‘स्वरयोगिनी’प्रभा अत्रे

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Birth Anniversary Prabha Atre :मां को संगीत सीखते देख सीखने लगीं संगीत और एक दिन बन गईं ‘स्वरयोगिनी’ ,पुणे में अबासाहेब और इंदिराबाई अत्रे के घर जन्मीं प्रभा अत्रे जब आठ साल की थीं, तब उनकी मां की तबियत ज़रा ख़राब रहने लगी थी तो किसी दोस्त की सलाह पर वो मन बहलाने के लिए संगीत सीखने लगीं और उन्हें सीखते देख ,प्रभा और उनकी बहन ऊषा भी गाने का रियाज़ करने लगीं हालांकि इससे पहले इनमें से किसी ने संगीत के बारे में कभी इतनी गंभीरता से नहीं सोचा था ।
लेकिन इसके बाद प्रभा ने तो संगीत को ऐसे आत्मसात किया कि गुरु-शिष्य परंपरा में संगीत की शिक्षा ग्रहण की,फिर किराना घराने के सुरेशबाबू माने और हीराबाई बडोडेकर से शास्त्रीय संगीत सीखा और कथक नृत्य भी सीखा पर प्रभा अपनी गायकी पर दो महान गायकों का प्रभाव मानती हैं जैसे – ख्याल के लिए अमीर खान और ठुमरी के लिए बड़े ग़ुलाम अली खान को ।


संगीत के साथ लॉ की डिग्री भी ली :-

संगीत शिक्षा के दौरान, प्रभा ने पुणे के फर्ग्यूसन कॉलेज से विज्ञान स्नातक की उपाधि प्राप्त की । बाद में उन्होंने पुणे विश्वविद्यालय के लॉ कॉलेज से एलएलबी की डिग्री पूरी की लेकिन दिल नहीं भरा तो गंधर्व महाविद्यालय मंडल (संगीत अलंकार (संगीत में स्नातकोत्तर)), ट्रिनिटी लैबन संगीत एवं नृत्य संगीतविद्यालय , लंदन (पश्चिमी संगीत सिद्धांत ग्रेड-IV) से भी अध्ययन किया यानी वेस्टर्न म्यूज़िक का भी ज्ञान प्राप्त किया और फिर बाद में संगीत में पीएचडी भी की। उनकी डॉक्टरेट थीसिस का शीर्षक “सरगम” था, जो भारतीय शास्त्रीय संगीत में सोल-फा स्वरों (सरगम) के प्रयोग से संबंधित थी ।


कई पुस्तकें भी लिखीं :-

अपने करियर के शुरुआती दिनों में अत्रे ने कुछ समय के लिए एक गायन मंच-अभिनेत्री के रूप में काम किया। उन्होंने मराठी रंगमंच की कई क्लासिक प्रस्तुतियों में भी भूमिकाएँ निभाईं, और अपनी प्रभावशाली गायन शैली से लोगों पर गहरा प्रभाव डाला। प्रभा देश की किराना घराने की वरिष्ठ गायिकाओं में से एक थीं जिनके भारतीय शास्त्रीय संगीत के रिकॉर्ड सबसे ज़्यादा बिकने वाला रिकॉर्ड है। उन्होंने भारतीय शास्त्रीय गायन को वैश्विक स्तर पर लोकप्रिय बनाने में महत्वपूर्ण योगदान दिया। ख्याल , ठुमरी , दादरा , ग़ज़ल , गीत, नाट्यसंगीत और भजन जैसी विभिन्न संगीत शैलियों पर उनकी असाधारण पकड़ थी। वो कई विदेशी यूनिवर्सिटीज़ में विज़िटिंग प्रोफेसर भी रहीं और उनके नाम 11 किताबें एक चरण से जारी करने का रिकॉर्ड भी दर्ज है। उन्होंने संगीत के अलग अलग विषयों पर कई किताबें लिखीं ,उनकी पहली पुस्तक “स्वरामयी” थी जिसे 1989 में महाराष्ट्र राज्य सरकार पुरस्कार से सम्मानित किया गया । उनकी स्वरांगिनी स्वरंजनी और स्वरांगी की रचनाओं की पुस्तक है। कुछ और किताबें रहीं- स्वरंजनी , स्वरंगीनी और स्वरांगी, जो मराठी हिंदी और अंग्रेजी में भी प्रकाशित हुईं।

अपनी कल्पना से कई राग भी बनाए:-

उन्होंने अपूर्व कल्याण, दरबारी कौन्स, भिन्ना कौन्स, पटदीप-मल्हार, शिव काली, शिवानी, कालाहीर, तिलंग-भैरव, रवि-भैरव, कौशिक भैरव और मधुर-कौन्स जैसे नए रागों का भी आविष्कार किया।
संगीत-नाटकों और संगीतिकाओं के लिए संगीत रचना भी की ।
आकाशवाणी में सहायक निर्माता भी काम किया और सर्वोच्च ग्रेड कलाकार रहीं – शास्त्रीय गायन, सुगम गायन, अर्ध शास्त्रीय गायन और नाटक कलाकार (मराठी और हिंदी ) में ऑल इंडिया रेडियो और दूरदर्शन पर भी।

कुछ ख़ास पुरस्कारों की बात करें तो :-

प्रभा अत्रे जी को 1976 – संगीत के लिए आचार्य अत्रे पुरस्कार दिया गया ,जगतगुरु शंकराचार्य ने “गण-प्रभा” की उपाधि प्रदान की। 1990 में पद्म श्री पुरस्कार से नवाज़ा गया तो
1991 में संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार मिला ,जायंट्स इंटरनेशनल अवार्ड, राष्ट्रीय कालिदास सम्मान और उस्ताद फ़ैयाज़ अहमद खान मेमोरियल अवार्ड ( किराना घराना ) मिला।
‘कला-श्री और पद्म भूषण पुरस्कार से सम्मानित किया गया सन 2002 को।
यही नहीं ,वर्ष 2011 से तात्यासाहेब नाटू ट्रस्ट और गणवर्धन पुणे द्वारा “स्वरायोगिनी डॉ. प्रभा अत्रे राष्ट्रीय शास्त्री संगीत पुरस्कार” की स्थापना की गई । 2022 – पद्म विभूषण से नवाज़ा गया।

अपनी इच्छा के अनुरूप करती रहीं काम :-

ख्याल, दादरा, ठुमरी और ग़ज़ल में भी बेहतरीन प्रदर्शन करने वाली प्रभा अत्रे ने विदेशों में भी भारतीय शास्त्रीय संगीत के प्रसार के लिए कई क़दम उठाए इसके व्याख्यान के लिए कई अंग्रेजी किताबें लिखीं सीडी भी बनवाई। गुरु शिष्य परम्परा को जीवित रखने के ‘स्वरमई गुरुकुल’ की स्थापना की। वो गायिका होने के साथ साथ शिक्षक, लेखिका, संगीतकार ,संगीत विचारक, चिंतक और शोधकर्ता भी रहीं , वो कहती थीं -“मैं अपनी अंतिम साँस तक गाना चाहती हूँ ,इसके हर पहलू को समझना और समझाना चाहती हूँ ,संगीत प्रेमियों को । सारा जीवन संगीत को समर्पित करते हुए किराना घराने की दिग्गज गायिका प्रभा अत्रे 92 साल की उम्र में दिल का दौरा पड़ने से 13 जनवरी, 2024 को अनंत सुर लहरियों में विलीन हो गईं ,संगीत प्रेमियों का पथ प्रशस्त करके वो इस दुनिया से अलविदा कह गईं।

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