Story Of Shibu Soren: शिबू सोरेन को ‘दिशोम गुरु’ क्यों कहा जाता था?

झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री शिबू सोरेन (Shibu Soren Death News) का 4 अगस्त के दिन निधन हो गया. 81 साल के सोरेन ने सोमवार की सुबह दिल्ली के सर गंगाराम अस्पताल में अंतिम सांस ली. सोरेन पिछले डेढ़ महीने से अस्पताल में भर्ती थे। उन्हें ब्रेन स्ट्रोक हुआ था। इससे उनके शरीर के बाईं ओर पैरालिसिस हो गया था। वे पिछले एक महीने से लाइफ सपोर्ट सिस्टम पर थे। न्यूरोलॉजी, कार्डियोलॉजी और नेफ्रोलॉजी के डॉक्टरों की टीम उनका इलाज कर रही थी। शिबू सोरेन लंबे समय से किडनी की बीमारी से जूझ रहे थे। वे बीते एक साल से डायलिसिस पर थे। उन्हें डायबिटीज थी और हार्ट की बायपास सर्जरी भी हो चुकी थी। बीते कुछ दिनों से उनकी हालत गंभीर बनी हुई थी।

शिबू सोरेन की जीवनी

Shibu Soren Biography Hindi: शिबू सोरेन, जिन्हें “दिशोम गुरु (Dishom Guru)” के नाम से जाना जाता था, एक प्रमुख भारतीय राजनेता और झारखंड मुक्ति मोर्चा (JMM) के संस्थापक थे। उनका जन्म 11 जनवरी 1944 को झारखंड के रामगढ़ जिले के नेमरा गाँव में एक संथाल आदिवासी परिवार में हुआ। उनके पिता, एक स्कूल शिक्षक, की हत्या तब हुई जब शिबू युवा थे, जिसके बाद उन्होंने पढ़ाई छोड़ दी और परिवार की जिम्मेदारी संभालने के लिए लकड़ी के व्यापार में काम शुरू किया। उनकी माँ ने गहने बेचकर परिवार का पालन-पोषण किया। शिबू ने दसवीं तक पढ़ाई की, लेकिन आर्थिक तंगी के कारण आगे की शिक्षा पूरी नहीं कर सके।

शिबू सोरेन को ‘दिशोम गुरु’ क्यों कहा जाता था?

Why was Shibu Soren called ‘Dishom Guru: शिबू सोरेन को “दिशोम गुरु” (Disom Guru) इसलिए कहा जाता था क्योंकि उन्होंने झारखंड के आदिवासी समुदायों के लिए एक मार्गदर्शक और प्रेरणास्रोत के रूप में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। “दिशोम” शब्द संथाली भाषा में “देश” या “क्षेत्र” को दर्शाता है, और “गुरु” का अर्थ है शिक्षक या नेता। शिबू सोरेन ने झारखंड मुक्ति मोर्चा (JMM) के माध्यम से आदिवासियों के भूमि अधिकारों, सामाजिक न्याय और सांस्कृतिक संरक्षण के लिए दशकों तक संघर्ष किया। उनका सबसे बड़ा योगदान बिहार से अलग झारखंड राज्य के गठन में था, जो 2000 में साकार हुआ। इस आंदोलन के दौरान, उन्होंने आदिवासी समुदायों को संगठित किया और उनकी आवाज को राष्ट्रीय स्तर पर पहुँचाया। उनकी नेतृत्व शैली, जमीनी स्तर पर लोगों से जुड़ाव और आदिवासी संस्कृति के प्रति समर्पण ने उन्हें “दिशोम गुरु” की उपाधि दिलाई, जो झारखंड के लोगों के लिए उनके प्रतीकात्मक और आध्यात्मिक नेतृत्व को दर्शाता है।

शिबू सोरेन का राजनीतिक सफर

Shibu Soren Political Journey In Hindi: 1960 के दशक के अंत में, शिबू सोरेन ने आदिवासी अधिकारों के लिए संघर्ष शुरू किया। अपने पिता की हत्या के बाद, वे आदिवासी समुदायों के शोषण के खिलाफ आवाज उठाने लगे। 1972 में, उन्होंने बंगाली मार्क्सवादी ट्रेड यूनियन नेता ए.के. रॉय (A.K. Roy) और कुर्मी-महतो नेता बिनोद बिहारी महतो (Binod Bihari Mahato) के साथ मिलकर झारखंड मुक्ति मोर्चा (JMM) की स्थापना की। इसका मुख्य उद्देश्य आदिवासी भूमि अधिकारों की रक्षा और बिहार से अलग झारखंड राज्य की मांग थी।

1973 में, उन्होंने शिवाजी समाज के माध्यम से आदिवासी आंदोलन को और मजबूत किया। 1980 में, वे दुमका लोकसभा सीट से स्वतंत्र उम्मीदवार के रूप में चुने गए और इसके बाद सात बार इस सीट से सांसद रहे। 2002 में वे राज्यसभा के लिए चुने गए और 2020 तक इस पद पर रहे।

शिबू सोरेन की उपलब्धियाँ

Shibu Soren Achievements: शिबू सोरेन ने कई महत्वपूर्ण उपलब्धियाँ हासिल कीं। उनकी अगुवाई में JMM ने 2000 में बिहार से अलग झारखंड राज्य के गठन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उन्होंने आदिवासी समुदायों के लिए भूमि अधिकार, सामाजिक न्याय और सांस्कृतिक संरक्षण के लिए कई आंदोलन चलाए। वे आठ बार लोकसभा सांसद और दो बार राज्यसभा सांसद रहे, जिससे आदिवासी समुदाय को राष्ट्रीय मंच पर मजबूत आवाज मिली। उन्होंने JMM को एक मजबूत क्षेत्रीय पार्टी बनाया, जो झारखंड की राजनीति में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। वे तीन बार झारखंड के मुख्यमंत्री रहे: 2005 में 10 दिन, 2008-2009 और 2009-2010 तक। इसके अलावा, वे 2004, 2004-2005 और 2006 में केंद्रीय कोयला मंत्री रहे।

शिबू सोरेन से जुड़े विवाद

Shibu Soren Controversy: शिबू सोरेन का राजनीतिक जीवन विवादों से भरा रहा। 1975 के चिरुडीह नरसंहार (Chirudih Massacre)और 1994 में उनके निजी सचिव शशिनाथ झा की हत्या के मामले (Shashinath Jha’s murder case) में उन पर आरोप लगे। 2006 में, उन्हें शशिनाथ झा हत्याकांड में दोषी ठहराया गया और आजीवन कारावास की सजा मिली, लेकिन 2007 में दिल्ली उच्च न्यायालय ने उन्हें बरी कर दिया। 1993 में नरसिम्हा राव सरकार को बचाने के लिए JMM के साथ कथित सौदे का मामला भी चर्चा में रहा।

एक प्रसिद्ध घटना 1975 की है, जब आपातकाल के दौरान वे भूमिगत हो गए और एक जंगल आश्रम से अपनी गतिविधियाँ संचालित करते रहे। जेल में रहते हुए भी उन्होंने कैदियों के लिए छठ पूजा का आयोजन किया, जो उनकी लोकप्रियता को दर्शाता है।

शिबू सोरेन झारखंड की राजनीति और आदिवासी सशक्तिकरण के प्रतीक थे। उनकी विरासत JMM और उनके बेटे हेमंत सोरेन के माध्यम से जीवित रहेगी। उनके निधन से झारखंड और भारतीय राजनीति में एक युग का अंत हुआ है।

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