Story Of Tatya Tope In Hindi: तात्या टोपे या तांतिया टोपे 1857 की क्रांति के एक प्रमुख सेनानायक थे। वह नाना साहब पेशवा के विश्वस्त अनुचर, सलाहकार और अंगरक्षक थे। उन्होंने नाना के साथ मिलकर कानपुर और बिठूर में क्रांति का नेतृत्व किया था। कानपुर में हुए सती चौरा कांड के समय भी तात्या टोपे ही प्रमुख सेनानी थे। लेकिन सर कॉलिन कैंपबेल के हाथों मिली पराजय के बाद वे झांसी की तरफ निकल गए। वहाँ भी उन्होंने झांसी की रानी के साथ अपने अभियान जारी रखे, लेकिन झांसी और ग्वालियर में पराजय के बाद वह इंदौर और राजपूताना की तरफ निकल गए। लेकिन अंग्रेजों सेनाओं ने उनका पीछा करना जारी रखा। अंततः थक और हार कर उन्होंने शिवपुरी के जंगलों में शरण ली, जहाँ से उन्हें गिरफ्तार किया गया, और अभियोग चलाते हुए 18 अप्रैल 1859 को उनको फांसी दे दी गई।
Tatya Tope death anniversary
जन्म और परिवार I Birth and family of Tatya Tope
तात्या टोपे का जन्म 16 फरवरी 1814 को येवला नासिक में, मराठी देशस्थ ब्राम्हण परिवार में हुआ था। उनके पिता का नाम पांडुरंग येवलकर था और माँ का नाम रुखमाबाई था, जो उनके पिता की पहली पत्नी थीं। उनका पूरा नाम था रामचंद्र पांडुरंग येवलकर, 1818 में पेशवा की हार के बाद ब्रिटिश सरकार ने उन्हें बिठूर में निर्वासित कर दिया। उनके साथ बहुत सारे ब्राम्हण परिवार भी बिठूर आ गए और रहने लगे, इन्हीं में से एक तात्या का परिवार भी था। तात्या टोपे का विवाह जानकी बाई के साथ हुआ था, जिससे उन्हें एक पुत्री मनोरमाबाई और सखाराम नाम का एक बेटा था। कहा जाता था सखाराम साधु बन गया था।
1857 की क्रांति में अहम भूमिका | Tatya Tope’s role in the 1857 revolution
गवर्नर जनरल लॉर्ड डलहौजी की हड़प नीति से देश भर के कई रजवाड़ों में असंतोष था। अंग्रेजों ने पेशवा बाजीराव द्वितीय के मृत्यु के बाद उनके दत्तक पुत्र नानासाहब को पेशवा की पेंशन इत्यादि देने से इंकार कर दिया था। मेरठ छावनी के सैनिक विद्रोह के बाद देश भर में विद्रोह होने लगा, इसी कड़ी में कानपुर में भी भारतीय सिपाहियों ने विद्रोह किया, और जून में नाना साहब को पेशवा घोषित कर दिया। लेकिन 27 जून 1857 को कानपुर के सती चौरा कांड की घटना के बाद, गुस्साई अंग्रेज सेना ने कानपुर पर जबरजस्त घेरा डाला जिसके कारण तात्या और नाना साहब को वापस बिठूर आना पड़ा। लेकिन बिठूर में भी जब अंग्रेजी फौज ने उनका पीछा नहीं छोड़ा तो। नाना साहब और तात्याटोपे अपनी परिवार के साथ निकल गए। तात्या टोपे और नाना साहब के भतीजे राव साहब कालपी, मुरार होते हुए झांसी चले गए।
रानी झांसी के प्रमुख सहयोगी | Tatya Tope and the Queen of Jhansi
झांसी रानी लक्ष्मीबाई भी अंग्रेजों के विरुद्ध संघर्ष कर रहीं थीं, तात्या भी उनके साथ लड़ने लगे, झांसी के पतन के बाद, वह सब ग्वालियर की तरफ निकल गए। ग्वालियर की सेना की विद्रोही सेना की मदद से उन्होंने ग्वालियर पर अधिकार कर लिया। नाना के भतीजे राव साहब पेशवा के नाम पर वहाँ शासन चलाने लगे। लेकिन कर्नल होम्स द्वारा ग्वालियर के पतन के बाद तात्या टोपे टोंक की तरफ निकल गए। वहाँ की सेनाओं को भी वह विद्रोह करवाने में सफल रहे।
छापामार ढंग से चलता रहा तात्या टोपे का संघर्ष | Tatya Tope’s long struggle with the British
