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Vicky Kaushal की Sam Bahadurदेखी? अब फील्ड मार्शल Sam Manekshaw की कहानी पढ़ लो

The Story Of Sam Bahadur

The Story Of Sam Bahadur

Story Of Sam Manekshaw In Hindi: विक्की कौशल की नई फिल्म सैम बहादुर (Sam Bahadur) भारतीय सेना के सबसे धाकड़ अफसर फील्ड मार्शल सैम मानेकशॉ (Field Marshal Sam Manekshaw) पर आधारित है.

फील्ड मार्शल सैम मानेकशॉ की कहानी: भारतीय सेना के सबसे बहादुर और महान सैन्य अधिकारी सैम मानेकशॉ (Sam Manekshaw) की बायोग्राफी ‘सैम बहादुर’ (Sam Bahadur) रिलीज हो गई है. इस फिल्म में विक्की कौशल (Vicky Kaushal) लीड रोल निभा रहे हैं. इस फिल्म में विक्की का लुक हूबहू पूर्व सेना प्रमुख सैम मानेकशॉ जैसा लग रहा है.

पहले Sam Bahadur Teaser देखें

Sam Bahadur फिल्म की निर्देशक मेघना गुलजार (Meghna Gulzar) हैं. विक्की कौशल ने फील्ड मार्शल सैम मानेकशॉ के किरदार के साथ न्याय करने के लिए बड़ी मेहनत की है. ये फिल्म विक्की के फ़िल्मी करियर की सबसे बेस्ट मूवी साबित हो सकती है. इस फिल्म का BGM बहुत तगड़ा है. फिल्म की चर्चा तो होती रहेगी मगर हम उस महान शख्शियत की बात करने वाले हैं जिनपर ‘सैम बहादुर’ फिल्म आधारित है.

कौन थे सैम मानेकशॉ

Who Was Sam Manekshaw: फील्ड मार्शल सैम मानेकशॉ का पूरा नाम ‘सैम होर्मसजी फ्रामजी जमशेदजी मानेकशॉ’ (Sam Hormusji Framji Jamshedji Manekshaw) था. वे भारतीय सेना में ‘फील्ड मार्शल’ का टाइटल पाने वाले पहले सैन्याधिकारी थे. INDO-PAK War 1971 में भारतीय सेना की कमान सैम मानेकशॉ के हाथ में थी.

सैम मानेकशॉ की जीवनी

Biography Of Sam Manekshaw: इंडियन आर्मी में फील्ड मार्शल सैम मानेकशॉ का सफर शानदार था. लगभग 4 दशक तक वे देश की सेवा में तैनात रहे. अपने आर्मी करियर में उन्होंने 5 युद्ध लड़े. 1969 में सैम मानेकशॉ इंडियन आर्मी के 8वें सेना प्रमुख बने थे. बांग्लादेश को पाकिस्तान के कब्जे से आजाद करने में फील्ड मार्शल की बहुत बड़ी भूमिका थी. कायदे से बांग्लादेशियों को Sam Manekshaw को पूजना चाहिए।

सैम मानेकशॉ का जन्म 3 अप्रैल 1914 में अमृतसर के पंजाब में हुआ था. वे पारसी परिवार से ताल्लुख रखते थे. उनकी स्कूलिंग शेरवुड कॉलेज नैनीताल और ग्रैजुएशन हिंदू सभा कॉलेज अमृतसर, पंजाब और भारतीय सैन्य अकादमी देहरादून से हुई. सैम बहादुर के पिता होर्मिज़द मानेकशॉ था जो पेशे थे डॉक्टर थे और उनकी मां का नाम हिल्ला था. दोनों के 6 बच्चे थे, जिनमे से सैम पांचवी संतान थे.

सैम बहादुर की कहानी

Story Of Sam Bahadur: सैम मानेकशॉ अपने पिता की तरफ ही एक डॉक्टर बनना चाहते थे. उन्हें मेडिसिन की पढाई करने के लिए लंदन जाना था. लेकिन उनके पिता ने भारत में रहकर ही पढाई करने को कहा. सैम अपने पिता के फैसले से नाराज हो गए और सेना में शामिल हो गए.

सैम मानेकशॉ ने देहरादून भारतीय सैन्य अकादमी (IMA) का एमिशन टेस्ट दिया और पास हो गए. 1 अक्टूबर 1931 को उनका सिलेक्शन हो गया और 4 फरवरी 1934 को पास होने के बाद वे ब्रिटिश भारतीय सेना में सेकंड लेफ्टिनेंट बन गए.

सैम मानेकशॉ ने आजादी से पहले और आजादी के बाद तक 40 साल भारतीय सेना की सेवा की, इस दौरान उन्होंने पाकिस्तान से 3 और चीन से 1 युद्ध किया। 1969 में उन्हें भारतीय सेना का प्रमुख बना दिया गया. उन्होंने 1971 में भारत-पाकिस्तान युद्ध में सेना का नेतृत्व किया था. तब उन्हें भारत का पहला फील्ड मार्शल बनाया गया था.

