Supiya Pillar Inscription Of Skandagupta: गुप्त सम्राट स्कंदगुप्त, जिन्होंने उत्तरी भारत पर टिड्डीदल की तरह टूट पड़े, अपराजेय और रक्त-पिपासु हूणों को न केवल रोका, बल्कि उन्हें परास्त कर भारतीय सीमा से बहुत दूर खदेड़ दिया। उनकी कीर्ति को बताते कई अभिलेख और स्तंभलेख इतिहास में प्रसिद्ध हैं, लेकिन उनका रीवा जिले से प्राप्त एक कम प्रसिद्ध लेख सुपिया अभिलेख है, जो इतिहास अध्ययन में अत्यंत महत्वपूर्ण है।
कौन थे सम्राट स्कंदगुप्त
स्कंदगुप्त, गुप्त वंश के शासक सम्राट कुमारगुप्त के पुत्र थे और अपने पिता के निधन के बाद शासक बने। वह अत्यंत पराक्रमी और शक्तिशाली थे, और अपने वंश परंपरा के अंतिम महानतम सम्राट माने जाते हैं। उन्होंने अपने पूर्वजों के समान ही विक्रम और शक्रादित्य जैसी उपाधियाँ धारण की। उन्होंने अपने युवराज काल में अत्यंत कष्ट सहते हुए, पुष्यमित्रों के साथ युद्ध करते हुए उन्हें परास्त किया था।
स्कंदगुप्त ने हूणों को किया पराजित
लेकिन उन्हें कीर्ति और यश मिला अजेय हूणों को पराजित करने के कारण। यूरोप में रोमन साम्राज्य जैसे महाशक्तिशाली साम्राज्य को ध्वस्त कर डालने वाले, हूणों की एक शाखा जब भारत की ओर बढ़ी तो पूरा देश भय से काँप उठा। उधर गुप्त साम्राज्य पहले ही अंदरूनी संकटों से जूझ रहा था। लेकिन युवा स्कंदगुप्त ने परस्थितियों से हार मानने के बजाय संघर्ष को चुना। ज्यादा शक्तिशाली होने के बाद भी उन्होंने कड़े संघर्ष के बाद हूणों को करारी शिकस्त दी और उन्हें ईरान की तरफ मुड़ जाने के लिए विवश कर दिया।
स्कंदगुप्त के अभिलेख
इस विजय ने उसे सिर्फ एक राजा नहीं, बल्कि भारत का रक्षक, और इतिहास में एक महानायक बना दिया। उसकी कीर्ति देशभर में दूर-दूर तक फैली और उनके कई अभिलेख स्थापित हुए। इनमें से सर्वप्रमुख है जूनागढ़ लेख, भितरी स्तंभलेख, इंदौर ताम्रलेख और सुपिया अभिलेख।
स्कंदगुप्त का सुपिया अभिलेख
सुपिया रीवा से करीब 20 किलोमीटर दूर पूर्व दिशा ओर, गड्डी रोड के किनारे एक गाँव है। यहाँ प्राप्त स्तंभलेख एक प्रस्तर अभिलेख है, जो रीवा जिले के सुपिया नाम के गाँव से 1943-44 में प्राप्त हुआ था। जिसे छत्तरपुर जिले के धुबेला संग्रहालय में भेज दिया गया था। सबसे पहले बी. सी. छाबड़ा ने इसका उल्लेख किया था, बाद में सुप्रसिद्ध विद्वान डी. सी. सरकार ने इसे संपादित करके प्रकाशित करवाया। प्रारंभ में गाँव के लोग इसे सती लेख मानकर इसकी पूजा किया करते थे। जबकि बी. सी. छाबड़ा ने प्रारंभ में इसे षष्ठी देवी से अनुमानित किया था। दरसल षष्ठी देवी को कार्तिकेय की पत्नी माना जाता है, जिनकी पूजा बच्चों के रक्षक के तौर की जाती थी, आज भी गांवों में बच्चों के जन्म के छठवे दिन छठी उत्सव मनाकर इनकी पूजा करने का विधान है। लेकिन डीसी सरकार ने इसका संपादन करके इस मत का खंडन किया। उनके अनुसार यह बल यष्टि अर्थात भारी भरकम स्तम्भ ग्रामिक अर्थात गाँव के मुखिया द्वारा स्थापित गोत्र शैलिक है, जिसे परिवार के मृत पूर्वजों और परिजनों की याद में स्थापित किया गया था। बल-यष्टि का जिक्र विंध्य क्षेत्र के नागौद के भूमरा से प्राप्त, गुप्तों के सामंत परिब्राजक महाराजाओं के अभिलेख से भी प्राप्त होता है।
क्या लिखा है अभिलेख में