1857 की क्रांति का अंग्रेजों द्वारा दमन के बाद भी तात्या टोपे का अंग्रेजों साथ संघर्ष लगातार जारी ही रहा, वह छापामार प्रणाली से युद्ध करते थे। इस बीच उनकी देसी राजाओं और अंग्रेजी फौजों से संघर्ष लगातार जारी ही रहा। इसी क्रम में उन्होंने चरखारी के राजा को भी पराजित किया था। इसके बाद तात्या टोपे और राव साहब मध्यभारत में इंदौर, सिरोंज इत्यादि में भटकते रहे। लेकिन ब्रिटिश सेना ने उनका पीछा ना छोड़ा। अक्टूबर 1858 में उनको छोटा उदयपुर में अंग्रेजी फौजों से पराजित होना पड़ा। इन पराजयों के वजह से तात्या टोपे जयपुर राज्य की तरफ बढ़ गए, लेकिन वहाँ भी उनका संघर्ष होता ही रहा।
जब गिरफ्तार हुए तात्या | Tatya Tope’s arrest
दो सालों के अनवरत संघर्षों ने तात्या टोपे को थका दिया था, ना तो उनके पास अब कोई साथी और सेना थी, ना ही धन था। अब वह स्थायी होकर कुछ दिनों तक विश्राम करना चाहते थे। इसी बीच उनकी मुलाकात नरवर के राजा मान सिंह से हुई। मान सिंह 57 की क्रांति तात्या के साथ युद्ध कर चुके थे, उनकी जागीर इत्यादि ग्वालियर राज्य ने जब्त कर रखी थीं। मान सिंह से उनकी नरवर में शरण की बात हो ही रही थी। इसी बीच मुखबिर की सूचना पर अंग्रेजों ने शिवपुरी के जंगलों से तात्या टोपे को गिरफ्तार कर लिया। उनको गिरफ्तार करने वाला ब्रिटिश ऑफिसर मेजर मीड था।
तात्या टोपे को दी गई फांसी | Tatya Tope sentenced to death
उन पर महाभियोग चलाया गया। तात्या टोपे ने अभियोगों को स्वीकार किया और खुद को पेशवा का सेवक बताया। अपने बयान में कहा उन्होंने जो कुछ किया पेशवा के लिए किया था। सती चौरा कांड का मुख्य अभियुक्त मानते हुए ब्रिटिश सरकार ने उन्हें फांसी की सजा सुना दी। 18 अप्रैल 1859 को उन्हें शिवपुरी में फांसी दी गई।
मान सिंह की संदिग्ध भूमिका | Tatya Tope and Man Singh
मान सिंह नरवर के राजा थे, और उनकी जागीर इत्यादि ग्वालियर ने जब्त कर रखीं थीं। 1857 की क्रांति के समय मान सिंह ने भी तात्या टोपे के साथ विद्रोहियों का साथ दिया था। चूंकि क्रांति के बाद अंग्रेजों ने शांति स्थापित करने के लिए, कई विद्रोहियों के अपराधों को माफ कर उनकी जागीर इत्यादि पुनः वापस कर रही थी। इसी प्रयास में मान सिंह और अंग्रेजों की भी बात चल रही थी। अंग्रेजों को पता चला तात्या टोपे शिवपुरी के जंगलों में कहीं छुपे हुए थे। अंग्रेज यह भी जानते थे मान सिंह और तात्या सहयोगी हैं। इसीलिए कुछ इतिहारों द्वारा यह माना जाता है, अंग्रेजों ने उनकी जागीर वापस कर देने की बात करके मान सिंह को तात्या को पकड़वाने में मदद मांगी। लेकिन बहुत से इतिहासकार इस तथ्य को नहीं मानते हैं।
तात्या की जगह कोई और व्यक्ति फांसी पर झूला | Not Tatya Tope but someone else was hanged in his place
कुछ सिद्धांतों के अनुसार फांसी पर तात्या टोपे नहीं, बल्कि उनसे मिलता-जुलता कोई और व्यक्ति फांसी पर झूला। कुछ लोगों का दावा है तात्या ब्रिटिश सरकार के हाथ कभी आए ही नहीं। दरसल 1857 की क्रांति का अंग्रेज पूरा दमन कर चुके थे। लेकिन तात्या अभी भी उनकी पकड़ से बाहर थे, इसीलिए बड़े अफसरों के दबाव के चलते क्षेत्रिय अंग्रेज अफसरों ने मिलकर तात्या के जगह जालौन के एक व्यक्ति जो कद काठी से तात्या जैसा ही था, उसे फांसी चढ़ा दी। कुछ विद्वान यह भी दावा करते हैं, मान सिंह ने अपने मित्र को बचाने के लिए यह योजना बनाई थी। जिसके कारण तात्या एक गुप्त स्थान चले गए और एक उनके जैसा व्यक्ति ही उनके स्थान पर बैठ गया और अंग्रेजों ने उसे ही गिरफ्तार कर फांसी दे दी थी। अब जो भी हो इन सब बातों का तो कोई पुख्ता आधार है ना स्त्रोत।
लेकिन तात्या टोपे 1857 के क्रांति के प्रमुख नायक थे, जो अनवरत अंग्रेजों से संघर्ष करते रहे। कई ब्रिटिश अधिकारियों ने उनकी बहुत प्रशंसा भी की है।