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HINDI LOVE STORY: स्लेटी लड़का वाइट हो गया !

ladka

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Hindi Love Story In Hindi: एक लड़का था स्लेटी कलर का जी हाँ स्लेटी ,शायद मुझसे कुछ साल बड़ा रहा होगा ,मैंने उसे पहली बार तब देखा था जब मेरे घर में ऊपर की मंज़िल में कुछ कमरे बन रहे थे और वो सीमेंट लेकर आया था ,बड़ा बांका जवान था ,बड़े -बड़े घुंघराले बाल थे उसके ,नैन नक्श की क्या कहें ! वो तो उसने अपनी दाढ़ी के पीछे छुपा रखे थे , दाढ़ी में भी स्लेटी रंग चढ़ा था ,हाँथ -पैर ,मूँ से लेकर कपड़े भी स्लेटी थे, हाँ वो स्लेटी कलर से रंगा इंसान, सीमेंट की दुकान पर काम करता था और ऑर्डर पर ठेलिया में सीमेंट लादकर घर-घर पहुँचाता था ,अक्षय नाम था उसका ,मेरे पापा उसे इसी नाम से बुलाते थे । उसके बाद मेरे छोटे से शहर के रास्तों में वो मुझसे कहीं न कहीं टकरा ही जाता था ,स्लेटी ठेलिया घसीटते वो स्लेटी लड़का ,जो मुझे देखकर हल्का सा मुस्कुरा कर आगे बढ़ जाता था ।

कुछ दिनों बाद मुझे पता चला कि वो लड़का अपनी माँ और बहन को लेकर मेरे ही घर के पास किराए से रहने आ गया है। उसकी बहन दिपाली मेरी ही उमर की थी और मेरे ही कॉलेज में पढ़ती थी मै काफी पहले से उसे ,जानती थी पर ये नहीं जानती थी कि वो अक्षय की बहन है। एक दिन दिपाली मुझे कॉलेज के रास्ते में ही मिल गयी तो मैंने उसे रुकने को कहा और रिक्शा छोड़ कर उसके साथ ही पैदल चलने लगी उसने कहा कि आपने रिक्शा क्यों छोड़ दिया मेरी तो आदत है पैदल चलने की पर आप थक जाएंगी तो मैंने कहा अरे अब तुम्हारा साथ मिल गया है न तो मै नहीं थकूँगी बस फिर हमारी बातें शुरू हो गईं, मैंने उसे बताया कि तुम अक्षय की बहन हो ये मुझे नहीं पता था ,और उसके भइया की बातें निकलते ही मानों उसके चेहरे में एक ख़ुशी सी छा गयी और वो अक्षय की तारीफ़ों के पुल बांधने लगी, कहने लगी. .. उन्होंने मेरी पढाई के लिए इतनी मेहनत का काम चुना है क्योंकि पिता जी के अचानक गुज़र जाने के बाद उनकी पढ़ाई अधूरी रह गई थी और उन्हें अच्छी तनख्वाह वाली नौकरी नहीं मिल रही थी , अब वो मुझे और माँ को तो इतने अच्छे से रखते हैं पर खुद ऐसे हो गए हैं कि हम खुद भी कभी -कभी सोचते रह जाते हैं कि वो वही हैं जिनके कपड़ों की कभी क्रीज़ नहीं ख़राब होती थी ,दाग़ लगना तो बहोत दूर की बात है।

इतना कहते ही उसकी आँखों में आँसू आ गए और मेरी भी आँखे नम हो गईं ख़ैर बात करते -करते कब कॉलेज आ गया पता ही नहीं चला फिर वो अपनी क्लास में चली गई और मै अपनी। लौटते वक़्त भी वो मुझे मिल गयी और मैंने रिक्शा नहीं लिया कुछ ही दिनों में मेरा रिक्शा छूट गया और रोज़ उसके साथ आने जाने की आदत बन गई ,दिपाली से अब मेरी अच्छी दोस्ती हो गई थी, और आप से दिपाली अब मुझे अरुणा कहकर पुकारने लगी थी ,एक दिन मैंने बातों -बातों में कहा. .. दिपाली हमें एक ड्राइवर की ज़रूरत है तुम भइया से बात करो अगर वो राज़ी हो जाएँ तो मै पापा से बात करूँ तनख्वाह भी सीमेंट की दूकान से कुछ ठीक ही देंगे और इतनी मेहनत भी नहीं करनी पड़ेगी बस हर टाइम अवेलेबल रहना पड़ेगा क्योंकि मेरे पापा बाहर रहते हैं और कब मुझे या माँ को कहीं जाना पड़ जाए तो उन्हें बुलाना आसान हो इसलिए ,

