Student Protest For UPPSC Exam : UPPSC की परीक्षा में बैठने वाले छात्रों का लगातार 3 दिन से प्रदर्शन देख कर उत्तर प्रदेश लोक सेवा आयोग (Uttar Pradesh Public Service Commission) की बड़ी बैठक कराई गयी थी। आयोग का फैसला छात्रों के लगातार प्रदर्शन को देख कर उनके पक्ष में आने की पूरी उम्मीद जताई जा रही थी।
उत्तर प्रदेश लोक सेवा आयोग के द्वारा बीते 5 नवंबर को UPPSC PRE, RO/ARO की परीक्षा को लेकर एक नोटिफिकेशन जारी किया था। जिसमे लिखा था परीक्षा को 2 दिन में नॉर्मलाइजेशन के साथ कराया जाएगा। फैसले को सुनते ही छात्रों ने विरोध प्रदर्शन करना शुरू कर दिया। छात्रों का मानना है की अगर परीक्षा दो शिफ्ट में नॉर्मलाइजेशन के साथ होती है ,तो इससे दूसरे शिफ्ट में बैठने वाले परीक्षार्थियों को परीक्षा के प्रश्नों को जानने का एडवांटेज मिल जायेगा जिसके कारन पहले शिफ्ट में बैठने वाले छात्रों के साथ गलत होगा। एग्जाम में अपीयर होने वाले छात्रों की मांगे थी की परीक्षा को वन डे वन शिफ्ट में नॉर्मलाइजेशन के बगैर कराई जाए।
इस मामले को लेकर सियासी टकराव भी खूब हो रहा था। उत्तर प्रदेश सरकार पर विपक्षी दल के नेता जमकर बरस रहें थे। छात्रों के आंदोलन को आज 3 दिन हो रहें हैं लेकिन छात्र इसे रोकने का नाम नहीं ले रहें हैं। प्रदर्शन को रुकवाने के लिए उच्च स्तरीय बैठक को करवाया गया था। उत्तर प्रदेश लोक सेवा आयोग के चेयरमैन संजय श्रीनेत के नेतृत्वा में ये बैठक की जा रही थी।
आयोग ने मानी छात्रों की बात :
उत्तर प्रदेश लोक सेवा आयोग ने फैसला सुनाते हुए UPPSC की परीक्षा को “वन डे वन शिफ्ट” में कराने की मंजूरी दे दी है। यानी अब UPPSC PRE की परीक्षा पहले की तरह एक ही शिफ्ट में और एक ही दिन में नॉर्मलाइजेशन के बगैर आयोजित की जाएगी। इसके अलावा PSC और RO/ARO की परीक्षाएं स्थगित कर दी गई।
सरकारी परीक्षाओं की विश्वसनीयता :
सरकारी परीक्षाएं हमारे देश में मत्वपूर्ण परीक्षाएं होती है जो विश्वसनीयता और पारदर्शिता को दर्शाती है। भारत में पब्लिक एग्जामिनेशन युवाओं के लिए काफ़ी मायने रखता है। युवा विद्यार्थी इन परीक्षाओं को देकर सरकारी पदों के लिए अप्लाई करते है। एक लोकतांत्रिक देश में जब वहां की जनता रिपब्लिक होती है तो इसका मतलब ये है की वहां की नौकरियाँ और सरकारी पद न तो राजनैतिक पार्टयों की तरफ से दी जाती है और ना ही पदक्रम ( Hierarchy ) से मिलती है। इन परीक्षाओं में बैठने का हक़ आम नागरिकों को दिया जाता है जिसमे हर वो व्यक्ति जो किसी भी सरकारी पद के लिए एलिजिबल है उसमें वो अपीयर होता है और परीक्षा को पास करके अपनी काबिलियत से उस पद को हासिल करता है। हमारे देश में सरकारी नौकरी लाखों युवाओं के लिए सपना होता है जिसके लिए वो जी जान लगा देतें हैं।
