भारतीय इतिहास में वैसे तो कई प्रेम कहानियाँ दर्ज हैं, पर मालवा के राजा मुंज और चालुक्य वंश की राजकुमारी मृणालवती की प्रेम कहानी भी एक अनूठी प्रेम कहानी है, भारत में वो समय 10 वीं 11 वीं शताब्दी का रहा होगा, जब देश कई राज्यों में बंटा हुआ था, गजनी के महमूद का अभी मध्यदेश में आक्रमण नहीं हुआ था, हालांकि सीमावर्ती राज्यों से उसकी मुठभेड़ें हो रही थी। कुछ समय पहले ही भारत में तीन प्रमुख शक्तियां थीं, इनमें उत्तर भारत में प्रतिहार, दक्षिणी भारत में राष्ट्रकूट और पूर्वी क्षेत्रों में पाल। उत्तरभारत की प्रतिहार शासकों की स्थिति डांवाडोल थी, उनके ज्यादातर सामंत लगभग स्वतंत्र हो चुके थे।
मालवा के परमार वंश के राजा मुंजराज
उत्तर भारत में प्रतिहारों के पतन काल में कई शक्तियों का उदय हुआ, जिनमें से मालवा के परमार प्रमुख थे, इस वंश की शक्ति का उदय हुआ सीयक य श्रीहर्ष के समय में, उसके मुंजराज और सिंधुराज नाम के दो पुत्र थे, सिंधुराज के ही पुत्र थे दंतकथाओं के सुप्रसिद्ध राजा भोज, सीयक के बाद शासक बने मुंज, मुंज अत्यंत पराक्रमी शासक थे, वह धनुर्विद्या में निपुण थे, उन्होंने दिग्विजय की थी और पृथ्वीवल्लभ की उपाधि धारण की थी, उन्होंने कर्नाटक के चालुक्य वंशीय शासक तैलप को कई बार पराजित किया था, वह उद्भट योद्धा ही नहीं, काव्य रसिक भी था, अपभ्रंश और संस्कृत लेखकों ने उसका जिक्र बार-बार किया है। वह खुद कवि था, उनकी कई रचनाएँ आचार्य मेरुतुंग की “प्रबंध चिंतामणि” नाम के ग्रंथ में संकलित हैं। इन दोहों में कई जगह मृणालवती का जिक्र आता है, आखिर कौन थी मृणालवती।
कौन थी राजकुमारी मृणालवती
मृणालवती चालुक्य वंश की राजकुमारी थी, वह कल्याणी के चालुक्य वंशीय शासक तैलप द्वितीय की विधवा बहन थी, दक्षिण भारत में राष्ट्रकूटों के पतन के बाद, उदय हुआ चालुक्यों का, जिनकी राजधानी कल्याणी थी, जिसके कारण इतिहासकारों ने इन्हें कल्याणी चालुक्य या पश्चिमी चालुक्य भी कहा है। चालुक्य वंश की शक्ति का वास्तविक संस्थापक तैलप था, जो राजा विक्रमादित्य और उसकी स्त्री बोंथा देवी का पुत्र था, बोंथा देवी त्रिपुरी के कलचुरि वंश के राजा लक्ष्मण देव की पुत्री थी। उसकी पत्नी राष्ट्रकूट राजा मम्मह की पुत्री जक्कला देवी थी। राजा तैलप भी विजेता था, उसने भी बहुत से राजाओं को पराजित किया था, लेकिन मालवा के पराक्रमी शासक मुंज से वह बार-बार लगभग 5 बार वह हार चुका था, और मुंज को पराजित करने की योजना बना रहा था।
परमार और चालुक्य संघर्ष
हालांकि तैलप भले ही बार-बार पराजित हो रहा था, लेकिन उसके आक्रमणों के कारण मालवा में अव्यवस्था उत्पन्न हो रही थी, जिसके कारण मालवा के शासक मुंज ने तैलप के विरुद्ध तेजी से आगे बढ़ने की योजना बनाई, जिसके कारण वह तैलप की शक्ति का पूर्णतः दमन कर सके, लेकिन मालवा के अमात्य रुद्रादित्य ने मुंज को आगाह किया था, जो भी हो लेकिन गोदावरी नदी को पार नहीं करना है, जब तैलप ने मुंज के अभियान की खबर सुनी, तो उसने मुंज को पराजित करने की योजना बनाई, जिसके अनुसार मुंज को आसानी से बिना किसी बड़े प्रतिरोध के आगे बढ़ने दिया गया, तैलप के विरुद्ध तेजी से आगे बढ़ रहे मुंजराज तेजी से चालुक्यों के क्षेत्रों में धँसते गए, और अपने अमात्य रुद्रादित्य के गोदावरी नदी को ना पार करने की सलाह को भूल गए, गोदावरी नदी चालुक्यों के क्षेत्रों को दो भागों में विभाजित करती थी, अर्थात मुंज बिल्कुल बीच में थे, मालवा के परमार राज्य की सीमा से बहुत दूर, तैलप ने इस मौके का फायदा उठाया और अपने यादव महासामंत भिल्लम की मदद से मुंज को पराजित कर बंदी बना लिया, मुंज को पराजित करने की पुष्टि चालुक्यों और यादवों के अभिलेखों से भी होती है।