मै इतना कहकर रुकी ही थी कि दिपाली झट से बोल पड़ी हाँ फिर तो बहोत अच्छा हो जाएगा ,भइया पढ़ भी सकेंगे मै ज़रूर पूछूँगी। अगले दिन दिपाली आई तो बहोत खुश थी और आते ही बोली अरुणा ,भइया मान गए हैं, तुम अपने पापा से पूछ लो मैंने कहा अरे ये तो बहोत अच्छी बात है ,मै अभी पापा से पूछती हूँ ,इतना कहके मैंने पापा को कॉल किया और पापा से बताया कि पापा एक ड्राइवर हमें मिल गया है, क्या हम रख लें तो पापा ने कहा हाँ अगर उसको जानते हो तो रख लो ,मैंने उन्हें याद दिलाया कि आप भी उसे जानते हैं, मिलेंगे तो पहचान जाएंगे ,उन्होंने कहा. ..अच्छा ठीक है रख लो।

बस फिर क्या था मुझे बहोत अच्छा लगा कि मै किसी के लिए कुछ कर पा रही हूँ मैंने दिपाली को बताया तो उसकी ख़ुशी का तो ठिकाना ही नहीं रहा वो बोली ..’अरुणा आज हम कॉलेज नहीं जाएँगे मै जा रही हूँ भइया को ख़ुशख़बरी सुनाने और वो दौड़ती हुई अक्षय की दूकान की तरफ चली गई अगली सुबह मेरे दरवाज़े की घंटी बजी मैंने दरवाज़ा खोला तो एक सुन्दर सा लड़का मेरे सामने खड़ा था मैंने कहा ‘ जी कहिये तो उसने कहा, मैं ….वो ,मै …इतने में उसके पीछे मुझे दिपाली आती हुई दिखी और तब मुझे समझ आया कि वो अक्षय है ,मैंने कहा अरे अक्षय आओ ,आओ ,मैंने माँ को आवाज़ दी और अक्षय को मिलवाते हुए बताया कि ये आज से हमारी गाड़ी चलाएंगे माँ ! माँ ने कहा अच्छा।

फिर उन्होंने अपनी तरफ से पूछताछ भी कर ली और बोली तो ठीक है तुम्हारी नौकरी पक्की। अरुणा को आज से ही कॉलेज ले जाओ पर अभी तो टाइम है वो तैयार हो जाए फिर जाएगी , चाहो तो तुम बाहर वाले रूम में रह सकते हो, मैंने खुलवा दिया है ,वो बोला ठीक है और इतना कहके वो बाहर चला गया रूम देखा और वही इंतज़ार करने लगा।

थोड़ी देर में मै ,दिपाली के साथ बाहर आई तो वो फ़ौरन आ गया और गाड़ी का गेट खोल दिया मै बैठ गई और दिपाली मुझे बाय करके जाने लगी, मैंने कहा, अरे कहाँ ? तो उसने कहा अरे तुम चलो मै पीछे- पीछे आ रही हूँ पर मैंने कहा. .ऐसा नहीं होगा आख़िर तुम्हारा इतना एहसान है मुझपर, इतना अच्छा ड्राइवर तुमने मुझे दिया है ,अब मै भी तो सहेली होने के फ़र्ज़ को पूरा करुँगी, चलो आओ बैठो हम साथ ही कॉलेज जाएंगे ,जैसे जाते थे , वो मेरी बात टाल नहीं पाई और हँसते -हँसते गाड़ी में बैठ गई अब हम रोज़ एक हैंडसम ड्राइवर के साथ कॉलेज आते-जाते पर इस बीच अक्षय ज़्यादातर चुप ही रहता और जब हम कॉलेज जाते या फिर कहीं और भी तो हमारे लौटकर आने तक वो गाड़ी में बैठकर भी पढता रहता, ये देखकर मैंने दिपाली से कहा की वो अक्षय को कहे कॉलेज में दाखिला लेने के लिए तो वो अपनी पढ़ाई पूरी करने के लिए भी मान गया और एडमिशन ले लिया कुछ दिनों बाद पापा घर आए तो अक्षय से मिले और वो भी मेरी तरह अक्षय को देखकर पहली बार में पहचान ही नहीं पाए कि ये वही लड़का है जो कभी स्लेटी कलर का हुआ करता था और उस पर सिर्फ़ ज़रा आँखे सफ़ेद दिखती थीं ।

