कपल की शादी 9 फरवरी 2005 को हुई थी. 1 दिसंबर 2005 को उनके घर बेटी का जन्म हुआ. पति नौकरी के लिए सऊदी अरब चला गया. जून 2007 में महिला बेटी को लेकर रत्नागिरी के चिपलूण में अपने माता-पिता के घर रहने आ गई. इसके बाद अप्रैल 2008 में पति ने महिला को रजिस्टर्ड डाक से तलाक दे दिया और फिर अक्टूबर 2008 में ही महिला ने दूसरी शादी कर ली थी. ऐसे में शख्स ने गुजारा-भत्ता के आदेश को बॉम्बे हाईकोर्ट में चुनौती दी थी.
Alimony will be Given Even After Second Marriage: बॉम्बे हाईकोर्ट ने तलाकशुदा मुस्लिम महिलाओं के हक में बड़ा फैसला सुनाया है. कोर्ट ने तलाक के बाद गुजारा-भत्ते से जुड़े एक मामले में फैसला सुनाते हुए कहा कि कोई भी तलाकशुदा मुस्लिम महिला अपने पूर्व पति से बिना किसी शर्त के भरण-पोषण पाने की हकदार है. भले ही उसने दूसरी शादी ही क्यों न कर ली हो.
2 जनवरी को बॉम्बे हाईकोर्ट के न्यायाधीश राजेश पाटिल द्वारा सुनाए गए इस फैसले में कहा गया कि ‘मुस्लिम महिला (तलाक पर अधिकारों का संरक्षण) अधिनियम-1986 (MWPA) का सार यह है कि एक तलाकशुदा महिला अपने भरण-पोषण के लिए पूर्व पति से गुजारा-भत्ता लेने की हकदार है. इसमें यह मायने नहीं रखता कि उसने दूसरी शादी कर ली है.
हाईकोर्ट ने ख़ारिज कर दी पति की याचिका
जस्टिस पाटिल ने इसके साथ ही व्यक्ति द्वारा अपनी पूर्व पत्नी को एकमुश्त गुजारा-भत्ता देने के पिछले दो आदेशों को दी गई चुनौती को ख़ारिज कर दिया। कोर्ट ने साफ़ किया कि धारा 3 (A) के तहत पति और पत्नी के बीच हुआ तलाक अपने आप पत्नी के लिए भरण-पोषण का दावा करने के लिए पर्याप्त है. ऐसा अधिकार तलाक के दिन ही साफ़ हो जाता है.
इस जोड़े की शादी 9 फरवरी 2005 को हुई थी और 1 दिसंबर 2005 को उनके घर एक बेटी का जन्म हुआ. इसके बाद पति काम के लिए सऊदी अरब चला गया. जून 2007 में महिला अपनी बेटी को लेकर रत्नागिरी के चिपलूण में अपने माता-पिता के घर रहने आ गई थी. इसके बाद पति ने अप्रैल 2008 में रजिस्टर्ड डाक के माध्यम से पत्नी को तलाक दे दिया था.
महिला ने भरण-पोषण के लिए आवेदन किया
पति द्वारा तलाक देने के बाद महिला ने MWPA के तहत अपने और अपनी बेटी के भरण-पोषण के लिए आवेदन किया। अगस्त 2014 में महिला की याचिका पर सुनवाई करते हुए चिपलूण कोर्ट ने उसे 4.3 लाख रूपए का गुजारा भत्ता देने का आदेश दिया। फिर मई 2017 में खड़े सेशन कोर्ट ने इसे बढ़ाकर 9 लाख रूपए कर दिया।
इसके बाद पति ने कोर्ट के इस आदेश को बॉम्बे हाईकोर्ट में चुनौती दी, जहां जस्टिस राजेश पाटिल को बताया गया कि उसने अप्रैल 2008 में पत्नी को तलाक दे दिया था और अक्टूबर 2008 में महिला ने दूसरी शादी कर ली. पति ने कोर्ट से कहा कि पत्नी पुनर्विवाह तक ही इस राशि की हकदार थी.
जस्टिस पाटिल ने कहा कि MWPA में लिखित सुरक्षा ‘बिना शर्त’ है और अधिनियम का कहीं भी पुनर्विवाह के आधार पर पूर्व पत्नी को मिलने वाली सुरक्षा को सीमित करने का इरादा नहीं है. इसके साथ ही उन्होंने कहा कि यह अधिनियम मुस्लिम महिलाओं की गरीबी को रोकने और तलाक के बाद भी सामान्य जीवन जीने के उनके अधिकार को सुनिश्चित करने का प्रयास करता है. इसलिए अधिनियम का क़ानूनी इरादा स्पष्ट है. यह सभी तलाकशुदा मुस्लिम महिलाओं की रक्षा करना और उनके अधिकारों की रक्षा करना है.