सैम मानेकशॉ को दूसरी बटालियन और उसके बाद The Royal Scot, फिर चौथी बटालियन और इसके बाद 12वीं फ्रंटीयर फ़ोर्स रेजिमेंट में कमीशन दिया था.

जापानियों से भी युद्ध लड़ा

World War 2 के दौरान फील्ड मार्शल सैम मानेकशॉ अपनी सेना के साथ बर्मा गए थे. जापानी सेना के सामने ब्रिटिश फ़ोर्स के 50% सिपाही मारे गए. फिर भी सैम ने हार नहीं मानी और जापानी सेना का डटकर सामना किया और जीत भी हासिल की. 1942 से देश की आजादी और विभाजन तक उन्होंने सेना के लिए कई महत्वपूर्ण काम किए.

1947 में विभाजन के बाद सैम मानेकशॉ की मूल इकाई ’12वीं फ्रंटियर फ़ोर्स रजिमेंट’ पाकिस्तानी सेना का हिस्सा बन गई. जिसके बाद सैम को 16वीं पंजाब रेजिमेंट में नियुक्त किया गया. इसके बाद उन्हें तीसरी बटालियन और 5वीं गोरखा राइफल्स में भेजा गया.

1947-48 में जम्मू-कश्मीर अभियान के वक़्त उन्होंने अपनी युद्ध की दक्षता दिखाई। एकइंफ्रैंट्री ब्रिगेडियर के बाद उन्हें महू में इंफ्रैंट्री का कमांडेंट बनाया गया और इसके बाद उन्हें 8वीं गोरखा राइफल्स और उसके बाद 61वीं कैवेलरी कर्नल बनाया गया.

सैम बहादुर जम्मू-कश्मीर में डिविजनल कमांडेंट बने और इसके बाद डिफेन्स सर्विसेज स्टाफ कॉलेज में कमांडेंट नियुक्त हुए.

रक्षा मंत्री से मतभेद थे

डिफेन्स सर्विसेज स्टाफ कॉलेज में कमांडेंट बनने के बाद सैम बहादुर का तत्कालीन रक्षा मंत्री वीके कृष्ण मेनन से मतभेद हो गया. रक्षा मंत्री ने कहने पर सैम के खिलाफ ‘कोर्ट ऑफ़ इंक्वायरी’ का आदेश दिया गया और जाँच के बाद उन्हें दोषी भी पाया गया. इन सभी विवादों के बीच, जब चीन ने भारत पर हमला किया और उन्हें लेफ्टिनेंट जनरल के रूप में पदोन्नत कर दिया गया और सेना की चौथी वाहनी की कमान संभालने के लिए तेजपुर भेज दिया गया.

1963 में फील्ड मार्शल को सेना के कमांडर के पद पर प्रमोट किया गया और पश्चिमी कामन संभालने की जिम्मेदारी सौंपी गई. 1964 में उन्हें पूर्वी सेना के जीओसी-इन-सी के रूप में शिमला से कोलकाता भेज दिया गया. इस दौरान उन्होंने नागालैंड से आतंकी गतिविधियों का पूरी तरह सफाया कर दिया। इसी सफलता के चलते भारत सरकार ने साल 1968 एम् सैम बहादुर को पद्म भूषण से सम्मानित किया था.

सैम मानेकशॉ और 1971 का युद्ध

Sam Manekshaw 1971 War Story: बांग्लादेश से पाकिस्तान को अलग करने की रणनीति तैयार हो रही थी. तत्कालीन पीएम इंदिरा गांधी ने आर्मी चीफ सैम मानेकशॉ को बुलाया और पुछा ‘क्या तुम तैयार हो?’ लेकिन सैम ने इंदिरा गांधी को मुंह पर मना करते हुए कहा- ‘मैं तय करूंगा की सेना युद्ध के लिए कब जाएगी’

दिसंबर 1971 में पाकिस्तान के हमला करने के बाद भारतीय सेना ने जवाबी हमला क्या और युद्ध शुरू होने के 15 दिन बाद ही पाकी सेना ने हथियार डाल दिए. तब भारतीय सेना ने 90,000 पाकिस्तानी सैनिकों को बंधक बना लिया।

1972 में सैम मानेकशॉ को पदम् विभूषण से नवाजा गया. 1 जनवरी 1973 को उन्हें फील्ड मार्शल का पद दिया गया. 15 जनवरी 1973 के दिन मानेकशॉ सेवानिवृत हो गए और अपनी पत्नी के साथ कुन्नूर में जाकर बस गए. मानेकशॉ की मृत्यु 94 वर्ष की उम्र 27 जून 2008 को निमोनिया के चलते वेलिंग्टन (तमिलनाडु) के आर्मी हॉस्पिटल में हुई.

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