पापा अक्षय से वैसे भी बहोत खुश रहते थे क्योंकि वो बहोत मेहनती था पर उसे आज इस तरह देखकर तो वो हद से ज़्यादा ख़ुश थे ,क्योंकि वाइट शर्ट में ये वाइट सा लड़का वो भी इतने सुन्दर से नैन नक़्श के साथ ,स्लेटी रंग के अंदर से निकला था , आज उसकी दाढ़ी भी उस पर जच रही थी क्योंकि वो पहले से छोटी हो गई थी ।

मेरी तो नज़रें ही उस पर से नहीं हटती थी इसलिए उससे नज़रें बचाकर मै उसे छुप-छुप कर देखा करती थी ,ख़ैर दिन ऐसे ही बीतते गए और हमारा रिज़ल्ट आ गया अक्षय ने कॉलेज में टॉप किया था पर कोई उसको पहचानता नहीं था क्योंकि वो क्लास कम ही लेता था पर आज सब उसको ढूंढ रहे थे ,फिर मै कहाँ पीछे रहती मैंने सबको अक्षय से मिलवा दिया और सबने उसे खूब बधाई दी। मैंने घर में भी सबको बताया और माँ ने तो उसका मूँ भी मीठा कराया और आशीर्वाद दिया कि वो खूब तरक्की करे। अब अक्षय ग्रेजुएट हो चुका था और इसीलिए वो एक दिन पापा से मिलने घर आया पहले तो उसने पापा का बहोत शुक्रिया अदा किया कि उन्होंने उसे काम दिया उसे आज यहाँ तक पहुँचाया कि अब उसे अच्छी नौकरी मिल सकती है फिर उसने इजाज़त माँगी कि वो कहें तो अब वो कहीं और अच्छी नौकरी कर ले क्योंकि अब उसे दिपाली की शादी भी करनी है ,लेकिन पापा जब भी उसे बुलाएंगे वो दौड़ा चला आएगा क्योंकि उन्होंने उस वक़्त उसका जीवन सँवारा जब भाग्य ने उसके सिर से पिता का साया छीन लिया था।

ये सुनकर मुझे लगा अब अक्षय नौकरी छोड़कर चला जाएगा पर पापा ने कहा “ठीक है तो मै तुम्हें नई नौकरी दे देता हूँ, तुम ऐसा करो कि तुम मेरा लखनऊ वाला ऑफिस संभाल लो क्योंकि अब मै बूढ़ा हो गया हूँ और मुझसे दो जगह अकेले काम नहीं संभाला जाता, मैंने पिता की तरह तुम्हें संभाला है तो अब तुम मेरे बेटे की तरह मुझे संभाल लो पर हाँ जब यहाँ बुलाऊँ तो यहाँ भी चले आना और दिपाली की फ़िक्र न करो उसके लिए लड़का मै देखूँगा “ये कहते हुए पापा की आँखों से आँसू छलक पड़े और अक्षय भी उन्हें पापा कहकर उनके पैरों से लिपट गया और पापा ने उसे उठाकर सीने से लगा लिया ,

माँ और मै भी ख़ुशी के आँसुओं से भीग गए। कुछ दिनों बाद अक्षय आया और मेरे दीवानेपन का ख़ुमार और बढ़ गया जब मैंने उसे एक और नये रूप देखा ,इस बार वो वाइट कोट पैंट में था और उसका ये दिलकश रूप ,मुझे और दीवाना बनाने के लिए काफी था पर एक तरफ मै अक्षय की दीवानी बनी बैठी थी और दूसरी तरफ अब मेरी भी शादी के पैग़ाम आने लगे थे और इससे पहले कि पापा मेरे लिए कोई फैसला करते मैंने माँ को अपने दिल का हाल बता दिया और माँ ने पापा को ,अब बारी थी अक्षय के दिल का हाल जानने की जो उसने कभी किसी को नहीं बताया था और ये जानने की ज़िम्मेदारी ली पापा ने उन्होंने अक्षय से पूछा बेटा ये बताओ कि तुमने अपनी भी शादी के बारे में कुछ सोचा है? या ये भी मुझे ही सोचना पड़ेगा तो अक्षय शर्माते हुए बोला पापा जी अभी तो कुछ नहीं सोचा है पर दिपाली की शादी के बाद माँ अकेली हो जाएंगीं तो वो कहती हैं ,कि दिपाली की विदाई के बाद ही मै शादी कर लूँ , फिर आप जैसा कहें ,पापा ने अक्षय की बात बड़े ग़ौर से सुनी फिर बोले ठीक है फिर एक रिश्ता मैंने तुम्हारे लिए भी देख रखा है तो तुम कहो तो मै तुम्हारी माँ से बात करूँ !

