बघेलखंड की भाषा। भारत देश विविध भाषा और बोलियों से परिपूर्ण है। अपने-अपने क्षेत्रों की बोली में खानपान से लेकर सभी तरह की गतिविधियों में ऐसी भाषा का उपयोग किया जाता है। उन्ही में से मध्यप्रदेश के बघेलखंड में सुबह से रात तक खाने को एक नाम दिया गया, लेकिन बदलते दौर के साथ अब लोगो की जुबान से यहां बोली जाने वाली सुबह कलेवा, दोपहर जेउनार और रात मा बिआरी भाषा मानों समाप्त होती जा रही है, जबकि 15 से 20 वर्ष पहले तक लोग कलेवा, जेउनार और बिआरी शब्द का उपयोग खाने के समय में करते थें।
लंच-ब्रेकफास्ट और डिनर
इसे भाषा का समावेश कहा जाए या फिर बदलते दौर के साथ लोग अपनी बोली भाषा को पीछे छोड़ते जा रहें, लेकिन यह सत्य है कि अब लोग अपने खाने में या तो सुबह का नाश्ता, दोपहर का खाना और रात का खाना या फिर सुबह लंच, दोपहर ब्रेकफास्ट और रात में डिनर यानि की अंग्रेजी भाषा के इस्तेमाल पर ज्यादातर जोर दे रहे है। इतना ही नही वे अपने बच्चों को अब लंच-ब्रेकफास्ट और डिनर शब्द को बखूबी रट्टू बना रहे है। ऐसे में स्थानिय भाषा अब शायद चन्द्र जुबानों पर ही रह गई। गांव के बुजूर्ग एवं भाषा के कुछ जानकार ही यहा की बोली कलेवा-जेउनार और बिआरी को बोल पा रहे है। ऐसे में यह स्थानिय बोली धीरे-धीरे करके लुप्त होने की कगार पर है।
बघेलखंड के ये 10 व्यंजन
1-पना पूरी
- रसाज
- इंदरहर/रकिमछ
- गुलगुला
- बरा मुगौरा
- रहलिा/चना के भाजी
- बग्जा
- पेंउसरी/खोझरी/तेली
- बेर्री के रोटी कनेमन
- मिठखोर और महेरी