Teesri Kasam जो असफल होने के बाद भी हिंदी सिनेमा में कल्ट मानी जाती है

Teesri Kasam Film Ki Kahani Hindi Mein: 1966 में आई राजकपूर और वहीदा रहमान अभिनीत एक फिल्म है तीसरी कसम, यह फिल्म सुप्रसिद्ध हिंदी लेखक फणीश्वरनाथ रेणु के उपन्यास मारे गए गुलफाम पर आधारित है। फिल्म के निर्माता हैं सुप्रसिद्ध गीतकार ‘शैलेंद्र’, जबकी फिल्म को निर्देशित किया है बासु चटर्जी ने। इस फिल्म में हिरामन का किरदार निभा रहे राजकपूर का अभिनय सर्वोच्च माना जाता है, हीराबाई बनीं वहीदा रहमान भी ने जबरजस्त एक्टिंग की है, दोनों कलाकारों की मूक अभिनय से सब कुछ कह देना ही, इस फिल्म की सबसे खूबसूरत बात है। यह फिल्म उस समय असफल रही, लेकिन हिंदी सिनेमा में कल्ट मानी जाती है।

तीसरी कसम फिल्म का संगीत | Music of Teesri Kasam movie

शंकर-जयकिशन ने फिल्म को अपने संगीत के साजों से संवारा है। मुकेश जी, लता जी, आशा जी, मन्ना दा और मुबारक बेगम आदि ने सुरों से सराबोर किया, जबकी लच्छू महाराज के नृत्य निर्देशन के भाव और भंगिमाओं से अभिभूत इस प्रेम-लोक के संसार को निर्देशित किया बासु भट्टाचार्य ने। फिल्म के लिए गीत लिखे हैं खुद शैलेन्द्र और हसरत जयपुरी ने।

फिल्म तीसरी कसम कहानी का प्रारंभ | Teesri Kasam movie story

फिल्म की कहानी का केंद्रीय पात्र है हीरामन जो एक बैलगाड़ी चलाता है। एक बार चोरी का माल लादने के बाद पुलिस ने पकड़ लिया था, जिसके बाद उसने कसम खाई, वह गाड़ी में चोरी का माल कभी नहीं लादेगा। दिक्कत होने के कारण वह गाड़ी में बांस की लदनी नहीं करेगा। और तीसरी कसम जी वही तो कहानी का सबसे आकर्षक और भावपरक कसम है, तो उसका जिक्र सबसे अंत में, तो आइए जानते हैं, गाड़ीवान हीरामन की तीसरी कसम क्या थी और उसने यह कसम क्यों खाई।

गाड़ीवान ‘हीरामन’ अपनी बैलगाड़ी में नौटंकीवाली ‘हीराबाई’ को लेकर फारबिसगंज के मेले में छोड़ने जा रहा है, तभी फिज़ा में गूंजते गीत को सुन हीराबाई कहती है-

यहां देखती हूँ, हर कोई गीत गाता रहता है

हीरामन कहता है- गीत नहीं गायेगा तो करेगा क्या, कहते हैं – ‘फटे कलेजा गाओ गीत, दुःख सहने का एहि रीत’

हीराबाई- तुम्हारे यहां की भाषा में गीत और भी मीठा लगता है, लगता है, बस सुनती ही रहूँ।

हीरामन- ये महुआ घटवारिन का गीत है, वो कजरी नदी का घाट था न, बस उसी का …

हीराबाई- अच्छा, तुम्हें आता है ये गीत, सुनाव न मीता …

हीरामन- इस्स…. गांव का गीत सुनने का बड़ा सौख है, आपको …

हीरामन रास्ते में गाते हुए हीराबाई को महुआ घटवारिन का किस्सा सुनाता है | Teesri Kasam movie story

“वो जो महुआ घटवारिन का घाट था न, उसी मुलुक की थी महुआ, थी तो घटवारिन, लेकिन सौ सतवंती में एक, उसका बाप दिन दिहाड़े ताड़ी पी के बेहोस पड़ा रहता था, उसकी सौतेली माँ थी साक्षात राक्षसनी, महुआ कुंवारी थी, भरी पूरी दुनिया में कोई न था उसका”

कैसे कहूँ, महुआ के रूप का बखान, हिरनी जैसी कजरारी आंखें, चांद सा चमकता चेहरा, एड़ी तक लंबे रेशमी बाल,
जब वो मुस्कुराती, तो जैसे बिजली कौंध जाती, भगवान जी ही ऐसा रूप भर सकते हैं, माटी के पुतले में

“जवान हो गई थी, महुआ !
फिर भी कहीं शादी ब्याह की बात नहीं चलाई किसी ने, सुबह साम वो अपनी मरी माँ को याद करके रोती,
रात दिन कलपता था, बेचारी का मन …
मन….समझती हैं न आप …”

