Happy Birthday Megastar Amitabh Bachchan :महानायक अमिताभ बच्चन ऐसे सितारे हैं जो एक अलग और ऊँचा मक़ाम रखते हैं फिल्म जगत में, किसी भी इवेंट में उनकी मौजूदगी से चार चाँद लग जाता है तो चलिए आज जानते हैं उनके यहाँ तक पहुँचने के पीछे की कहानी।
माता -पिता की रही अहम भूमिका :-
उत्तर प्रदेश का इलाहाबाद या प्रयागराज ये वो जगह है जहाँ कायस्थ परिवार में जन्मे अमिताभ बच्चन और उन्हें पिता स्वरूप मिले ,प्रसिद्ध हिन्दी कवि डॉ॰ हरिवंश राय बच्चन और माँ तेजी बच्चन जो अविभाजित भारत के कराची शहर से ताल्लुक़ रखती थीं ,आप दोनों ने मिलकर आपका नाम रखा “इंक़लाब” जिसे एक क्रांति के रूप में भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में ‘इंक़लाब ज़िंदाबाद ‘ के नारों से लिया गया था लेकिन जब ये नाम प्रसिद्ध कवि सुमित्रानंदन पंत जी ने सुना तो उन्हें कुछ ख़ास पसंद नहीं आया और उन्होंने इंक़लाब को नाम दिया “अमिताभ” जिसका अर्थ होता है, “शाश्वत प्रकाश”। यद्यपि इनका उपनाम श्रीवास्तव था पर पिता ने अपने नाम की तरह उन्हें भी बच्चन उपनाम दिया और इंक़लाब बन गए, अमिताभ बच्चन। आपकी की माँ तेजी बच्चन इतनी खूबसूरत थी कि उन्हें कई बार फिल्मों में रोल ऑफर हुए थे हालाँकि थिएटर में इंट्रेस्ट होने के बावजूद उन्होंने समाज सेवा को चुना पर शायद अमिताभ जी को फिल्मों से जोड़ने में उनका बहोत बड़ा योगदान रहा। अमिताभ जी ने दो बार एम. ए. की उपाधि ग्रहण की और उम्र के बीसवें साल 6 फीट 2 इंच के इस बांके जवान ने अभिनय में अपना कैरियर आज़माने के लिए कोलकता की एक शिपिंग फर्म बर्ड एंड कंपनी में किराया ब्रोकर की नौकरी छोड़ दी।
पहली फिल्म में जीता राष्ट्रीय पुरस्कार :-
अमिताभ ने फ़िल्मों में अपने कैरियर की शुरुआत ख्वाज़ा अहमद अब्बास के निर्देशन में बनी फिल्म ‘सात हिन्दुस्तानी ‘ के सात कलाकारों में एक के रूप में की, इस फिल्म में उत्पल दत्त, मधु और जलाल आग़ा जैसे कलाकार थे। ये फिल्म ज़्यादा कमाई तो नहीं कर पाई पर अमिताभ बच्चन अपनी पहली फ़िल्म में राष्ट्रीय फ़िल्म पुरस्कार में सर्वश्रेष्ठ नवागंतुक का पुरूस्कार जीतने में सफल रहे , इस फ़िल्म के बाद उनकी फिल्म आई,1971 की ‘आनंद ‘ जिसमें उन्होंने उस समय के लोकप्रिय कलाकार राजेश खन्ना के साथ काम किया उनके कैंसर का इलाज किया डॉ॰ भास्कर बनर्जी की भूमिका निभाके इसके लिए भी उन्होंने सर्वश्रेष्ठ सहायक कलाकार का फिल्मफेयर पुरस्कार जीत लिया। अगली फिल्म थी १९७१ में बनी ‘परवाना ‘ जिसमें आपने मायूस प्रेमी से खलनायक में तब्दील होते मोहित की दमदार भूमिका निभाई है जो उनके अभिनय में जुड़ा एक नया अध्याय है , इसके बाद उनकी कई फ़िल्में आई जो बॉक्स ऑफिस पर उतनी सफल नहीं हो पाई जिनमें ‘रेशमा और शेरा ‘भी शामिल थी फिर आपने ‘गुड्डी‘ फ़िल्म में मेहमान कलाकार की भूमिका निभाई जया भादुड़ी के साथ धर्मेन्द्र भी थे।
