जब तक इस्लाम रहेगा, तब तक आतंकवाद: तस्लीमा नसरीन

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Taslima Nasreen: बांग्लादेश से निर्वासित लेखिका तस्लीमा नसरीन ने आतंकवाद से इस्लाम का कनेक्शन बताते हुए एक बड़ा बयान दिया। पहलगाम हमले पर चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि जब तक दुनिया में इस्लाम रहेगा, तब तक आतंकवाद भी रहेगा।

Taslima Nasreen on Pahalgam Attack: बांग्लादेश से निर्वासित प्रसिद्ध लेखिका तस्लीमा नसरीन (Taslima Nasrin) ने रविवार को एक साहित्यिक महोत्सव के सत्र में हिस्सा लिया। इस दौरान उन्होंने कई मुद्दों पर चर्चा की। इस दौरान तस्लीमा ने इस्लाम और आतंकवाद का कनेक्शन बताते हुए कहा कि जब तक दुनिया में इस्लाम रहेगा, तब तक आतंकवाद भी रहेगा। ने यह बयान हाल ही में हुए पहलगाम आतंकी हमले और 2016 में बांग्लादेश की राजधानी ढाका में हुए आतंकी हमले का हवाला देते हुए दिया।

1400 साल में विकसित नहीं हुआ इस्लाम

तस्लीमा ने कहा कि इस्लाम ऐसा धर्म है जो 1400 साल में विकसित नहीं हो पाया। जब तक इस्लाम नहीं बदलता तो इसी तरह चलता रहेगा। यह आतंकियों को जन्म देता रहेगा। इससे बचने का कोई रास्ता नहीं है।

कलमा न पढ़ने पर मुस्लिमों को उतारा मौत के घाट

2016 में ढाका की आर्टिज़न बेकरी में हुए आतंकी हमले पर बात करते हुए तस्लीमा ने कहा कि इस हमले में मुस्लिमों को सिर्फ इसलिए मौत के घाट उतारा गया था क्योंकि वो कलमा नहीं पढ़ पाए थे। 1 और 2 जुलाई 2016 में बांग्लादेशी राजधानी में हुए इस आतंकी हमले में 5 आतंकियों ने दहशत फैलाई थी। ये पांचों आतंकी मार गिराए गए थे, लेकिन 22 नागरिक और 2 पुलिसकर्मियों को आतंकियों ने मार दिया था। करीब 50 लोग इस आतंकी हमले में घायल भी हुए थे।

मुस्लिमों को मस्जिद-मदरसे पसंद

तस्लीमा ने आगे कहा कि यूरोप में कई चर्च संग्रहालयों में बदल गए, लेकिन मुस्लिमों को अभी तक मस्जिदें बनाना पसंद हैं। पहले से हज़ारों मस्जिदें होने के बावजूद मुस्लिम और मस्जिदें बनाना चा हते हैं। मुस्लिमों को मदरसे भी पसंद हैं, जहां से जिहादी जन्म लेते हैं। मदरसों में बच्चों को सिर्फ एक धर्म की किताब पढ़ाई जाती है।

कौन हैं तस्लीमा नसरीन (Taslima Nasreen Kaun hain)

Who is Taslima Nasreen: तस्लीमा नसरीन का जन्म 25 अगस्त, 1962 में बांग्लादेश (Taslima Nasreen ka janm kahan hua) के मयमन्सिंह जिले में एक मुस्लिम परिवार में हुआ था। उनके पिता एक चिकित्सक थे। तस्लीमा ने भी उनकी राह पर चलते हुए ढाका मेडिकल कॉलेज से एमबीबीएस की डिग्री हासिल की। उन्होंने कुछ समय तक बांग्लादेश में चिकित्सक के रूप में काम किया, लेकिन लेखन के प्रति उनका रुझान उन्हें साहित्य की ओर ले गया।

वे अपनी बेबाक लेखनी और धर्म, लिंग, और सामाजिक रूढ़ियों पर तीखी आलोचना के लिए जानी जाती हैं। उनकी रचनाएँ, विशेष रूप से उपन्यास लज्जा (lajja) ने उन्हें अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रसिद्धि और विवाद दोनों दिलाए। तस्लीमा नसरीन धर्मनिरपेक्षता, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, और महिलाओं के अधिकारों की प्रबल समर्थक रही हैं, जिसके कारण उन्हें अपने देश में कट्टरपंथी समूहों के विरोध और निर्वासन का सामना करना पड़ा।

विवाद और निर्वासन

तस्लीमा की लेखनी और बयानों, विशेष रूप से इस्लाम और पितृसत्तात्मक समाज की आलोचना, ने उन्हें बांग्लादेश और अन्य मुस्लिम-बहुल क्षेत्रों में विवादास्पद बना दिया। साल 1994 में, लज्जा के प्रकाशन के बाद, बांग्लादेश सरकार ने उन पर धार्मिक भावनाएं भड़काने का आरोप लगाया, जिससे उन्हें देश छोड़कर स्वीडन में शरण लेनी पड़ी। इसके बाद, वे यूरोप, अमेरिका, और भारत में रहीं।

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