मुंज और मृणालवती की प्रेम कहानी
बंदी बनाने के बाद तैलप ने मुंज को कैदखाने में डलवा दिया, और मुंज की देखभाल का जिम्मा दिया, अपनी बहन मृणालवती को, जाहिर है अपने भाई के शत्रु मुंज के साथ रूखा ही था, लेकिन मुंज के सौंदर्य, वाक्पटुता और पराक्रम से मृणालवती उस पर रीझ गई, मुंज तो थे ही प्रेम-रसिक, उस समय यह कितनी बड़ी बात रही होगी, एक विधवा स्त्री के प्रेम की बात। इधर मालवा में राजा मुंज को छुड़ाने की योजना बनाई जाने लगी, मालवा के सैनिक और जासूस कल्याणी में सक्रिय हो गए, और मुंज को कैद से छुड़ाने की योजना बनाई जाने लगी, और योजना मुंज तक भी पहुंचाई गई, लेकिन मुंज अकेले नहीं भागना चाहते थे, वह मृणालवती को भी अपने साथ ले जाना चाहते थे, इसीलिए उन्होंने यह बात मृणालवती को बता दी, और उससे भी मालवा चलने का आग्रह किया, मृणालवती भी मुंज के प्रेम में इसके लिए सहर्ष ही तैयार हो गई, लेकिन बाद में वह सोचने लगी मुंज राजा है, वीर योद्धा है, वाक्पति है, आकर्षक व्यक्तित्व का स्वामी है, इसकी कई स्त्रियाँ होंगी, और कई भविष्य में भी उसके जीवन में आएँगी, इसीलिए मुंज जितना अभी उसे प्रेम करते हैं, बाद में इतना प्रेम नहीं करेंगे, उनका प्रेम बंट जाएगा, तो क्यों ना मुंज को मालवा ना जाने दूँ यहीं रख लूँ, लेकिन मुंज को वहाँ ऐसे तो रखा नहीं जा सकता था, क्योंकि उसके आदमी कभी ना कभी उसे छुड़ा ही ले जाएंगे, इसके लिए उसने एक योजना बनाई और अपने योजना अनुसार उसने यह बात अपने भाई तैलप को बता दी, लेकिन यहीं उसकी योजना विफल हो गई, योजना तो थी कि भागने की खबर सुनकर तैलप और भी कड़ा पहरा और निगरानी कर देगा, लेकिन उसने मुंज को मार डालने का विचार किया, हालांकि मृणाल ने अपने भाई से उसका बचाव किया, जिसके फलस्वरूप उसका प्रेम भी सबके सामने आ गया।
लेकिन इस बात को जानकार तैलप और भी अधिक क्रोधित हो गया, उसने राजा मुंज को पहले तो नगर में घर-घर भिक्षा मांगने को मजबूर किया और अंत में अपनी बहन के सामने ही, उसे हाथी के पैरों तले कुचलवा के मरवा डाला। कहते हैं प्रेम की एक सीमा होती है, लेकिन प्रेम उस सीमा को काभी मानता नहीं जब उसमें अत्यधिक मोह होता है, यही हुआ मुंज और मृणालवती की कहानी में, दोनों एक दूसरे को पूर्णतः प्राप्त करना चाहते थे, मोह ने उनकी बुद्धि की सुनी नहीं और यह मोह ही घातक सिद्ध हुआ। अपभ्रंश के एक दोहे के अनुसार, मुंज इसीलिए शायद मृणालवती से कहते भी हैं-
जा मति सम्पज्जइ, सा मति पहिली होइ।
मुंज भणइ मुणालवइ, विघन ना बेढ़इ कोइ।।
अर्थात- मुंज कहता है, हे मृणालवती! जो बुद्धि बाद में उत्पन्न होती है, अगर वह पहले उत्पन्न हो जाए, तो कोई भी विघ्न उत्पन्न नहीं हो सकता है।
मुंज और मृणालवती की कहानी ने कई लेखकों को भी आकर्षित किया, आचार्य मेरुतुंग की प्रबंध चिंतामणि के अतिरिक्त कई अन्य जैन ग्रंथों में भी यह कथा आई है, इसके अतिरिक्त के एम मुंशी ने भी इस कथा पर एक लघु गुजराती उपन्यास “पृथ्वीवल्लभ” की रचना की।