मुश्किल दिनों में महमूद ने दिया साथ :-
1972 में एस. रामनाथन द्वारा निर्देशित कॉमेडी फ़िल्म ‘बॉम्बे टू गोवा ‘ में फिर एक मुख़्तलिफ़ किरदार में नज़र आए इसमें अरुणा ईरानी, महमूद, अनवर अली और नासिर हुसैन जैसे बड़े कलाकार थे 1973 -1983 तक उनके संघर्ष के दिन गुज़रे जिनमें आपका बहोत साथ दिया , अभिनेता, निर्देशक एवं हास्य अभिनय के बादशाह कहे जाने वाले महमूद साहब ने अमिताभ उन्हीं के घर में रहते थे।
कैसे मिली स्टारडम की राह :-
1973 में मिला प्रगति पथ जब प्रकाश मेहरा ने उन्हें फ़िल्म ‘ज़ंजीर ‘ में इंस्पेक्टर विजय खन्ना की भूमिका निभाने का अवसर दिया ये फ़िल्म इससे पहले की उनकी छवि यानी रोमांस भरे सार के प्रति कटाक्ष थी जिसने अमिताभ बच्चन को एंग्री यंगमैन ,बॉलीवुड का एक्शन हीरो बना दिया यही वो फिल्म थी जिसने उन्हें सर्वश्रेष्ठ पुरूष कलाकार फ़िल्मफेयर पुरस्कार के लिए मनोनीत करवाया। 1973 ही वो साल था जब आपने 3 जून को जया भादुड़ी से विवाह किया और इसी समय ये दोनों न केवल ‘ज़जीर‘ में बल्कि एक साथ कई फ़िल्मों में दिखाई दिए जैसे ‘अभिमान ‘ इनकी शादी के केवल एक मास बाद ही रिलीज़ हो गई थी। बाद में हृषिकेश मुखर्जी के निदेर्शन तथा बीरेश चटर्जी द्वारा लिखित ‘नमक हराम ‘ फ़िल्म में विक्रम की भूमिका मिली जिसमें राजेश खन्ना और रेखा के विपरीत आपको सहायक भूमिका में बेहद सराहा गया और सर्वश्रेष्ठ सहायक कलाकार का फ़िल्मफेयर पुरस्कार दिया गया।
१९७४ की सबसे बड़ी फ़िल्म ‘रोटी कपड़ा और मकान ‘ में सहायक कलाकार की भूमिका निभाने के बाद अमिताभ जी ने बहुत सी फ़िल्मों में कई बार मेहमान कलाकार की भूमिका निभाई जैसे ‘कुँवारा बाप ‘ और ‘दोस्त ‘। 1975 में उन्होंने दो दमदार भूमिकाएं निभाईं पहली यश चोपड़ा द्वारा निर्देशित फ़िल्म ‘दीवार ‘ में जिसमें उन्होंने सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का फ़िल्मफेयर पुरस्कार जीता और दूसरी 15 अगस्त, 1975 को रिलीज़ ‘शोले ‘ में जो उस समय की सबसे ज़्यादा कमाई करने वाली फिल्म बन गई 1999 में बीबीसी इंडिया ने इस फ़िल्म को शताब्दी की फ़िल्म का नाम दिया और ‘दीवार ‘ की तरह इसे इंडियाटाइम्ज़ मूवियों में बालीवुड की शीर्ष २५ फिल्मों में शामिल किया। उसी साल 50 वें वार्षिक फिल्म फेयर पुरस्कार के निर्णायकों ने एक विशेष पुरस्कार दिया जिसका नाम 50 सालों की सर्वश्रेष्ठ फ़िल्म फिल्मफेयर पुरूस्कार था। बॉक्स ऑफिस पर ‘शोले ‘ और ‘दीवार ‘ जैसी फ़िल्मों की ज़बरदस्त सफलता के बाद अमिताभ जी ने अपने अभिनय का लोहा मनवा लिया और’ ‘शोले’ ने आपको ग्रेट एक्शन हीरो का दर्जा दिला दिया फिर आई रोमांस की बारी, जिसमें पहले बाज़ी मारी फिल्म ‘कभी-कभी ‘ ने और कॉमेडी का तड़का लगा ,’अमर अकबर एन्थनी ‘ , ‘चुपके चुपके ‘ जैसी फिल्मों से ‘अमर अकबर