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सुमित्रानंदन पंत और उनकी कविताओं का भाव पक्ष

Sumitranandan Pant Birth Anniversary

Sumitranandan Pant Birth Anniversary

Sumitranandan Pant Birth Anniversary: जन्म के छः घंटे के अंदर ही ममता से दूर होने के बाद शिशु गोसाई दास के पास उत्तराखंड की वादियों और दादी की कहानियों के अलावा और कोई सहारा नहीं बचा. बचा तो बस स्लेटी छतों वाला पहाड़ी घर, आंगन के सामने आडू, खुबानी के पेड़, पक्षियों का कलरव, सर्पिल पगडण्डियां, बांज, बुरांश व चीड़ के पेड़ों की बयार व नीचे दूर दूर तक मखमली कालीन सी पसरी कत्यूर घाटी व उसके उपर हिमालय के उत्तंग शिखर। ऐसे में, एक कवी मन को और क्या चाहिए अपने अंदर कविता को जन्म देने केलिए। परिस्थितियां और परिवेश किसी को भी अपने अनुरूप बदल सकती हैं. यही कारण है कि आज बालक गोसाई दास को पूरी दुनिया सुमित्रानंदन पंत के नाम से जानती है.

छायावाद के चार स्तंभों में से एक एक सुमित्रानंदन पंत का जन्म 20 मई को साल 1900 में कौसानी, उत्तराखंड में हुआ. इनकी परवरिश आम बच्चों से थोड़ी अलग हुई. कारण था जन्म के तुरंत बाद ही माँ की मृत्यु हो जाना। पर माँ के दूर हो जाने के बाद भी पंत माँ से दूर नहीं हो पाए. अपने दूसरे महाकाव्य सत्यकाम में माँ को याद करते हुए इन्होने लिखा –

मुझे छोड़ अनगढ़ जग में तुम हुई अगोचर,
भाव-देह धर लौटीं माँ की ममता से भर !
वीणा ले कर में, शोभित प्रेरणा-हंस पर, 
साध चेतना-तंत्रि रसौ वै सः झंकृत कर
खोल हृदय में भावी के सौन्दर्य दिगंतर !

पंत जी के छायावाद पर साहित्यकार चन्द्रिका प्रसाद सविवेदी का क्या कहना है सुनने के लिए यहाँ क्लिक करें-

पंत को छायावादी कहना उनकी कविताओं के साथ अन्याय करना है

सुमित्रानंदन पंत की रचनाओं ने उन्हें आधुनिक हिंदी साहित्य के युग प्रवर्तक के तौर पर ला कर खड़ा कर दिया। इनकी कविताएँ लगातार समय के साथ हिंदी भाषा को समृद्ध बनती रहीं। पर इनकी रचनाओं को बस छायावाद के नाम के साथ जोड़ देना अन्याय होगा। क्योकि इनकी कविताएं जितनी प्रकृति की हैं उतनी ही मानवीय सौंदर्य और आध्यात्मिक चेतना की भी. इसका सटीक उदहारण इनकी कविता चौथी भूख है, जिसमे यह लिखते हैं-

भूखे भजन न होई गुपाला,
यह कबीर के पद की टेक,

देह की है भूख एक!—

कामिनी की चाह, मन्मथ दाह,
तन को हैं तपाते
औ’ लुभाते विषय भोग अनेक
चाहते ऐश्वर्य सुख जन
चाहते स्त्री पुत्र औ’ धन,
चाहते चिर प्रणय का अभिषेक!
देह की है भूख एक!

दूसरी रे भूख मन की!

चाहता मन आत्म गौरव
चाहता मन कीर्ति सौरभ
ज्ञान मंथन नीति दर्शन,
मान पद अधिकार पूजन!
मन कला विज्ञान द्वारा
खोलता नित ग्रंथियाँ जीवन मरण की!
दूसरी यह भूख मन की!

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पंत जी के भाव पक्ष पर साहित्यकार चन्द्रिका प्रसाद सविवेदी का क्या कहना है सुनने के लिए यहाँ क्लिक करें-

सुमित्रानंदन पंत और उनका भाव पक्ष

Sumitranandan Pant Ki Kavita: कहा जाता है कि पंत जी के भावपक्ष का प्रमुख तत्त्व उनका मनोहारी प्रकृति चित्रण है. जिसमे कौसानी की प्राकृतिक छटा और उनके बाल कल्पनाओं का छायाचित्र झलकता है. पर ये कहना बिलकुल भी गलत नहीं होगा कि इनकी कविताओं के भाव पक्ष का प्रमुख तत्त्व इनके अंतर की वो आत्मीयता थी, जिसने इनको जीवन के अंत तक अपनी माँ के साथ जोड़े रखा और जिसका प्रतिफल पूरी दुनिया को सत्यकाम महाकाव्य के रूप में मिला। आज भले ही सुमित्रानंदन पंत की आवाज धूमिल हो चुकी है(Sumitranandan Pant Birth Anniversary) पर इनकी कविता “मैं सबसे छोटी होऊं” जब-जब पढ़ी जाएगी इनकी वेदना और माँ के प्रति अप्रतिम भाव हमेशा उजागर होती रहेगी।

मैं सबसे छोटी होऊँ,
तेरा अंचल पकड़-पकड़कर
फिरूँ सदा माँ! तेरे साथ,
कभी न छोड़ूँ तेरा हाथ!

बड़ा बनाकर पहले हमको
तू पीछे छलती है मात!
हाथ पकड़ फिर सदा हमारे
साथ नहीं फिरती दिन-रात!

अपने कर से खिला, धुला मुख,
धूल पोंछ, सज्जित कर गात,
थमा खिलौने, नहीं सुनाती
हमें सुखद परियों की बात!

ऐसी बड़ी न होऊँ मैं
तेरा स्नेह न खोऊँ मैं,
तेरे अंचल की छाया में
छिपी रहूँ निस्पृह, निर्भय,
कहूँ—दिखा दे चंद्रोदय!

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