अक्षय ने कहा आप मेरे पिता सामान हैं मुझपर आपका अधिकार है, आप तो मुझे बस आज्ञा दीजिये ,ये कहकर वो चला गया। अगले दिन पिता जी ने अपने दोस्त के बेटे के लिए दिपाली के रिश्ते कि बात की और कहा वो अक्षय के घर आ जाएँ वो भी साथ चलेंगे और पापा सबको लेकर अक्षय के घर पहुंचे उसकी माँ ने सबका खूब अच्छे से स्वागत किया और उन्होंने भी अक्षय की तरह ही पापा का बहोत शुक्रिया अदा किया कि उन्होंने बुरे वक़्त में उनका साथ दिया। तब पापा ने बड़ी हिम्मत करके उनसे मेरे रिश्ते की बात की और कहा वो मुझे देखलें अगर मै उन्हें उनके बेटे के लायक़ लगूँ तो ही वो हाँ करें, मेरे किये हुए काम को एहसान समझकर उसका बदला न चुकाएँ और उन्हें घर आने के लिए कहा।

अब मेरे दिल का हाल तो इतना बुरा हो रहा था कि मैंने अक्षय के घर आने पर भी उसका सामना नहीं किया पर उसे पर्दे के पीछे से देखने के बाद मुझे ऐसा लगा कि अक्षय की नज़रें मुझे ढूंढ रहीं थी शायद ऐसा मुझे पहली बार लगा था तो मै उसके सामने आ ही गई फिर सबसे नज़र बचाकर उससे नज़रें मिलाईं तब मुझे एहसास हुआ कि वो मुझसे कुछ कहना चाह रहा है मैंने इशारों में उससे बाहर आने के लिए कहा, जब वो बाहर आया तो मैंने उससे पूछा “अक्षय क्या हुआ?

तुम ख़ुश नहीं हो क्या तुम किसी और को पसंद करते हो ?” अक्षय बोला “नहीं मै तो बस ये सोचकर परेशान हूँ की मेरा तुम्हारा क्या मेल कहाँ तुम कहाँ मै तुमने अपने लिए जाने क्या – क्या ख्वाब देखे रहे होंगे और तुम्हारे पापा ने तुम्हारे लिए अचानक मुझे चुन लिया तुम बहोत नाराज़ होंगी न मुझसे” तो मैंने कहा” हाँ नाराज़ हूँ बहोत ,तो कहने लगा ..” पर अरुणा इसमें मेरी कोई ग़लती नहीं है तुम कहो तो मै अभी जाके मना कर दूँ, मैं माँ को भी समझा लूँगा ,प्लीज़ तुम मुझसे नाराज़ नहीं होना ये मै बर्दाश्त नहीं कर पाउँगा “,मैंने धीरे से पूछा पर क्यों ? अक्षय ने जवाब दिया “क्योंकि तुम मुझे हमेशा से आसमान से उतरी परी लगती हो और परी की आँखों में आँसू नहीं अच्छे लगते,मै तुम्हे बस ख़ुश देखना चाहता हूँ हमेशा।

“मै पूरी तरह अक्षय की बातों में खो चुकी थी कि पीछे से पापा की आवाज़ आई ” बेटा तो तुम ये बात जान लो कि ये परी सिर्फ़ अक्षय के साथ ही ख़ुश रह सकती है ये फैसला मेरा नहीं अरुणा का ही है “और सब ज़ोर -ज़ोर से हँसने लगे। ख़ैर अक्षय की मम्मी घर आईं हमारा और दिपाली का पापा के दोस्त के बेटे देव के साथ रिश्ता पक्का हुआ फिर जल्दी ही दिपाली की शादी के बाद मेरी और अक्षय की शादी भी हो गई और आज हम सब एक साथ रहते हैं एक परिवार बनकर क्योंकि अब अक्षय मेरे पापा-मम्मी को कहीं भी अकेले नहीं छोड़ना चाहता वो उनका दामाद नहीं बेटा ही बन गया है, जी हाँ अक्षय जिसे कभी मै स्लेटी बॉय कहती थी ,ह ह हा।

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