एन्थनी ‘ में भी सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का फ़िल्मफेयर पुरस्कार आपके नाम रहा तो वहीं ‘कस्मे वादे ‘ जैसी फ़िल्मों में अमित और शंकर तथा डॉन में अंडरवर्ल्ड गैंग और उसके हमशक्ल विजय के रूप में दोहरी किरदार वाली भूमिकाएं निभाईं और सर्वश्रेष्ठ अभिनेता के फ़िल्मफेयर पुरस्कार जीते फिर आईं, ‘त्रिशूल ‘ और ‘मुक़द्दर का सिकन्दर ‘जैसी फिल्में जिन्होंने आपकी झोली में ढेर सारी तारीफों के साथ फिर सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का फ़िल्मफेयर पुरस्कार डाला और ये माना गया कि इंडस्ट्री में यही वो आदमी है जिसके दम पर फिल्म हिट हो जाएगी।
कैसे चला आवाज़ का जादू :-
अपनी ज़बरदस्त आवाज़ के लिए जाने जाने वाले अमिताभ बच्चन ने अपने कैरियर की शुरुआत में ही ‘बावर्ची ‘ फ़िल्म के सूत्रधार या प्रस्तुतकर्ता की भूमिका निभाई थी। 1979 में पहली बार अमिताभ को ‘मि० नटवरलाल ‘ फ़िल्म में गाते हुए देखा गया और पसंद भी किया गया हालाँकि ये वही भारी भरकम आवाज़ थी जिसे ऑल इंडिया रेडियो ने उद्घोषक के ऑडिशन के दौरान अयोग्य घोषित कर दिया था। इस फिल्म में उनकी हेरोइन थीं अभिनेत्री रेखा जिनके साथ आपकी जोड़ी खूब हिट रही और इस बार आपने सर्वश्रेष्ठ अभिनेता के साथ पुरुष पार्श्वगायक का सर्वश्रेष्ठ फ़िल्म पुरस्कार भी जीत लिया इसके बाद ‘काला पत्थर ‘ में सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का पुरस्कार दिया गया। अगली फिल्म ‘दोस्ताना’ साल १९८० की शीर्ष फ़िल्म साबित हुई तो 1981 में इन्होंने यश चोपड़ा की फ़िल्म ‘सिलसिला ‘में काम किया, जिसमें उनके साथ पत्नी जया और रेखा भी थीं जिसमें पहले स्मिता पाटिल और परवीन बाबी हीरोइन थीं, लेकिन बाद में उन्हें फिल्म से हटा दिया गया और उनकी जगह जया बच्चन और रेखा को लिया गया। यश चोपड़ा ने बाद में जया बच्चन को उनकी पत्नी और रेखा को उनकी प्रेमिका के रूप में फिल्म में मुख्य भूमिका में कास्ट किया ,यश चोपड़ा को लगा कि फिल्म में अमिताभ बच्चन की पत्नी शोभा और उनकी प्रेमिका चांदनी के रूप में जया बच्चन और रेखा के होने से फिल्म अधिक आकर्षक और भावनात्मक रूप से प्रभावशाली बन सकती है। जी हाँ ब्यूटी क्वीन रेखा जिनकी अमिताभ जी के साथ जोड़ी सबसे हॉट मानी जाने लगी थी और लव स्टोरी भी सुर्खियाँ बटोर रही थी कहा जाता है कि ‘सिलसिला’ फिल्म उनकी इसी त्रिकोणीय प्रेम कथा पे बनी थी। हालाँकि ये लव स्टोरी शुरू हुई थी 1976 की फिल्म ‘दो अंजाने ‘की शूटिंग के दौरान तभी से दोनों ने एक दूसरे को डेट करना शुरू किया था। और कहते हैं कि एक दिन जया जी ने अमिताभ बच्चन की ग़ैर हाज़िरी में रेखा को घर बुलाकर कहा था कि वो उनके रास्ते से हट जाएँ क्योंकि वो अपने पति यानी अमित जी को कभी नहीं छोड़ेगीं। यूँ तो अमिताभ जी ने कभी सबके सामने अपना प्यार नहीं