Supreme Court : जाति जनगणना मामले में सुप्रीम कोर्ट ने हस्तक्षेप करने से इनकार कर दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यह मामला सरकार के अधिकार क्षेत्र में आता है और यह नीतिगत मामला है। सुप्रीम कोर्ट ने सामाजिक-आर्थिक जाति जनगणना की मांग वाली याचिका पर विचार करने से इनकार कर दिया। इसके बाद याचिकाकर्ता ने याचिका वापस लेने की अनुमति मांगी।
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पी. प्रसाद नायडू ने वरिष्ठ अधिवक्ता रविशंकर जंडियाला और अधिवक्ता श्रवण कुमार करनम के माध्यम से सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर केंद्र को जाति जनगणना कराने का निर्देश देने की मांग की जा रही थी। जिसके बाद जस्टिस ऋषिकेश रॉय और एसवीएन भट्टी की पीठ ने मामले की सुनवाई पर अपना फैसला सुनाया।
कोर्ट ने कहा- इसमें क्या किया जा सकता है?
कोर्ट ने याचिकाकर्ता के अधिवक्ताओं से कहा, “इसमें क्या किया जा सकता है? यह मुद्दा शासन के अधिकार क्षेत्र में आता है। यह नीतिगत मामला है।” अधिवक्ता रविशंकर जंडियाला ने दलील दी कि कई देशों ने ऐसा किया है, लेकिन भारत ने अभी तक ऐसा नहीं किया है। उन्होंने कहा, “1992 के इंद्रा साहनी फैसले में कहा गया है कि यह जनगणना समय-समय पर होनी चाहिए।”
हम इसमें हस्तक्षेप नहीं कर सकते। Supreme Court
सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने कहा कि वह याचिका को खारिज कर रही है, क्योंकि कोर्ट इस मामले में दखल नहीं दे सकता। कोर्ट के मूड को भांपते हुए वकील ने याचिका वापस लेने की इजाजत मांगी, जिसे बेंच ने स्वीकार कर लिया। नायडू ने अपनी याचिका में कहा था कि केंद्र और उसकी एजेंसियां 2021 की जनगणना को बार-बार टाल रही हैं।
याचिका में बताया गया है कि जाति जनगणना क्यों जरूरी है।
याचिका में कहा गया है कि सामाजिक-आर्थिक जाति जनगणना से वंचित समूहों की पहचान करने, समान संसाधन वितरण सुनिश्चित करने और लक्षित नीतियों के कार्यान्वयन की निगरानी करने में मदद मिलेगी। 1931 का अंतिम जातिवार डेटा पुराना हो चुका है।