बीजेपी के सीनियर लीडर और बिहार के पूर्व डिप्टी सीएम सुशील कुमार मोदी की 13 मई को 72 साल की उम्र में मौत हो गयी.सुशील कुमार मोदी लगभग पिछले 7 महीनों से गले के कैंसर से जूझ रहे थे और एम्स दिल्ली में इनका इलाज चल रहा था.1 महीने पहले लोक सभा चुनाव के कैंपेन के मद्देनज़र सुशील कुमार मोदी ने अपने सोशल मीडिया प्लेटफार्म एक्स पर पोस्ट करते हुए इसके बारे में जानकारी दी थी.उन्होंने कहा था कि
मैं पिछले छः महीनों से कैंसर से संघर्ष कर रहा हूँ.अब लगा कि लोगों को बताने का समय आ गया है.लोक सभा चुनाव में कुछ नहीं कर पाउँगा।पीएम को सबकुछ बता दिया है.देश,बिहार और पार्टी का सदा आभार।सदैव समर्पित।
सुशील कुमार मोदी की मौत पर राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू, प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी और देश के अन्य दिग्गज नेताओं ने ट्वीट कर शोक व्यक्त किया है.प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने ट्वीट करते हुए कहा कि
पार्टी में अपने मूल्यवान सहयोगी और दशकों से मेरे मित्र रहे सुशील मोदी जी के असामयिक निधन से अत्यंत दुख हुआ है। बिहार में भाजपा के उत्थान और उसकी सफलताओं के पीछे उनका अमूल्य योगदान रहा है. आपातकाल का पुरजोर विरोध करते हुए उन्होंने छात्र राजनीति से अपनी एक अलग पहचान बनाई थी. वे बेहद मेहनती और मिलनसार विधायक के रूप में जाने जाते थे. राजनीति से जुड़े विषयों को लेकर उनकी समझ बहुत गहरी थी. उन्होंने एक प्रशासक के तौर पर भी काफी सराहनीय कार्य किए. जीएसटी पारित होने में उनकी सक्रिय भूमिका सदैव स्मरणीय रहेगी. शोक की इस घड़ी में मेरी संवेदनाएं उनके परिवार और समर्थकों के साथ हैं. ओम शांति!”
जे पी आंदोलन से राज्यसभा सांसद बनने तक
साल 1974,तारीख थी 18 मार्च।बिहार से शुरू हुआ छात्रों का एक आंदोलन केंद्रीय सत्ता तक जा पहुंचा और ऐसी क्रांति लेकर आया कि सत्ता को कुर्सी गवानी पड़ी.यहाँ बात हो रही है जे पी आंदोलन या बिहार आंदोलन की.साल 1974 का ये आंदोलन बिहार के छात्रों और युवकों द्वारा राज्य में व्याप्त भ्रष्टाचार के खिलाफ शुरू किया गया था,जो एक साल तक चला। इस दौरान देश ने आपातकाल का दंश झेला और कई लोगों को जेल में डाल दिया गया सुशील कुमार मोदी भी उनमे से एक थे जिन्हे 19 महीने की सजा सुनाई गयी थी.18 मार्च 1974 को बिहार में विधान मंडल के सत्र की शुरुआत होने वाली थी. राज्यपाल थे आर डी भंडारे।इधर छात्र आंदोलनकारियों ने योजना बनाई कि राज्यपाल को विधान मंडल भवन पहुंचने से पहले रास्ते में ही रोक दिया जाये लेकिन बात लीक हो गयी और सत्ताधारी विधायक सुबह 6 बजे ही विधान मंडल भवन में पहुँच गए.विपक्ष के विधायक विरोध में थे इसलिए उन्होंने बैठक का बहिष्कार किया था.वहीँ छात्रों ने राज्यपाल की गाड़ी को रास्ते में ही रोक दिया।छात्रों पर लाठीचार्ज हुआ.कहते हैं कि इसमें कई छात्र मारे भी गए थे.इन आंदोलनकारी छात्रों में उस वक्त पटना विश्वविद्यालय छात्रसंघ के अध्यक्ष लालू यादव भी शामिल थे.बाद में कुछ अराजक तत्त्व आंदोलन में घुस गए और लूटपाट और आगजनी की घटनाओं को अंजाम दिया।हिंसा हुई,और आखिर में दौर के समाजवादी और गाँधीवादी विचारक जयप्रकाश नारायण से आंदोलन की बागडोर सँभालने का आग्रह किया गया.उन्होंने इस शर्त पर आग्रह को स्वीकार किया कि कोई भी आन्दोलनकर्ता किसी भी राजनीतिक पार्टी से जुड़ा नहीं होना चाहिए।मांगें मानी गयीं,आंदोलन आगे बढ़ा और उस वक्त बिहार के मुख्यमंत्री अब्दुल गफूर से इस्तीफे की मांग की गयी.धीरे धीरे आगे बढ़ते इस आंदोलन ने इंदिरा गाँधी की सरकार और उसके तानाशाही रवैये पर सवाल उठाना शुरू कर दिया।जयप्रकाश नारायण ने सीधा इंदिरा गाँधी को पत्र लिखते हुए देश में चल रही समस्याओं पर उनसे सवाल किया। उस वक्त देश के कई सांसदों को भी उन्होंने पत्र लिखे थे.और देश में लोकपाल और लोकायुक्त के स्थापना की भी मांग की थी.ऐसा पहली बार था जब किसी ने सीधे तौर पर इंदिरा गाँधी की नीतियों पर सवाल खड़ा किया था.इस आंदोलन का आखिर में नतीजा ये निकला कि धीरे धीरे विरोध चरम पर पहुँच गया और इंदिरा गाँधी को सत्ता से हांथ गवाना पड़ा.इन सब बड़े बदलावों से इतर जे पी आंदोलन ने तीन ऐसे चेहरों को जन्म दिया जो बाद में बिहार और देश भर की मेनस्ट्रीम पॉलिटिक्स का अभिन्न हिस्सा बन गए। पहले थे लालू यादव,दुसरे नितीश कुमार और तीसरे थे सुशील कुमार मोदी।
सुशील कुमार मोदी साल 1971 में छात्र राजनीती में आये थे.इस वक्त इन्हे पटना विश्वविद्यालय छात्रसंघ की पांच सदस्यीय कैबिनेट का सदस्य बनाया गया और 1973 में ये इसके महामंत्री बनाए गए.
साल 1977 से 1986 तक ये ABVP में महत्वपूर्ण पदों पर रहे
साल 1990 में पहली बार पटना से विधायक चुने गए
फिर साल 1995 और 2000 में भी ये इसी सीट से बतौर विधायक चुन कर आये
साल 2004 में ये भागलपुर लोकसभा क्षेत्र से चुनाव जीतते हुए सांसद चुने गए.
साल 2005 में इन्होने संसद सदस्यता से इस्तीफ़ा दिया और विधान परिषद के लिए निर्वाचित होकर उपमुख्यमंत्री बने.
जिसके बाद 2005 से 2020 तक ये बिहार से उप मुख्यम्नत्री और वित्त मंत्री रहे और
2020 में राज्यसभा सांसद चुने गए ,इस साल फरवरी में उनका राज्यसभा का कार्यकाल खत्म हुआ था.
इस सब के इतर सुशील कुमार मोदी भारतीय जनता पार्टी में बतौर प्रदेश अध्यक्ष,राष्ट्रीय सचिव और राष्ट्रीय उपाध्यक्ष रह चुके हैं.इनकी मौत को राजनीति के एक युग के खत्म होने के तौर पर देखा जा रहा है।