क़ुबूल किया पर रेखा आज भी इशारों-इशारों में अपने प्यार का इज़हार कर जाती हैं दोनों की साथ में ये आख़री फिल्म थी, उसके बाद आज भी जब दोनों एक दूसरे के सामने आते हैं तो नज़रें चुराते रहते हैं। ख़ैर अमिताभ जी के इस स्वर्ण युग की दूसरी फिल्में थीं ‘राम बलराम ‘,’शान ‘ , ‘ लावारिस’और ‘शक्ति ‘ जैसी सुपरहिट फिल्में जिनमें आपके अभिनय की तुलना ट्रेजिडी किंग कहे जाने वाले महान अभिनेता दिलीप कुमार की जाने लगी थी।
देश विदेश में हुईं उनकी सलामती की दुआएँ :-
१९८२ में ‘कुली ‘ फ़िल्म में अमिताभ बच्चन ने अपने सह कलाकार पुनीत इस्सर के साथ एक फाइट की शूटिंग के दौरान अपनी आंतों को घायल कर लिया था। बच्चन ने इस फ़िल्म में स्टंट अपनी मर्ज़ी से करने की छूट ले ली थी और एक सीन में उन्हें मेज़ से ज़मीन पर गिरना था लेकिन जैसे ही वो मेज़ की ओर कूदे तो मेज़ का कोना उनके पेट से टकराया और आंतों तक पहुंच गया जिससे काफ़ी खून बहने लगा वो ज़ख़्मी हो गए फिर उन्हें अस्पताल ले जाया गया और वहां कई महीनों तक इलाज के बाद मौत के मुंह से निकले। ये वो वक़्त था जब उन्हें अपनी फैन फॉलोइंग, लोगों के दिलों में उनके लिए प्यार का पता चला। पूरे देश में इनके चाहने वालों की भारी भीड़ उमड़ पड़ी लोग उनके लिए दुआएं करने में जुट गए दुर्घटना की खबर दूर दूर तक फैल गई और इस बीच ये अफ़वाह भी फैल भी गई की वो नहीं रहे तो मातम छा गया दूसरी तरफ़ इस हादसे की ख़बर यूके के अखबारों की सुर्खियों में थी , भारतियों के प्रेम का तो ये आलम था कि मंदिरों में पूजा अर्चनाओं के साथ उन्हें बचाने के लिए अपने अंग तक अर्पण करने की मन्नत मांगी गईं फिर सबकी दुआएँ रंग लाईं और साल के आख़िर में वो कुछ ठीक हुए तो काम पर दोबारा लौटे और फ़िल्म ‘कुली ‘ की शूटिंग की जो 1983 में रिलीज़ हुई और सुपर हिट रही क्योंकि लोग उन्हें परदे पर दोबारा देखने के लिए बेक़रार हो उठे थे हालाँकि निर्देशक मनमोहन देसाई ने अमिताभ के इस एक्सीडेंट के बाद ‘कुली ‘ फ़िल्म में कहानी का अंत बदल दिया था दरअसल इस फ़िल्म में अमिताभ जी के किरदार को अंत में मरना था लेकिन स्क्रिप्ट में बदलाव करने के बाद उन्हें अंत में जीवित दिखाया गया और देसाई साहब ने इस बारे में कहा कि जिस आदमी के लिए पूरे देश ने दुआएं कीं जो असली जीवन में मौत से लड़कर जीता हो उसे परदे पर मौत अपना ग्रास बना ले तो क्या लोग खुश होंगे इस लिए ये बदलाव ज़रूरी था।
कैसे किया राजनीति में जाने का फैसला लिया :-
