द्वापर युग को अपनी धुरी पर नचाने वाले प्रभु (LORD KRISHNA) भी नहीं बचा पाए अपना परिवार, एक श्राप के कारण अपने कुल को खो बैठे?
भगवान श्री कृष्ण (LORD KRISHNA) के जीवन को अगर देखा जाए तो पता चलता है कि वह केवल विष्णु अवतार लीलाधारी श्याम ही नहीं बल्कि एक युग पुरुष थे। उन्होंने द्वापर युग में काफी ऐसे कार्य किए जिनके हम आज की क्रांति से जोड़ सकते हैं। बात अगर दुविधा में फंसे अर्जुन (ARJUN) को गीता ज्ञान देना हो या फिर युद्ध की कुशल नीतियों के बारे में पांडवों को बताना हो। इन सभी में श्री कृष्ण ने खुद को एक कुशल एवं दूरदर्शी रणनीतिकार होने का प्रमाण दिया। मगर क्या आपको पता है कि सबकुछ जानते हुए भी भगवान श्री कृष्ण अपने कुल की रक्षा क्यों नहीं कर पाए? उनकी आंखों के सामने ही उनके पूरे परिवार का विनाश कैसे हो गया? आखिर कैसे यदुवंशियों के लिए घास का पौधा जानलेवा साबित हुआ? भक्तों को वरदान देने वाले श्री कृष्ण कैसे एक श्राप के कारण अपने कुल को खो बैठे? आज हम आपको इस सेगमेंट में इन सभी प्रश्नों का उत्तर देंगे तो आईए जानते हैं,,,,
श्री कृष्ण (LORD KRISHNA) को मिला श्राप
महाभारत के युद्ध के बाद महर्षि व्यास के शिष्य संजय माता गांधारी के पास पहुंचे। उन्होंने जब माता गांधारी को इस बात की जानकारी दी कि अपने साथियों और द्रौपदी के साथ पांडव हस्तिनापुर में आ चुके हैं। उस समय युद्ध भूमि में कौरवों की विधवाएं हर जगह विलाप कर रही थी। समाचार मिलते ही उनका दुखी मन गम के सागर में गोते लगाने लगा।उनका मन प्रतिशोध लेने के लिए व्याकुल हो रहा था इसके बावजूद भी वह शांत थी। लेकिन जब उन्हें यह पता चला कि पांडवों के साथ भगवान श्रीकृष्ण भी हैं तो वह क्रोधित हो गईं। और उन्होंने श्रीकृष्ण को श्राप दे दिया। गांधारी (GANDHARI) ने कहा “अगर मैंने भगवान विष्णु की सच्चे मन से पूजा की है तथा निस्वार्थ भाव से अपने पति की सेवा की है। तो जैसा मेरा कुल समाप्त हो गया। ऐसे ही तुम्हारा वंश तुम्हारे ही सामने समाप्त होगा और तुम देखते रह जाओगे।
श्राप मिलने के बाद मुस्कुराए श्याम (LORD KRISHNA)
श्रीकृष्ण ने मुस्कुराते हुए गांधारी को उठाया और कहा ‘माता’ मुझे आपसे इसी आशीर्वाद की प्रतीक्षा थी। मैं आपके श्राप को ग्रहण करता हूं। हस्तिनापुर में युधिष्ठिर (YUDHISTHIR) का राज्याभिषेक होने के बाद भगवान श्रीकृष्ण द्वारका चले गए। श्राप में गांधारी ने जो कहा था वह सच होने लगा। द्वारका में मदिरा का सेवन करना प्रतिबंधित था। लेकिन महाभारत युद्ध के 36 साल बाद द्वारका के लोग इसका सेवन करने लगे। लोग संघर्षपूर्ण जीवन जीने की बजाए धीरे-धीरे विलासितापूर्ण जीवन का आनंद लेने लगे।
भगवान श्याम (LORD KRISHNA) का वंश हुआ नष्ट
गांधारी और ऋषियों के श्राप का प्रभाव यादवों पर पड़ने लगा। यादवकुल के लोग भोग-विलास के आगे अपने अच्छे आचरण, नैतिकता, अनुशासन तथा विनम्रता को त्याग दिया। एक बार यादव उत्सव के लिए समुद्र के किनारे इकट्ठे हुए। वह मदिरा पीकर झूम रहे थे। झगड़ा इतना बड़ा कि वे वहां उगी घास को उखाड़ कर उसी से एक दूसरे को करने लगे। इस एराक घास से यदुवंशियों का नाश हो गया। हाथ में आते ही वह घास एक विशाल मूसल का रूप धारण कर लेती। साम्ब को मिले श्राप की वजह से उगी हुई घासों में जहरीले लोहे के तत्व थे। इसलिए उगी हुई घासें जहरीली थी। देखते-देखते श्री कृष्ण के सामने उनके सभी पुत्रों की दर्दनाक मृत्यु हो गई।
घासों के जहरीले होने का मुख्य कारण
घासों के जहरीले होने के पीछे भी एक खास वजह थी। पूरे यादवकुल के विनाश के पीछे किसी और नहीं बल्कि श्रीकृष्ण के पुत्र सांब ही कारण थे। जिनको मिले श्राप के कारण न केवल वंश का विनाश करवाया बल्कि इतिहास में यादवकुल (YADAV FAMILY) की छवि को भी धूमिल किया। भगवान श्रीकृष्ण की 8 पत्नियों में से जाम्बवती के पुत्र का नाम सांब था। देवर्षि नारद, दुर्वशा, विश्वामित्र जैसे कई ऋषि-मुनि भगवान श्रीकृष्ण से मिलने के लिए द्वारका नगरी पहुंचे थे। सांब ने शरारत वश एक स्त्री का वेश धारण कर लिया और उन ऋषि-मुनियों से पूछा कि उसके गर्भ में बेटा है या बेटी?
ऋषियों से मजाक पड़ा भारी
मुनियों से मजाक करने पर उन्हें क्रोध आ गया। और वह बोले “श्री कृष्ण का पुत्र सांब और अर्धकवंशी पुरुषों का नाश करने के लिए लोहे का एक विशाल मूसल उत्पन्न करेगा। केवल बलराम और श्री कृष्णा पर उसका का वश नहीं चलेगा। बलराम जी स्वयं ही अपने शरीर का परित्याग करके समुद्र में प्रवेश कर जाएंगे। और श्री कृष्णा जब भूमि पर शयन कर रहे होंगे। उस समय जरा नामक व्याग्र उन्हें अपना बांण उन्हें मारेगा।
36 साल बाद हुआ मौसूल युद्ध
इसके बाद गांधारी (GANDHARI) के श्राप के ठीक 36 साल बाद मौसूल युद्ध के दौरान यदुवंशियों का सर्वनाश हो गया। अपने परिवार को खोने के बाद श्रीकृष्ण जंगल की ओर चले गए। जहां जरा नाम के शिकारी के बाण मारे जाने से लीलाधारी श्याम ने अपनी मनुष्य देह का त्याग कर दिया।
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