न्याजिया बेगम / आजकल तेरे मेरे प्यार के चर्चे हर जुबान पर, ये गीत प्यार के चर्चों के लिए जितना मशहूर हुआ उतना ही लता मंगेशकर से मिलती जुलती आवाज़ पर चर्चाएं हुई, इसके अलावा भी मो रफ़ी के साथ “ना-ना करते प्यार”, “तुम रूठो ना हसीना”, “रहे ना रहे हम”, “परबतों के पेड़ों पर शाम का बसेरा”, “ये पर्वर्तों के दयारे”, “अजहु ना आए बलमा”, “तुमने पुकारा और हम चले आये”, “बाद मुददत के ये घडी आयी”, “मुझसे शादी नहीं की”, “दिल ने फिर याद किया”, “तुझको दिलदारी की कसम” और “चांद तकता है इधर” में भी आपने खूब सुर्खियां बटोरी और मन्ना डे के साथ, उन्होंने दत्ताराम के संगीत निर्देशन में लोकप्रिय गीत “ना जाने कहाँ हम थे” गाया तो मुकेश के साथ भी कई लोकप्रिय युगल गीत गाए हैं जैसे “ये किसने गीत छेड़ा”’, “अखियाँ का नूर है तू”, “मेरे प्यार में तू है”, “दिल ने फिर याद किया”और “शमा से कोई नहीं”, जी हां इन सब गीतों को आवाज़ दी है सुमन कल्याणपुर ने, जिन्होंने उस वक्त फिल्म जगत में अपनी पहचान बनाई जब लता मंगेशकर और आशा भोसले जैसी गायिकाओं का राज था, पर उनके लिए यहां तक पहुंचना आसान नहीं था।
और हम आपको ये भी बता दें कि मशहूर देशभक्ति गीत ऐ मेरे वतन के लोगों भी पहले वही गाने वाली थीं फिर जाने कैसे ये लता मंगेशकर जी के पास चला गया पर पंडित जवाहर लाल नेहरू के सामने उन्होंने ये गीत गाया था।
जी हां इन सब गीतों को आवाज़ दी है सुमन कल्याणपुर ने, जिन्होंने उस वक्त फिल्म जगत में अपनी पहचान बनाई जब लता मंगेशकर और आशा भोसले जैसी गायिकाओं का राज था ,पर उनके लिए यहां तक पहुंचना आसान नहीं था, वो कहती हैं – घर में हर किसी का कला और संगीत के प्रति झुकाव था लेकिन सार्वजनिक प्रदर्शन सख्त वर्जित था। फिर भी, मैं 1952 में ऑल इंडिया रेडियो के लिए गाने की पेशकश के लिए ‘नहीं’, नहीं कह सकती थी। ये मेरा पहला सार्वजनिक प्रदर्शन था जिसके बाद ही मुझे वर्ष 1953 में रिलीज हुई मराठी फ़िल्म शुक्राची चांदनी के लिए गाने का मौका मिला।
उस समय, शेख मुख्तार फ़िल्म “मंगू” बना रहे थे जिसके संगीतकार मोहम्मद शफी थे और शेख मुख्तार मेरे “शुक्राची चांदनी’’ गीतों से इतने प्रभावित हुए, कि उन्होंने मुझे फ़िल्म ’मंगू’ के लिए 3 गाने गाने के लिए कहा। हालाँकि, कुछ अज्ञात कारणों से, बाद में ओ.पी.नैय्यर ने मोहम्मद शफी की जगह ले ली और मेरे तीन गीतों में से केवल एक लोरी “कोई पुकारे धीरे से तुझको” को ही फ़िल्म में बरकरार रखा गया पर इस प्रकार, मैंने 1954 की रिलीज़ ‘मंगू’ के साथ हिंदी सिनेमा में प्रवेश कर लिया।
28 जनवरी 1937 को पूर्वी बंगाल बांग्लादेश के शहर ढाका में जन्मीं सुमन कल्याणपुर के पिता जी शंकर राव हेम्मडी कर्नाटक के मैंगलोर के एक सारस्वत ब्राह्मण परिवार से थे और सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया में बड़े बाबू थे, सुमन अपने 6 भाई-बहनों में सबसे बड़ी थीं।
