विलुप्त होती कशीदाकारी की बेहतरीन कला जरदोजी की कढ़ाई की कहानी – The Fading Glory of Zardozi Embroidery – A Timeless Tale of Royal Craftsmanship

The Fading Glory of Zardozi Embroidery – A Timeless Tale of Royal Craftsmanship – एक समय था जब राजसी पोशाकों और शाही परंपराओं में जरदोजी की चमक अलग ही रौनक बिखेरती थी । बारिक धातु के तारों और रेशमी धागों से की गई यह बमिसाल कढ़ाई भारत की समृद्ध कारीगरी की पहचान थी। लेकिन आज यह शाही हस्तकला धीरे-धीरे गुमनामी में समा चुकी है। यह स्टोरी उस कारीगरी की है जो कभी बादशाहों के वस्त्रों  की शोभा थी और उन कारीगरों की जिनके हुनर की दुनियां कायल थी। लिए शुरूआत करते हैं यह जानकर कि कहां से आई जरदोजी की कला और इस अप्रतिम कला का सौंदर्य कैसे धीरे धीरे विलुप्त होने की कगार पर जा पहुंचा। इस लेख में इसके विलुप्त होने के कारण और अब इसे पुनः ट्रेंडी बनाने पर फोकस किया है।

जरदोजी की शुरुआत हुआ शाही कशीदाकारी का जन्म – The Origins of Zardozi Embroidery Fit for Emperors
जरदोजी शब्द फारसी भाषा से आया है जिसमें “जर” यानी “सोना” और “दोजी” यानी कढ़ाई मतलब है। मुगल काल में जब शाही वस्त्र और सिंघासन जरदोजी से सजाए जाते थे तब यह कढ़ाई अपने स्वर्णिम युग में थी। नवाबों राजवाड़े और सामंतों की पोशाकों में इसका विशिष्ट था। लखनऊ ,दिल्ली ,बनारस और हैदराबाद जैसे महानगरों में जरदोजी के प्रमुख व बड़े बाजार रहे।

कैसे बनती है जरदोजी, एक सुई धागा से शुरू होने वाला जादू – The Making of Zardozi, Magic Woven with Needle and Thread

इस कढ़ाई में कारीगर धातु की पतली तारों ,गोल्डन या सिल्वर का जिन्हें कतदाना ,शीप, पिटा आदि आदि वस्तुओं के साथ मिलकर सजावटी डजाइनें बनाई जाती थीं जिसमें बॉर्डर, बेल-बूटे, कलियां, तितली जैसे नमूने शामिल थे। रेशमी कपड़ों सहित यह कला हर तरह के फेब्रिक पर सजाई जाती थी जिसमें पर पहले डिजाइन बनाया जाता था फिर सुई और धागे से उसे साकार किया जाता था।  यह काम बेहद समय और धैर्य मांगता है एक छोटी सी डिजाइन में भी कई दिन लग जाया करते थे।

वह जमाना जब जरदोजी थी शान का प्रतीक
The Golden Era – When Zardozi Was a Status Symbol

शादी-ब्याह, त्योहार और खास मौकों पर जरदोजी के काम वाले कपड़े पहनना गर्व की बात मानी जाती थी। यहां तक कि धार्मिक वस्त्र पर्दे घोड़े की साज-सज्जा तक में जरदोजी का उपयोग होता था। राजाओं और नवाबों के महल भी इसकी कढाई से जगमगाते थे। बाज़ार की पसंद रही इस कला ने न सिर्फ मार्केट को लुभाया बल्कि जरदोजी के पसंद करने वाले के दिल-दिमाग में जरदोजी ने सदियों किसी दिलरुबा की तरह राज किया। विडंबना ही नहीं ये दुर्भाग्य है कि इस दुर्लभ हस्तकला का नवीन पीढ़ियों में नामोनिशान तक नहीं है।

धीरे-धीरे कैसे हुई इस कला की अनदेखी
The Decline Why This Regal Craft Is Dying

समय के साथ तेज फैशन ,मशीनी कढ़ाई व सस्ते विकल्पों ने इस आश्चर्यजनक कला साक्ष्य को पीछे छोड़ दिया।कारीगरों को काम न मिलाना, कीमत न मिला भी एक बड़ा कारण रहा। जबकि सबसे बड़ा कारण बना, नई पीढ़ी ने जब इस कला को अपनाने से इनकार कर दिया। क्योंकि इस क्षेत्र में रोजगार की गारंटी नहीं थी और इस सुनहरी कला की चमक फीकी पड़ती चली गई।

कुछ कारीगर अभी भी जला रहे जरदोजी कला की मशाल – The Torchbearers Keeping Zardozi Alive Against All Odds
लखनऊ, बनारस और काश्मीर जैसे शहरों में आज भी कुछ परिवार इस परंपरा को जीवित रखे हुए हैं। जिसमें कुछ कलाकार, डिजाइनर और डीक्राफ्ट प्रमोटर्स  इस कला को जीवित रखने में वैश्विक मंचों पर लगातार प्रयासरत हैं। इसके अलावा GI टैग,हेंडलूम मेलों और ट्रेनिंग कार्यक्रमों के माध्यम से भी इस कला को संरक्षित करने का प्रयास किया जा रहा है।

ज़रदोजी को बचाने की जिम्मेदारी हमारी भी –
Reviving Zardozi  A Responsibility We Must Share

अगर हम अपने पहनावे और सजावट में इस हस्तकला को स्थान दें तो यह अद्भुत कला फिर से लोकप्रिय हो सकती है। लोकल आर्ट को सपोर्ट करना, ऑर्डर पर इस कला के हेण्डमेड आइटम खरीदना और सोशल मीडिया के जरिए इसके प्रचार प्रसार में आगे आना, जैसे छोटे-छोटे प्रयास जरदोजी को नया जीवन दे सकते हैं।

विशेष – Conclusion
जरदोजी सिर्फ एक कढ़ाई नहीं बल्कि एक कहानी है – परंपरा , मेहनत और कला की। भले ही इसकी चमक आज धुंधली पड़ चुकी है लेकिन अगर हम चाह लें तो इस नायाब हस्तकला को फिर से सुनहरा बना सकते हैं। संकल्प लीजिए कि आप आगे कोई भी डिजाइनर ड्रेस चुने तो उसमें जरदोजी कला का वर्क शामिल हो ताकि जरदोजी को फिर से मार्केट में सजाया जा सके।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *