सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) में आज वक्फ संशोधन अधिनियम 2025 (WAQF Amendment Act) की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई शुरू हुई। मुख्य न्यायाधीश (CJI) संजीव खन्ना, जस्टिस संजय कुमार और जस्टिस केवी विश्वनाथन की तीन सदस्यीय पीठ ने इस मामले को सुना। सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ताओं की ओर से वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल (Kapil Sibal), केंद्र सरकार की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता (Tushar Mehta) और CJI खन्ना (CJI Sanjiv Khanna) के बीच कई अहम सवाल-जवाब हुए, जिसने इस मामले को और गंभीर बना दिया।
सुनवाई की शुरुआत में CJI खन्ना ने दो सवाल उठाए:
पहला, क्या इस मामले को सुप्रीम कोर्ट में सुना जाना चाहिए या हाई कोर्ट को भेजा जाना चाहिए?
दूसरा, याचिकाकर्ता इस मामले में क्या मुख्य तर्क देना चाहते हैं?
उन्होंने कहा, “हम तीन विकल्प देख रहे हैं: या तो हम सुनवाई करें, या इसे एक हाई कोर्ट को भेजें, या हाई कोर्ट की याचिकाओं को यहां बुलाकर फैसला करें।
कपिल सिब्बल ने याचिकाकर्ताओं की ओर से तर्क देते हुए अधिनियम की धारा 3R पर सवाल उठाया, जिसमें वक्फ बोर्ड में गैर-मुस्लिमों को शामिल करने का प्रावधान है। सिब्बल ने कहा, “राज्य कौन होता है जो हमें बताए कि मेरे धर्म में विरासत कैसे होगी? यह 20 करोड़ मुस्लिमों की आस्था पर हमला है।” उन्होंने धारा 3R का हवाला देते हुए कहा, “वक्फ बनाने के लिए मुझे यह साबित करना होगा कि मैं पिछले 5 साल से इस्लाम का पालन कर रहा हूं। राज्य कैसे तय करेगा कि मैं मुस्लिम हूं या नहीं?” सिब्बल ने इसे संविधान के अनुच्छेद 26 का उल्लंघन बताया, जो धार्मिक समुदायों को अपने मामलों के प्रबंधन की स्वतंत्रता देता है।
इसके जवाब में CJI खन्ना ने कहा, “हिंदुओं के मामले में भी ऐसा होता है। अनुच्छेद 26 सभी पर लागू होता है और यह धर्मनिरपेक्ष है। संसद मुस्लिमों के लिए कानून बना सकती है।” उन्होंने सिब्बल के तर्क को संतुलित करते हुए कहा, “हिंदुओं के लिए भी राज्य ने कानून बनाए हैं, जैसे धार्मिक ट्रस्ट में हस्तक्षेप। अनुच्छेद 26 इस तरह के कानून को रोकता नहीं है।”
सिब्बल ने एक अन्य तर्क में कहा कि यह कानून वक्फ संपत्तियों पर अतिक्रमण को वैध कर देगा, क्योंकि अब प्रतिकूल कब्जे (adverse possession) का दावा किया जा सकता है। उन्होंने कहा, “अगर मेरी संपत्ति पर मैं अनाथालय बनाना चाहता हूं, तो मुझे इसे रजिस्टर क्यों करना पड़ेगा?”
इस पर CJI खन्ना ने जवाब दिया, “वक्फ रजिस्टर कराने से आपकी मदद होगी। यह आपकी संपत्ति को संरक्षित करेगा।”
केंद्र की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने अधिनियम का बचाव किया। उन्होंने कहा, “वक्फ परिषद हमेशा से केंद्र के अधीन रही है और यह केवल एक सलाहकार निकाय है।” उन्होंने यह भी बताया कि इस कानून को बनाने से पहले संयुक्त संसदीय समिति (JPC) ने 38 बैठकें कीं और 98.2 लाख सुझावों की जांच की।
हालांकि, CJI खन्ना ने मेहता से सवाल किया, “क्या 2025 का अधिनियम पहले से स्थापित वक्फ-बाय-यूजर को खत्म करता है? 14वीं-15वीं शताब्दी की मस्जिदों से रजिस्टर्ड सेल डीड की मांग करना असंभव है।” उन्होंने उदाहरण देते हुए कहा, “जामा मस्जिद जैसी संपत्तियां वक्फ-बाय-यूजर हैं। अगर इन्हें डिनोटिफाई किया गया, तो गंभीर समस्या होगी।”
मेहता ने जवाब दिया, “अगर संपत्ति पहले से रजिस्टर्ड है, तो वह वक्फ बनी रहेगी। लेकिन अगर कोई विवाद है, तो उसे छोड़कर बाकी संपत्तियां वक्फ रहेंगी।” CJI ने इस पर असंतोष जताते हुए कहा, “यह ‘विवाद में’ का क्या मतलब है? यह कानून में स्पष्ट नहीं है। क्या यह अदालत के सामने होना चाहिए या सिर्फ विवादित होना काफी है?”
मेहता ने यह भी कहा, “कई मुस्लिम वक्फ बोर्ड के तहत नहीं आना चाहते। वे निजी चैरिटी करना चाहते हैं।” इस पर CJI ने तंज कसते हुए पूछा, “तो क्या अब आप हिंदू धार्मिक ट्रस्ट में मुस्लिमों को शामिल होने की अनुमति देंगे? इसे खुलकर कहें!”
सुनवाई के अंत में CJI खन्ना ने पश्चिम बंगाल में इस अधिनियम के खिलाफ हुई हिंसा पर चिंता जताई। उन्होंने कहा, “एक बात बहुत परेशान करने वाली है कि हिंसा हो रही है। जब यह मामला कोर्ट में लंबित है, तो ऐसा नहीं होना चाहिए।” सुनवाई कल भी जारी रहेगी।