूप की पूजा करता है, जो उनकी बहादुरी, शक्ति और ममता का प्रतिनिधित्व करता है। तो पहलू यह भी है कि देवी दुर्गा के उनके माता-पिता के घर, कैलाश पर्वत, लौटने का भी प्रतीक है, जो देवी और उनके बच्चों के मिलन का उत्सव है।
कब और कहाँ मनाया जाता है?
यह एक वार्षिक हिंदू त्योहार है, यू तो पूरे देश में दुर्गा पूजा उत्सव मनाया जाता है, लेकिन मुख्य रूप से पश्चिम बंगाल, असम, ओडिशा और त्रिपुरा जैसे पूर्वी भारतीय राज्यों में मनाया जाता है। यह त्योहार कला, संस्कृति और भक्ति का एक विशाल सामाजिक-सांस्कृतिक कार्यक्रम है। इसमें देवी की मूर्तियों को पूजा जाता है, अनुष्ठान किए जाते हैं, और अंत में मूर्तियों का विसर्जन किया जाता है। यह उत्सव न केवल धार्मिक है, बल्कि एक बड़ा सामाजिक आयोजन भी है जहाँ लोग इकट्ठा होते हैं।
भगवान राम ने किया था पूजा
वाल्मीकि पुराण में बताई गई कथा के मुताबिक, सबसे पहले श्रीराम ने ऋष्यमूक पर्वत पर आश्विन माह के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि से नवमी तिथि तक परमशक्ति महिषासुरमर्दिनी देवी दुर्गा की विधि-विधान से पूजा की थी. इसके बाद दशमी तिथि को उन्होंने लंका जाकर रावण का वध किया था।
ये है मां दुर्गा के मंत्र
दुर्गा जी के कई शक्तिशाली मंत्र हैं, लेकिन ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चेश् (नवारण मंत्र) को उनका मूल या बीज मंत्र माना जाता है, क्योंकि इसमें ब्रह्मांडीय ऊर्जाएं शामिल हैं. इसके अतिरिक्त, सर्व मंगल मांगल्ये शिवे सर्वार्थ साधिके शरण्ये त्र्यम्बके गौरि नारायणि नमोऽस्तु ते और ॐ दुं दुर्गायै नमः जैसे मंत्रों का भी व्यापक रूप से जाप किया जाता है।