Aligarh Muslim University के अल्पसंख्यक दर्जे को लेकर आया Supreme Court का बड़ा फैसला, दर्जा बरकरार

Aligarh Muslim University Article 30 Hindi News | Aligarh Muslim University (AMU) के अल्पसंख्यक दर्जे पर आज Supreme Court ने अपना फैसला सुना दिया है। 7 जजों की बेंच ने 4:3 से अपना फैसला सुनाया है। Supreme Court की बेंच ने अलीगढ़ Muslim University के अल्पसंख्यक दर्जे को बरकरार रखा है, लेकिन इसके लिए मापदंड तय किए हैं। इसके बाद इसे 3 जजों की नियमित बेंच के पास भेज दिया गया है। इससे पहले सीजेआई चंद्रचूड़ ( CJI DY Chandrachud) की अध्यक्षता में वाली इस संविधान पीठ में सीजेआई के अलावा अन्य सात न्यायाधीश हैं।

यह मामला तीन जजों की बेंच के पास पहुंचा

AMU के अल्पसंख्यक दर्जे पर बैठी 7 जजों की बेंच द्वारा 4:3 से फैसला सुनाए जाने के बाद अब इसे 3 जजों की नई बेंच के पास भेज दिया गया है। फिलहाल अलीगढ़ यूनिवर्सिट (Aligarh Muslim University) के लिए एक मानक तय किया गया है। इसका अल्पसंख्यक दर्जा बरकरार रहेगा। 7 जजों द्वारा बनाए गए नए मापदंड को ध्यान में रखते हुए तीन जजों की नई बेंच इस पर फैसला करेगी।

Aligarh Muslim University का अल्पसंख्यक दर्जा बरकरार है

सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) की 7 सदस्यीय पीठ ने यह फैसला सुनाया है कि Aligarh Muslim University (AMU) भारत के संविधान (Indian Constitution) के अनुच्छेद 30 के तहत अल्पसंख्यक का दर्जा पाने का हकदार है। सीजेआई (CJI) ने कहा कि अजीज बाशा के मामले में लिया गया फैसला रद्द किया जाता है और अब (Aligarh Muslim University) (AMU) का अल्पसंख्यक दर्जा मौजूदा मामले में तय मानदंडों के आधार पर तय किया जाना चाहिए। इस मुद्दे पर फैसला लेने और मामले की वास्तविक स्थिति निर्धारित करने के लिए दस्तावेजों को मुख्य न्यायाधीश के समक्ष रखा जाएगा, ताकि एक पीठ गठित की जा सके जो इस विषय की समीक्षा कर सके।

न्यायालय को संस्था की उत्पत्ति पर विचार करना होगा: सीजेआई

कुछ विश्वविद्यालय ऐसे थे जो शिक्षण महाविद्यालय थे और शिक्षण महाविद्यालयों को शिक्षण विश्वविद्यालय में बदलने की प्रक्रिया एक शैक्षणिक संस्थान बनाने की प्रक्रिया है और इसलिए इसे इतने संकीर्ण रूप से नहीं देखा जा सकता है। यह नहीं कहा जा सकता है कि सिर्फ इसलिए कि अधिनियम की प्रस्तावना ऐसा कहती है, इसलिए कानून द्वारा एक संस्था बनाई गई है।

मौलिक अधिकारों को वैधानिक भाषा के अधीन नहीं किया जा सकता है और औपचारिकता को वास्तविकता का रास्ता देना चाहिए। न्यायालय को संस्था की उत्पत्ति पर विचार करना होगा और न्यायालय को यह देखना होगा कि संस्था की स्थापना के पीछे कौन था, जमीन के लिए पैसा किसने प्राप्त किया और क्या अल्पसंख्यक समुदाय ने मदद की?

सीजेआई ने अनुच्छेद 30ए का हवाला देते हुए सवाल पूछा

सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ (DY Chandrachud) ने पूछा कि अनुच्छेद 30ए के तहत किसी संस्था को अल्पसंख्यक मानने के क्या मापदंड हैं? सीजेआई ने कहा कि सॉलिसिटर जनरल ने कहा है कि संघ इस प्रारंभिक आपत्ति पर जोर नहीं दे रहा है कि सात जजों का संदर्भ नहीं दिया जा सकता। इस बात कोई संदेश नहीं है कि आर्टिकल 30 में अल्पसंख्यकों से भेदभाव करने का अधिकार नहीं है। लेकिन ऐसे में एक प्रश्न खड़ा होता है क्या अल्पसंख्यकों को कोई अन्य विशेषाधिकार प्राप्त है?

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