सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाईकोर्ट को लगाई फटकार, जानें पूरा मामला

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Supreme Court: सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाईकोर्ट को कड़ी फटकार लगाई है. कोर्ट ने धोखाधड़ी के एक आरोपी को जमानत दी, जिसकी याचिका 27 बार स्थगित की गई थी. CJI बीआर गवई ने कहा कि व्यक्तिगत स्वतंत्रता के मामले में इतनी देरी अस्वीकार्य है.

सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाईकोर्ट की कार्यशैली पर सवाल उठाते हुए कड़ी फटकार लगाई हैं. यह मामला है धोखाधड़ी के आरोपी लक्ष्य तंवर की जमानत याचिका का, जिसे इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 27 बार स्थगित किया. सुप्रीम कोर्ट ने इस रवैये को न केवल अनुचित ठहराया, बल्कि सख्त लहजे में टिप्पणी करते हुए आरोपी को जमानत दे दी. सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट में चल रही सुनवाई को भी बंद कर दिया. सीजेआई बी.आर. गवई और जस्टिस ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की बेंच ने पूछा कि आखिर हाईकोर्ट ऐसा कैसे कर सकता है? जमानत जैसे व्यक्तिगत स्वतंत्रता से जुड़े मामले में 27 बार सुनवाई टालना उचित है क्या? कोर्ट ने कहा कि यह मामला सीधे व्यक्ति की आजादी से जुड़ा है. ऐसे में यह व्यवहार स्वीकार नहीं किया जा सकता.

जानें पूरा मामला

यह मामला केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो यानी सीबीआई के जिम्मे है. आरोपी लक्ष्य तंवर के खिलाफ भारतीय दंड संहिता की धारा 419, 420, 467, 468, 471 और 120बी के तहत केस दर्ज है. इसके साथ ही उस पर भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम की धाराएं 13(1)(डी) और 13(2) भी लगाई गई हैं. आरोपी का क्रिमिनल बैकग्राउंड लंबा है. हाईकोर्ट के अनुसार उसके खिलाफ पहले से 33 मामले दर्ज हैं. इसके बावजूद, जब जमानत की सुनवाई का मामला आया, तो कोर्ट ने 27 बार सुनवाई टाल दी. इससे सुप्रीम कोर्ट नाराज हो गया.

सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा?

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि आमतौर पर वह किसी भी केस में सुनवाई टालने को लेकर दखल नहीं देता. लेकिन जब मामला किसी की निजी आजादी से जुड़ा हो और कोर्ट खुद देरी करे, तो इससे पूरी न्यायिक प्रणाली पर सवाल खड़े होते हैं. कोर्ट ने कहा कि इस स्थिति से पता चलता है कि कैसे न्यायिक देरी एक व्यक्ति की स्वतंत्रता को प्रभावित कर सकती है.

इससे पहले हाईकोर्ट ने 20 मार्च को जमानत याचिका पर सुनवाई टालते हुए निचली अदालत को निर्देश दिया था कि जल्द से जल्द प्रक्रिया पूरी की जाए. हाईकोर्ट ने सीबीआई को शिकायतकर्ता संजय कुमार यादव की उपस्थिति सुनिश्चित करने को भी कहा.

हाईकोर्ट ने तभी कहा था कि तय तारीख पर शिकायतकर्ता के बयान दर्ज हों और आरोपी को उसी दिन जिरह का मौका दिया जाए. अब सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट कर दिया कि इतने लंबे समय तक मामला खींचने का मतलब है मौलिक अधिकारों का हनन. कोर्ट ने साफ कहा कि ऐसे मामलों में न्याय में देरी का कोई औचित्य नहीं है.

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