1943 में, उनका परिवार मुंबई आ गया, संगीत के साथ उन्हें चित्रकला में भी रुचि थी इसलिए स्कूल के बाद उन्होंने चित्रकला में आगे की पढ़ाई के लिए आर्ट्स स्कूल में दाखिला लिया पर पुणे के प्रभात फ़िल्म्स संगीत निर्देशक, पंडित केशव राव भोले जो उनके पिता जी के दोस्त थे उन्हें सुमन की आवाज़ बहुत प्यारी लगी और उन्होंने सुमन के पिता जी से इजाज़त लेकर सुमन जी को शास्त्रीय गायन सिखाना शुरू कर दिया। सुमन जी कहती हैं शुरू में गाना सिर्फ उनका शौक था लेकिन धीरे-धीरे संगीत में उनकी दिलचस्पी और लगन इतनी बढ़ती गई और उन्होंने उस्ताद खान, अब्दुल रहमान खान और गुरुजी मास्टर नवरंग से भी संगीत सीखा, सुमन की छोटी बहन श्यामा हेम्मडी भी गायिका थीं। रेडियो से जुड़ने के बाद बाहर सुमन कल्याणपुर भी थोड़ा बहुत तो गाने लगी थीं, ऐसे में तलत महमूद ने सुमन जी को एक संगीत समारोह में गाते हुए सुना और उनके गायन से इतना प्रभावित हुए कि अपने साथ गाने के लिए कहा और इस तरह सुमन जी कापहला फ़िल्मी गीत,1954 की फिल्म दरवाज़ा में तलत महमूद के साथ आया , जिससे पूरे फिल्म उद्योग का ध्यान सुमन जी ने खींच लिया।
हालांकि इसी साल आई फ़िल्म “मंगू ” में उनकी गई लोरी “कोई पुकारे धीरे से तुझे” ने भी कुछ कमाल दिखा दिया था।
फिल्म दरवाज़ा में संगीतकार नौशाद के संगीत निर्देशन में आपने 5 गाने गाए, जो कि इस्मत चुगताई द्वारा निर्मित और शाहिद लतीफ द्वारा निर्देशित थी। इसी साल सुमन जी ने फ़िल्म आर पार के लिए मोहम्मद रफ़ी और गीता दत्त के साथ ओ.पी.नैय्यर के हिट कलाकारों की टुकड़ी के गीत “मोहब्बत कर लो, जी भर लो, अजी किसने रोका है” को गाया। हालांकि इस गीत में उनके पास एक ही लाइन थी गाने के लिए जो कोरस में भी अपनी मधुर छाप छोड़ती है ये इकलौता गीत भी था जिसे ओ.पी.नैय्यर के संगीत निर्देशन में सुमन जी ने गाया है। सुमन जी ने 1958 में मुंबई के एक अतिथि रामानंदपुर से विवाह किया और इस तरह सुमन हेम्माडी से सुमन कल्याणपुर बन गईं। 60 के दशक आपके कुछ गीतों से सजी फिल्में आईं मियाँ बीबी राज़ी, बात एक रात की, दिल एक मंदिर, दिल ही तो है, शगुन, जहाँआरा, साँझ और सवेरा, नूरजहाँ, साथी और 1971 की पाकीज़ा में भी उन्होंने अपनी आवाज़ दी ।
मराठी फिल्मों की बात करें तो उनका पहला सुपरहिट गीत बना “पसंत आहे मुलगी” के लिए गीत—”भतुकलिका खल मांडिला” इसके संगीतकार वसंत प्रभु थे ,उसके बाद उन्होंने 20 साल पीछे मुड़ कर नहीं देखा। “पुत्रा व्हावा आइसा”, “इकती”, “मानिनी” और “अन्नपूर्णा” उनकी कुछ यादगार मराठी फ़िल्में थीं। सुमन जी ने,1960 के दशक में मो. रफ़ी के साथ 140 से अधिक युगल गीत गाए और वो भी इसलिए कि उस वक्त