संक्षेप में अगर समझे तो इस अभिलेख में लिखा है- श्रीघटोत्कच के वंश में हुए महाराज श्रीसमुद्रगुप्त, उनके पुत्र हुए श्रीविक्रमादित्य, उनके पुत्र श्री महेन्द्रादित्य हुए। उनके पुत्र चक्रवर्ती के समान महाबल विक्रम, राम के समान धर्म-परायण और युधिष्ठिर की तरह सत्यवादी स्कंदगुप्त हुए, जिनके शासनकाल गुप्त संवत 141 अर्थात 460 ईस्वी में, ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष की द्वितीय तिथि को अवडर ग्राम के निवासी कुटुंबिक कैवर्तश्रेष्ठ के नाती, हरिश्रेष्ठ के पुत्र श्रीदत्त और उनके भाई वग्ग और छंदक ने अपनी पुण्य की प्राप्ति और यश कीर्ति के निमित्त इस गोत्र बल यष्ठि की प्रतिष्ठा की थी। 17 पंक्तियों का यह अभिलेख संस्कृत भाषा में है और इसे परवर्ती ब्राम्ही लिपि में लिखा गया था।
इतिहास अध्ययन के लिए महत्वपूर्ण
इस अभिलेख में सबसे खास है, प्रचलित धारणा के विपरीत गुप्त वंश का आदिपुरुष श्रीगुप्त की जगह घटोत्कच को बताया गया है। समुद्रगुप्त को इस अभिलेख में साधारणतः महाराज कहा गया है, जबकि उनके पुत्र और पौत्र चंद्रगुप्त द्वितीय और कुमारगुप्त को उनके राजकीय उपाधियों क्रमशः विक्रमादित्य और महेंद्रादित्य के साथ जिक्र किया गया है। वैसे तो यह अभिलेख गुप्त सम्राट स्कन्दगुप्त द्वारा प्रत्यक्ष जारी नहीं किया गया था, लेकिन उस समय देश में उन्हीं का शासन था, जैसा कि हमने पहले भी बताया था, वह अपनी प्रजा में अत्यंत लोकप्रिय थे, इसीलिए इस अभिलेख में उन्हें सम्मानपूर्वक चक्रवर्ती सम्राट की तरह बताया गया है और उनकी तुलना श्रीराम और युधिष्ठिर से की गई है।
किसने स्थापित किया था अभिलेख
सुपिया स्तंभ लेख को स्थापित करने वाले व्यक्ति को ग्रामिक कहा गया है, विद्वानों के अनुसार इसका तात्पर्य ग्राम के मुखिया से है, अभिलेख से यह भी पता चलता है संभवतः वह इस ग्राम का मूल निवासी नहीं था, बल्कि अपने नाना द्वारा गोद लिया गया होगा, क्योंकि इस अभिलेख में कैवर्तिश्रेष्ठी का दौहित्र अर्थात दुहिता मने पुत्री का पुत्र कहा गया है। इस अभिलेख के अनुसार उसके नाना श्रेष्ठी अर्थात व्यापारी था।
कहाँ है अवडर ग्राम
इस अभिलेख में वर्णित अवडर ग्राम कौन सा है, इसकी ठीक-ठाक पहचान नहीं की जा सकती है, यह अभिलेख किस स्थान पर लिखा गया था और वह वर्तमान सुपिया गाँव तक कैसे आया यह भी स्पष्ट नहीं, या यही स्थान ही अवडर है, यह भी नहीं कहा जा सकता है। क्योंकि इतिहास में ग्राम और नगर बार-बार या यूं कहें कई बार बसते और उजड़ते हैं। हमारे लिए सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण यह है, कि गुप्त सम्राट स्कंदगुप्त की दुहाई देता यह अभिलेख रीवा पठार के क्षेत्रों में प्राप्त हुआ है, इसके साथ ही महत्वपूर्ण यह भी है, गुरगी का प्राचीन नगर भी इस गाँव से बहुत दूर नहीं था, आर. डी. बनर्जी गुरगी की बसाहट वैसे भी कलचुरि युग के पूर्व मानते थे, इसीलिए बहुत संभावना है गुरगी इस क्षेत्र में तब व्यापार का प्रमुख केंद्र रही हो। हालांकि रीवा पठार में उस समय कौन शासक शासन कर रहा था, यह तो बहुत स्पष्ट नहीं है।
क्षेत्र के राजा की पहचान नहीं
लेकिन यह भू-भाग आता गुप्त साम्राज्य के अधीन ही था, इसीलिए गुप्तों का स्थानीय सामंत यहाँ शासन करता रहा होगा। शायद वह राजवंश जिनकी राजधानी उच्चकल्प अर्थात आज का ऊंचेहरा था, जिनके जयनाथ और सर्वनाथ नाम के दो राजाओं के ताम्रलेख और अभिलेख खोह और करितलाई से प्राप्त हुए हैं। या फिर परिब्राजक महाराजाओं का, जिनके अभिलेखों में उन्हें 12 आटविकों राज्यों का शासन करने वाला कहा गया है।
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