“एक दिन एक थका प्यासा मुसाफिर नदी किनारे पानी पीने आया।
महुआ को देखते ही उस पर रीझ गया। नादान महुआ भी उसे दिल दे बैठी,
जंगल की आग की तरह गांव में फैल गई, उनकी प्यार की बात……सौतेली माँ भला कैसे देख सकती थी, उनका सुख…..उसने महुआ को एक सौदागर के हाथ बेच दिया। रोती छटपटाती महुआ चली गई, सौदागर के साथ…. बिछड़ गई जोड़ी……. महुआ का प्रेमी आज भी जैसे रोता है …”

हीराबाई का हीरामन से प्रेम | Love story in the movie Teesri Kasam

इस यात्रा के दौरान हीरामन, हीराबाई की इतनी देखभाल करता है, उसका निश्चल भोलापन देखकर हीराबाई परख लेती है, हीरामन सचमुच का हीरा है, इधर हीरामन भी हीराबाई को लेकर कुछ महसूस करने लगता है, वह उसे दुनिया से बचा कर रखना चाहता है। टेशन से लेकर मेले तक का 30 घंटे के सफर के दौरान ही दोनों एक-दूसरे से मूक-प्रेम करने लगते हैं।

इधर मेले पहुँच कर हीराबाई, हीरामन को नौटंकी के पास दिलवाती है और नाटक देखने के लिए रुकने के लिए कहती हैं, हीराबाई की नौटंकी देखकर, कई लोग उस गलत फब्तियाँ कसते हैं, जो हीरामन को पसंद नहीं आती हैं और वह लोगों से लड़ पड़ता है, वह हीराबाई से नौटंकी छोड़ देने की भी बात करता है, जो हीराबाई को पहले तो पसंद नहीं आती, लेकिन बाद में वह हीरामन के करीब आने लगती है, नौटंकी दिखाना हीराबाई की मजबूरी होती है, उसके जीविका का भी यही साधन होता है। इधर गाँव का जमींदार भी हीराबाई को बुरी नजर से देखता है, उसे पैसे का लालच भी देता है, लेकिन हीराबाई उसे भाव नहीं देती, जमींदार को लगता है हीराबाई, हीरामन के कारण ऐसा कर रहा है, इसीलिए वह उसे मारने की योजना बनाने लगता है, हीराबाई के साथ वाले उसे समझाते हैं, कि तुम्हारे कारण जमींदार हीरामन को मार डालेगा, इसीलिए वह मेले से जाने लगती है।

भावुक करता फिल्म का क्लाइमैक्स | Climax of Teesri Kasam movie

फिल्म का क्लाइमैक्स बहुत ही भावुक करने वाला होता है, जब हीराबाई स्टेशन में बैठकर गाड़ी का इंतजार कर रही होती है, गाड़ी के साथ ही उसको इंतजार होता है हीरामन का, तभी भागता हड़बड़ी से भाग कर आता हुआ हीरामन उसको दिखता है, वह बहुत बेकल होकर उससे पूछती है-

तुम आ गए हीरामन, चलो भेंट हो गई, ये लो अपने रुपये

बोलो मीता ! लो ना

मैं तो उम्मीद ही खो बैठी थी .., सोचा अब भेंट नहीं होगी

मैं वापस जा रही हूँ अपने देश की कंपनी में

अपनी शॉल हीरामन को ओढ़ते हुए- लो….मेरी निशानी सर्दी में काम आएगी

हँ…….तुम गुलाबगंज के मेले में मेरा तमाशा देखने आओगे ना …..

जी छोटा मत करो हीरामन……..तुमने कहा था ना !

महुआ को सौदागर ने खरीद लिया, मैं बिक चुकी हूँ, मीता !

यह कहके हीराबाई ट्रेन में बैठ जाती है, और हीरामन भावशून्य हो गाड़ी को जाते हुए देखता रहता है और लौटकर अपनी बैलगाड़ी के पास आ जाता है, गाड़ी को हाँकने के लिए, जैसे ! ही वह वह बैलों को चाबुक से पीटने वाला होता है, उसे हीराबाई की पहली बार की गई बात की याद आती है, जो उसे बैलों को मारने के लिए मना करती है, इसीके साथ वह बैलों को झिड़की देता है और कसम खाता है, वह कभी भी अपनी गाड़ी में किसी नौटंकी वाली को नहीं बैठाएगा और पार्श्व में मुकेश की आवाज गूंजने लगती है-

प्रीत बनाके तूने जीना सिखाया,
हँसना सिखाया, रोना सिखाया …
जीवन के पथ पर मीत मिलाये,
जीवन के पथ पर … मीत मिलाये …
मीत मिला के तूने सपने जगाए …
सपने जगा के तूने काहे को दे दी जुदाई,

यह थी उसकी “तीसरी कसम”….

और इसके साथ ही फिल्म दर्शकों को भावुक करते हुए खत्म हो जाती है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *