Supreme Court On CAA : सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने दिया बड़ा फैसला, नागरिकता कानून की धारा 6A को माना वैध

Supreme Court On CAA : नागरिकता अधिनियम की धारा 6ए की संवैधानिक वैधता पर सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला सामने आया है। कोर्ट ने नागरिकता अधिनियम की धारा 6A को वैध करार देते हुए कहा कि इस धारा को बरकरार रखा जाए । इस फैसले में कुल तीन फैसले हैं। जस्टिस पारदीवाला का अलग से फैसला है। बहुमत के फैसले से धारा 6ए को वैध घोषित किया गया है। सीजेआई जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली 5 जजों की संवैधानिक पीठ ने 6ए में भारतीय नागरिकता के लिए आवेदन करने के लिए दी गई 25 मार्च 1971 की कट-ऑफ तारीख को भी बरकरार रखा।

चीफ जस्टिस चंद्रचूड़ की टिप्पणी। Supreme Court On CAA

चीफ जस्टिस ने कहा कि राज्यों को बाहरी आक्रमण से बचाना केंद्र सरकार का कर्तव्य है। अनुच्छेद 355 के तहत कर्तव्य को अधिकार मानने से नागरिकों और अदालतों को आपातकालीन शक्तियां मिल जाएंगी, जो विनाशकारी होंगी। उन्होंने आगे कहा कि किसी राज्य में अलग-अलग जातीय समूहों की मौजूदगी अनुच्छेद 29 (1) का उल्लंघन नहीं है। याचिकाकर्ता को यह साबित करना होगा कि एक जातीय समूह अपनी भाषा और संस्कृति की रक्षा नहीं कर सकता, क्योंकि वहां दूसरा जातीय समूह भी रहता है।

यह अधिनियम केवल असम के लिए था। Supreme Court On CAA

मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि केंद्र सरकार इस अधिनियम को अन्य क्षेत्रों में भी लागू कर सकती थी, लेकिन ऐसा नहीं किया गया। क्योंकि यह केवल असम के लिए था। क्योंकि यह असम के लिए व्यावहारिक था। सीजेआई ने कहा कि 25 मार्च 1971 की कट ऑफ तिथि सही थी। आजादी के बाद पूर्वी पाकिस्तान से असम में अवैध प्रवास भारत में कुल अवैध प्रवास से अधिक था। यह इसके मानदंडों की शर्त को पूरा करता है। धारा 6ए न तो कम समावेशी है और न ही अधिक समावेशी।

जिन्हें नागरिकता मिली है, उनकी नागरिकता बरकरार रहेगी

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि उस समय पूर्वी पाकिस्तान से असम आने वाले लोगों की संख्या आजादी के बाद भारत आए लोगों से कहीं अधिक है। कोर्ट के फैसले का मतलब है कि 1 जनवरी 1966 से 25 मार्च 1971 के बीच बांग्लादेश से आने वाले अनिवासी भारतीय नागरिकता के पात्र हैं। इसके तहत नागरिकता पाने वालों की नागरिकता बरकरार रहेगी।

नागरिकता अधिनियम 1955 की धारा 6A क्या है (Supreme Court On CAA)

नागरिकता अधिनियम 1955 की धारा 6A के अनुसार, 1 जनवरी 1966 से 25 मार्च 1971 के बीच असम में आए बांग्लादेशी अप्रवासी खुद को भारतीय नागरिक के रूप में पंजीकृत कर सकते हैं। हालांकि, 25 मार्च 1971 के बाद असम आए विदेशी भारतीय नागरिकता के पात्र नहीं हैं। सुप्रीम कोर्ट में दायर याचिकाओं में कहा गया है कि 1966 से पूर्वी पाकिस्तान (अब बांग्लादेश) से अवैध शरणार्थियों के आने से राज्य का जनसांख्यिकीय संतुलन बिगड़ रहा है। राज्य के मूल निवासियों के राजनीतिक और सांस्कृतिक अधिकारों का हनन हो रहा है। सरकार ने नागरिकता अधिनियम में 6A जोड़कर अवैध घुसपैठ को कानूनी मंजूरी दे दी थी।

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