लता मंगेशकर और मोहम्मद रफ़ी जी के बीच रॉयल्टी को लेकर बहस हो गई थी जिसके वजह से दोनों ने एक दूसरे के साथ गाने से इनकार कर दिया था और वो गाने सुमन जी को मिल गए, ये वो दौर था जब मंगेशकर बहनों यानी लता जी और आशा जी का महिला पार्श्व गायन में नाम बोलबाला था पर जब आप दोनों के पास रिकॉर्डिंग के लिए वक्त नहीं होता था, या निर्माताओं का बजट कम होता था और वो लता जी जैसी आवाज़ ही चाहते थे, तो सुमन कल्याणपुर जी को गाने के लिए कहा जाता था। इस तरह आपने 857 फ़िल्मी और ग़ैर-फ़िल्मी हिंदी गानों के अलावा , मराठी, असमिया, गुजराती, कन्नड़, मैथिली, भोजपुरी, राजस्थानी, बंगाली, ओडिया और पंजाबी भाषाओं में भी गाने गाए हैं।
सुमन जी के गाए शास्त्रीय रागों पर आधारित कुछ बेमिसाल गीत भी हैं जैसे- “मनमोहन मन में हो तुम”, “मेरे संग गा गुनगुना” और “गिर गइ रे मोर माथे की बिंदिया”।
सुमन कल्याणपुर की आवाज़ गायिका लता मंगेशकर से काफी मिलती-जुलती है और वो उन्हीं की तरह हर बारीक नोट पर ध्यान देते हुए गाती हैं और शास्त्रीयता का ज्ञान भी रखती हैं इसलिए कभी कभी तो इतना भ्रम हो जाता था कि रेडियो पर भी उनके गाने बजने के बाद गायिका का नाम नहीं बताया जाता था, इस समानता के बारे में उन्होंने एक बार उत्तर दिया था, “मैं लता से काफी प्रभावित थी। अपने कॉलेज के दिनों में, मैं लता के गाने ही गाती थी। मेरी आवाज़ भी नाज़ुक और पतली थी….. तो मैं क्या कर सकती थी? ऐसी सादगी है उनमें।
उनके कुछ और गानों को याद करें तो हमारे ज़हन में दस्तक देते हैं,
“साथी मेरे साथी”,”ना तुम हमें जानो”
“छोडो, छोडो मोरी बाहें”,”दिल ग़म से जल रहा”
“यूं ही दिल ने कहा”,”बुझा दिया है”
“मेरे संग गा”,”मेरे महबूब ना जा”
“दिल इक मंदिर है”,”आंसुओं की एक बून्द हूँ मैं”
“मेरा प्यार भी तू है, ये बहार भी तू है”
“तुम अगर आ सको तो”,”जिंदगी दो दिल डर के तूफ़ानों में”
“जिंदगी इम्तेहान लेती है”,”जो हम पे गुजराती है”
“शराबी शराबी ये सावन का मौसम” और रेशम की डोरी फिल्म का गीत”बहना ने भाई की कलाई में” को हम कैसे भूल सकते हैं जो हर भाई बहन के दिल के क़रीब है और जिसके लिए उन्हें 1975 में फिल्मफेयर बेस्ट फीमेल प्लेबैक अवार्ड के लिए नामांकित भी किया गया था।
इसके अलावा उन्होंने, सर्वश्रेष्ठ शास्त्रीय गीत के लिए तीन बार प्रतिष्ठित “सुर श्रृंगार सम्मान” पुरस्कार प्राप्त किया है और 2009 में उन्हें महाराष्ट्र सरकार द्वारा लता मंगेशकर पुरस्कार भी दिया गया था।
उन्हें ताउम्र लता जी की कॉपी समझा गया शायद इसी वजह से उन्हें उतना काम नहीं मिला, क्योंकि लता जी के होते हुए लता जी जैसी आवाज़ को कोई क्यों चुनता पर दुर्भाग्यवश आज स्वर सम्राज्ञी लता मंगेशकर हमारे साथ नहीं हैं और सुमन जी भी फिल्म इंडस्ट्री से दूर हो गईं हैं।