एक्सीडेंट के बाद अमिताभ मियासथीनिया ग्रेविस बीमारी की चपेट में आ गए शायद भारीमात्रा में दवाई लेने से या बाहर से चढ़ाए गए ख़ून की वजह से ,जिससे उन्हें बहोत कमज़ोरी महसूस हुई और उन्होंने फिल्में छोड़कर राजनीति में जाने का फैसला किया। ये निराशा ही थी कि जो फिल्में हिट भी हुईं उनके रिलीज़ होने के पहले से ही अंदाज़ा लगाने लगे थे कि वो फ्लॉप हो जाएगी। ख़ैर 1984 में ‘शराबी’ जैसी फिल्में करने के बाद अमिताभ ने अभिनय से कुछ समय के लिए विश्राम ले लिया और अपने पुराने मित्र रहे राजीव गांधी की सपोर्ट में राजनीति में कूद पड़े फिर अपने घर इलाहाबाद लोक सभा सीट से उत्तरप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री हेमवती नंदन बहुगुणा को आम चुनाव के इतिहास में (68.2 %) के मार्जिन से विजय दर्ज करते हुए चुनाव में हराया था। हालांकि इनका राजनीतिक कैरियर 1984 से 1987 तक की छोटी सी अवधि के लिए ही था, इसके तीन साल बाद इन्होंने अपनी राजनीतिक अवधि को पूरा किए बिना ही त्याग दिया। इस त्यागपत्र के पीछे इनके भाई का बोफोर्स विवाद में अखबार में नाम आना था, जिसके लिए इन्हें अदालत में जाना पड़ा था । इसके बाद उनके पुराने मित्र अमरसिंह ने अमिताभ की मदद की और अमिताभ जी ने अमरसिंह की समाजवादी पार्टी का सपोर्ट किया। पत्नी जया बच्चन ने समाजवादी पार्टी ज्वाइन कर ली और राज्यसभा की सदस्या बन गई।
फ्लॉप फिल्मों का दौर भी आया :-
१९८८ में अमिताभ बच्चन फ़िल्मों में तीन साल की छोटी सी राजनीतिक अवधि के बाद वापस लौट आए और फिल्म ‘शहंशाह ‘ में शीर्षक भूमिका की जो उनकी की वापसी के चलते बॉक्स आफिस पर हिट रही पर इस वापसी वाली फिल्म के बाद इनकी स्टार पावर कम होती चली गई और आने वाली सभी फिल्में बॉक्स ऑफिस पर असफल होती रहीं। इसके बावजूद ग़ौर तलब है कि अमिताभ बच्चन ने १९९० की फिल्म ‘अग्निपथ ‘ में माफिया डॉन की यादगार भूमिका के लिए राष्ट्रीय फ़िल्म पुरस्कार, जीत लिया और जहाँ ये माना जा रहा था कि अब आने वाले कुछ साल ही हैं उनके पर्दे पर तब १९९२ में ‘ख़ुदागवाह ‘ के रिलीज़ होने के बाद उन्होंने रुपहले परदे पर फिर एक ख़ास जगह बना ली।
बतौर निर्माता की अभिनय में वापसी :-
सेवानिवृत्ति की तरफ जाने के दौरान अमिताभ निर्माता बने और अमिताभ बच्चन कारपोरेशन लिमिटेड की स्थापना की। जिसकी पहली फिल्म ‘तेरे मेरे सपने ‘ थी जो बॉक्स ऑफिस पर विफल रही लेकिन अरशद वारसी और फिल्मों के सुपर स्टार सिमरन जैसे अभिनेताओं के करियर के दरवाज़े खोल दिए। इस तरह एबीसीएल कुछ कमाल नहीं दिखा सकी तो 1997 में, एबीसीएल के ज़रिये ‘मृत्युदाता ‘, फिल्म से बच्चन ने अपने अभिनय में वापसी की फिर भी कंपनी को नहीं बचा सके और ये प्रशासन के हाँथों में चली गई और इसे भारतीय उद्योग मंडल ने असफल करार दिया।
छोटे पर्दे पर भी किया राज :–
