लंबे समय से चल रहे निजी संपत्ति के विवाद पर सुप्रीम कोर्ट ने अपनी चुप्पी तोड़ दी है। सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले से साफ़ कर दिया है अब हर निजी संपत्ति पर सरकार का अधिकार नहीं होगा। सुप्रीम कोर्ट के इस बड़े फैसले से सरकार को जहा बड़ा झटका लगा है वही आम जनता को थोड़ी राहत मिली है।
सुप्रीम कोर्ट में लंबे समय से चल रहे निजी संपत्ति विवाद पर अपना बड़ा फैसला 5 नवंबर 2024 यानी आज के दिन सुना दिया है। इस फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने सरकार का विरोध करते हुए लोगो के पक्ष में फैसला सुनाया है। सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले से सरकार को बड़ा झटका मिला है। इस फैसले से ठीक पहले आज मदरसा एक्ट पर भी सुप्रीम कोर्ट ने सरकार का पूर्ण विरोद करते हुए फैसला सुनाया है। आज मंगलवार का दिन सरकार के लिए मंगलमयी साबित नहीं हुआ।
सुप्रीम कोर्ट ने भारी बहुमत से ये फैसला सुनाया की निजी सम्पत्तियाँ “समुदाय के भौतिक संसाधनों ” का हिस्सा नहीं बन सकती, जिन्हें राज्य को संविधान के अनुच्छेद 39 (b) के तहत सामान रूप से पुनावर्तित करने की जिम्मेदारी है। आगे कोर्ट ने एलान किया की कुछ निजी संपत्ति अनुच्छेद 39 (b) के तहत आ सकती सकती हैं ,बशर्ते वो पूर्ण तरीके से भौतिक हों और समुदाय की हों।
9 न्यायधीशों की पीठ ने सुनाया फैसला :
इस बड़े निर्णय को सुप्रीम कोर्ट की 9 न्यायधीशों की पीठ ने मिलकर लिया जिसमे मुख्य न्यायधीश जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ,न्याय मूर्ति हषिकेश रॉय ,बी .वी नागरत्ना ,सुधांशु धुलिया ,जे .बी पारदीवाला ,मनोज मिश्रा ,राजेश बिंदल ,सतीश चंद्र शर्मा और अगॉस्तिन जॉर्ज मसिह शामिल थे। अधिकांश राय मुख्य न्यायाधीश द्वारा लिखी गई ,जबकि न्यायमूर्ति बीवी नागरत्ना ने आंशिक सहमति जताई और न्यायमूर्ति धुलिया ने असहमति व्यक्त की।
बहुमत ने न्यायमूर्ति कृष्णा अय्यर के उस दृष्टिकोण से असहमतता व्यक्त की ,जिसमे उन्होंने “राज्य बेनाम रंगनाथ रेड्डी”(1978) में कहा था की निजी सम्पत्तियाँ सामुदायिक संसाधनों के रूप में मानी जा सकती हैं। इसके साथ ही , “संजय कोक मैनुफैक्टरिंग कंपनी बनाम भारत कोकिंग कोल लिमिटेड (1983 )के निर्णय को भी गलत ठहराया गया ,जो न्यायमूर्ति अय्यर के दृष्टोकोण का समर्थन करता था।
मुख्या न्यायाधीश चंद्रचूड़ द्वारा लिखित निबहुमत निर्णय में कहा गया है ,”प्रत्यक्ष प्रश्न यह है की क्या अनुच्छेद 39 (b)में प्रयुक्त सामुदायिक भौतिक संसाधन का अर्थ निजी स्वामित्व वाले संसाधनों को भी शामिल करता है। सिद्धांत रूप में, उत्तर हाँ है ,लेकिन यह न्यायालय न्यायमूर्ति कृष्णा अय्यर द्वारा अपनाये गए विस्तृत दृष्टिकोण से सहमत नहीं हो सकता। हर संसाधन जो किसी व्यक्ति के स्वमित्वा में है ,उसे केवल इसलिए “सामुदायिक भौतिक संसाधन “नहीं माना जा सकता क्योंकि वह “भौतिक आवश्यकता की श्रेणी में नहीं आता है। “
इस निर्णय में यह भी कहा गया कि “सामुदायिक भौतिक संसाधन के संकेंद्रण के परिणामों के आधार पर की जानी चाहिए। सार्वजनिक विश्वास सिद्धांत का भी यहाँ उपयोग किया जा सकता है। इसके अलावा “वितरण ” शब्द का व्यापक अर्थ हैं और राज्य द्वारा अपनाए जाने वाले बिभिन्न वितरण रूपों से संबंधित संसाधन को राज्य में सौंपना या राष्ट्रीयकरण शामिल हो सकता है।
इस प्रकार ,बहुमत ने सपष्ट किया कि निजी संपत्ति को सामुदायिक संसाधनों के रूप में मान्यता नहीं दी जा सकती है ,जब तक की उनके विशेष गुण और सामुदायिक कल्याण पर उनका प्रभाव स्पष्ट न हो।