एक छोटे से गांव का व्यक्ति जब अपने बड़े सपने लेकर शहर आता है ,सरकारी नौकरी की तैयारी करने तो वह अपने साथ -साथ अपने परिवार की भी उम्मीदें लेकर आता है। इन सपनों के साथ वो एक भरोसा भी लेके आता है भरोसा ,जो उसे अपने आप पर होता है की वो जी तोड़ मेहनत करके परीक्षा को पास करेगा और अपने आप को पद के लिए काबिल बनाएगा। लेकिन सवाल ये उठता है की सरकार के द्वारा बनाया गया सिस्टम उस भरोसे पर खरा उतरता है या नहीं ?आए दिनों उत्तर प्रदेश में एक के बाद एक पब्लिक एग्जामिनेशन का पेपर लीक हो जाता था जिसके कारन परीक्षाएं स्थगित हो जाती थीं , प्रदर्शन होते है, कोर्ट में मामले दर्ज हो जाते थे। इन सब के चलते मेहनत करने वाले विद्यार्थीयों के भरोसा और सपना दोनों टूट जाते थे। और इनसब के बीच ये खबर सामने आती है कि जब परीक्षा आयोजित होने वाली होती है तब अचानक से परीक्षा की प्रक्रिया में बदलाव किया जा रहा है, जिसका मतलब ये है की अब परीक्षा एक ही दिन एक ही शिफ्ट में न होकर दो दिन में नॉर्मलाइजेशन के साथ कराई जाएगी।
क्या है नॉर्मलाइजेशन ?
परीक्षा में “नॉर्मलाइजेशन” यानी मानवीकरण का मतलब है, जब एक से ज़्यादा शिफ्ट में परीक्षा आयोजित की जाती है, तो परीक्षा कराने वाले आयोग की ओर से नॉर्मलाइज़ेशन कराकर सभी परीक्षार्थियों के अंकों को सामान्य किया जाता है। नॉर्मलाइज़ेशन की मदद से, अलग-अलग शिफ़्ट में परीक्षा देने वाले उम्मीदवारों के अंकों को समान किया जाता है। ऐसा इसलिए किया जाता है क्योंकि हर शिफ़्ट का कठिनाई स्तर अलग-अलग होता है। उदाहरण के तौर पर अगर कोई विद्यार्थी परीक्षा के पहली शिफ्ट में बैठा है तो उसके परीक्षा का कठिनाई स्तर ज्यादा होगा मुक़ाबले उस विद्यार्थी के जो उस परीक्षा की दूसरी शिफ्ट में बैठेगा।
ऐसा इसलिए होता है क्योंकि जो परीक्षार्थी पहले शिफ्ट में बैठता है उसे परीक्षा के कठिनाईयों का कोई अंदाजा नहीं होता है। लेकिन,जो कैंडिडेट दूसरे शिफ्ट में बैठता है उसे परीक्षा में आये हुए प्रश्नों का अंदाजा लग जाता है जिससे उसको एडवांटेज मिल जाता है।जिसके तहत पहले शिफ्ट में अपीयर होने वाले परीक्षार्थी के कम नंबरों को दूसरे शिफ्ट वाले कैंडिडेट्स के ज्यादा नंबरों के साथ बैलेंस किया जाता है।स्टेटिस्टिक्स में इस प्रोसेस को नॉर्मलाइजेशन कहा जाता है। असल में नॉर्मलाइजेशन को गलत नहीं ठहराया जा सकता है लेकिन कुछ स्टूडेंट्स को इस प्रोसेस के बारें में न बता कर गलत किया जाता है। हर परीक्षार्थी ये जानना चाहते है कि उनके अंक कैसे एडजस्ट किए जातें हैं जो उन्हें आमतौर पर नहीं बताया जाता है। जिसके वजह से छात्र अपने अंकों को लेकर हमेशा शंका में बने रहते हैं।