बाद में अमिताभ ने अपने अभिनय करियर को संवारने का प्रयास किया जिसमें उसे ‘बड़े मियाँ छोटे मियाँ ‘ से औसत सफलता मिली और ‘सूर्यावंशम ‘, से सकारात्मक समीक्षा प्राप्त हुई लेकिन ये मान लिया गया कि बच्चन का जादू अब ख़त्म हो गया है चूंकि उनकी बाकी सभी फिल्में जैसे ‘लाल बादशाह ‘ और ‘हिंदुस्तान की क़सम ‘ बॉक्स ऑफिस पर विफल रही थीं तब साल २००० में, अमिताभ बच्चन ने ब्रिटिश टेलीविजन शो के खेल, ‘हू वाण्टस टु बी ए मिलियनेयर ‘ को भारत में ‘ कौन बनेगा करोड़पति ‘,के नाम से लाने में अहम् भूमिका निभाई ,जो लोकप्रिय हुआ और इसमें अमिताभ के जादू को छोटे पर्दे पर महसूस किया गया और इस कार्यक्रम के संचालन के लिए उन्होंने इतनी बड़ी रकम ली की अमिताभ बच्चन फिर अपनी मज़बूत स्थिति में पहुंच गए। इसी साल अमिताभ बच्चन आदित्य चोपड़ा, द्वारा निर्देशित यश चोपड़ा’ की बॉक्स ऑफिस पर सुपर हिट फ़िल्म ‘मोहब्बतें ‘ में शाहरुख खान.के साथ बहोत ही दमदार भूमिका में पूरे जोश ओ ख़रोश के साथ नज़र आए और मानो उन्होंने वो सब पा लिया जो उनसे खो गया था। इसके बाद की उनकी हिट फिल्में रहीं ‘एक रिश्ता:द बॉन्ड ओफ लव ‘, ‘कभी ख़ुशी कभी ग़म ‘और ‘बाग़बान ‘।
तब से अब तक जारी है ये सिलसिला :-
इसी दशक की ,अक्स ‘, ‘आंखें ‘, ‘खाकी ‘, ‘देव ‘और ‘ब्लैक ‘ जैसी फ़िल्मों के लिए अमिताभ जी ने अपने आलोचकों की प्रशंसा भी प्राप्त की और इस पुनरुत्थान का लाभ उठाकर, बहुत से टेलीविज़न और बिलबोर्ड विज्ञापनों में शामिल हुए कई किस्मों के उत्पाद एवं सेवाओं के प्रचार के लिए काम करना शुरू कर दिया अमिताभ बच्चन , पोलियो उन्मूलन अभियान और तंबाकू निषेध परियोजना का हिस्सा बनें ,उन्हें अप्रैल 2005 में एचआईवी/एड्स और पोलियो उन्मूलन अभियान के लिए यूनिसेफ के द्वारा सद्भावना राजदूत नियुक्त किया गया। अमिताभ जी ने २००५ और २००६ में अपने बेटे अभिषेक के साथ ‘बंटी और बबली ‘,’ सरकार ‘, और ‘कभी अलविदा ना कहना ‘ जैसी हिट फ़िल्मों में स्टार कलाकार की भूमिका की। ‘बंटी और बबली ‘ फिल्म में उनकी बहू , पूर्व विश्वसुन्दरी और अभिनेत्री ऐश्वर्या रॉय भी उनके साथ नज़र आईं ये सभी फ़िल्में बॉक्स ऑफिस पर सुपरहिट रहीं। २००६ और २००७ के शुरू में रिलीज़ उनकी फ़िल्मों में ‘बाबुल ‘और ‘एकलव्य ‘, ‘निशब्द ‘ रहीं तो वहीँ उन्होंने चंद्रशेखर नागाथाहल्ली द्वारा निर्देशित कन्नड फ़िल्म ‘अमृतधारा ‘ में मेहमान कलाकार की भूमिका की। मई २००७ में, इनकी दो फ़िल्मों में से एक ‘चीनी कम ‘और बहु अभिनीत ‘शूटआउट एट लोखंडवाला ‘ रिलीज़ हुई जो बेहद हिट रहीं।
अमिताभ जी ने अपने करियर में अनेक पुरस्कार जीते हैं, जिनमें ‘दादासाहेब फाल्के पुरस्कार’, तीन राष्ट्रीय फ़िल्म पुरस्कार और बारह फ़िल्मफ़ेयर पुरस्कार शामिल हैं। उनके नाम सर्वाधिक सर्वश्रेष्ठ अभिनेता फ़िल्मफेयर अवार्ड का रिकार्ड है। अभिनय के अलावा बच्चन ने पार्श्वगायक, फ़िल्म निर्माता, टीवी प्रस्तोता और भारतीय संसद के एक निर्वाचित सदस्य के रूप में 1984 से 1987 तक अमूल्य योगदान दिए हैं। भारतीय टीवी का लोकप्रिय शो “कौन बनेगा करोड़पति” में कई सालों तक अपने मुख़्तलिफ़ अंदाज़ में बेज़बानी की और उनका ‘देवियों और सज्जनों’ संबोधन बहुचर्चित रहा और शायद हमेशा रहेगा।