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Story Of Rana Sanga In Hindi: राणा सांगा की कहानी

राणा सांगा का इतिहास/ History Of Rana Sanga In Hindi: मध्यकालीन भारत के इतिहास में राणा संग्राम सिंह (Rana Sangram Singh), जिन्हें राणा सांगा (Rana Sanga)के नाम से जाना जाता है, एक ऐसे योद्धा थे जिनकी वीरता की गूंज आज भी राजस्थान के पहाड़ों में सुनाई देती है। लेकिन मार्च 2025 में, उनके नाम पर एक नया बवाल मच गया। समाजवादी पार्टी के सांसद रामजी लाल सुमन (Ramji Lal Suman On Rana Sanga) ने राज्यसभा में दावा किया कि राणा सांगा ने मुगल बादशाह बाबर (Did Rana Sanga Took Help Of Babur) को भारत बुलाया था और उन्हें “गद्दार” (Was Rana Sanga A Traitor) करार दिया। इस बयान ने राजपूत समुदाय, खासकर करणी सेना, को आक्रोशित कर दिया। विरोध प्रदर्शन हुए, सुमन के खिलाफ इनाम घोषित हुए, और यह सवाल उठा कि क्या वास्तव में राणा सांगा ने ऐसा किया था? क्या वे गद्दार कहलाने के लायक हैं? आइए, उनकी कहानी को तारीखों और तथ्यों के साथ फिर से देखें और इस विवाद का सच जानें।


राणा सांगा की जीवनी

Rana Sanga Biography In Hindi: राणा सांगा का (Rana Sanga Birth) जन्म 12 अप्रैल 1482 को मेवाड़ के मालवा क्षेत्र में हुआ था। वे सिसोदिया राजवंश के राणा रायमल (Rana Raimal) के सबसे छोटे पुत्र थे। उनकी माँ रानी रतन कुंवर थीं, और उनके दादा महाराणा कुम्भा (Maharana Kumbha) एक महान शासक थे। सांगा का बचपन खतरे और षड्यंत्रों से भरा था। उनके बड़े भाइयों—पृथ्वीराज और जयमल—ने सत्ता के लिए उन पर हमला किया, जिसमें सांगा की एक आँख चली गई। वे जान बचाकर अजमेर भागे, जहाँ कर्मचंद पंवार ने उन्हें शरण दी।


राणा सांगा की कहानी

Rana Sanga Ki Kahani: सांगा के भाइयों की हत्या और युद्ध में मृत्यु के बाद, मई 1509 में राणा रायमल (Rana Raimal) ने उन्हें मेवाड़ का शासक बनाया। 27 साल की उम्र में सांगा ने सिंहासन संभाला। उस समय मेवाड़ चारों ओर से शत्रुओं से घिरा था. दिल्ली की सल्तनत, मालवा, और गुजरात। सांगा ने कूटनीति और युद्ध कौशल से अपने राज्य को मजबूत किया। उनकी तलवार का वजन 20 किलो था, जो उनकी शक्ति का प्रतीक था।


राणा सांगा का पहला युद्ध

Rana Sanga First Battle: 1517 में सांगा का पहला बड़ा युद्ध दिल्ली के सुल्तान इब्राहिम लोदी (Rana Sanga Ibrahim Lodi) के खिलाफ हुआ ”खतौली का युद्ध”। इसमें उनका बायाँ हाथ कट गया, और एक तीर से पैर घायल हो गया, जिससे वे लंगड़े हो गए। फिर भी, सांगा ने जीत हासिल की और लोदी के बेटे को बंदी बनाया, जिसे बाद में उदारता से रिहा कर दिया। इस जीत ने उनकी ख्याति बढ़ाई।


राणा सांगा का दूसरा युद्ध

1518 में इब्राहिम लोदी ने फिर हमला किया। सांगा ने बाड़ी में उसकी सेना को हराया। लोदी की हार इतनी शर्मनाक थी कि उसने मेवाड़ पर दोबारा हमला करने की हिम्मत नहीं की। सांगा ने अपनी सीमाओं को और मजबूत किया।


गागरोन का युद्ध (1519)

1519 में सांगा ने मालवा के सुल्तान महमूद खिलजी (Mehmood Khilji) द्वितीय के खिलाफ गागरोन का युद्ध लड़ा। गुजरात के सुल्तान मुजफ्फर शाह (Sultan Muzafar Shah) ने महमूद की मदद की, लेकिन सांगा ने मेदिनी राय और सिलवाडी के साथ मिलकर उसे हरा दिया। महमूद को बंदी बनाया गया, लेकिन सांगा ने उसे उसका राज्य लौटा दिया। यह उनकी उदारता का प्रमाण था।


राणा सांगा और बाबर का युद्ध

Battle Of Rana Sanga And Babur: 1526 में बाबर ने पानीपत की पहली लड़ाई में इब्राहिम लोदी को हराकर दिल्ली पर कब्जा किया। सांगा उसे विदेशी आक्रमणकारी मानते थे और दिल्ली व आगरा पर दावा करना चाहते थे। 21 फरवरी 1527 को बयाना में सांगा ने बाबर को हराया। बाबर के सैनिकों का हौसला टूट गया, लेकिन सांगा ने तुरंत आक्रमण नहीं किया, जिसे उनकी रणनीतिक चूक माना जाता है।


राणा सांगा का अंतिम युद्ध

Last Bettle Of Rana Sanga: 17 मार्च 1527 को खानवा में सांगा और बाबर फिर आमने-सामने आए। सांगा की सेना में 80,000 सैनिक थे, जिसमें कई राजपूत सरदार, महमूद लोदी, और हसन खाँ मेवाती शामिल थे। शुरू में सांगा हावी रहे, लेकिन बाबर की तोपें और तुलगुमा रणनीति ने बाजी पलट दी। सांगा को 80 घाव लगे, और वे गंभीर रूप से घायल हो गए। पृथ्वीराज कछवाह ने उन्हें कालपी ले जाकर बचाया। इस हार ने बाबर को विजेता बना दिया।


राणा सांगा की मृत्य कैसे हुई

How Rana Sanga Died: खानवा के बाद सांगा ने हार नहीं मानी। वे बाबर से फिर लड़ने की तैयारी कर रहे थे, लेकिन उनके कुछ सामंतों को यह आत्मघाती लगा। 30 जनवरी 1528 को कालपी में इन सामंतों ने सांगा को जहर दे दिया। उनकी मृत्यु हो गई, और उनका शव मांडलगढ़ ले जाया गया। इस तरह, एक महान योद्धा का अंत अपने ही लोगों के हाथों हुआ।


क्या राणा सांगा ने बाबर को बुलाया?

Relation Between Rana Sanga And Babur: अब सवाल यह है कि क्या सांगा ने बाबर को भारत बुलाया था, जैसा कि रामजी लाल सुमन ने दावा किया? इस दावे का आधार बाबर की आत्मकथा “बाबरनामा” है। बाबर लिखता है कि सांगा ने उसे इब्राहिम लोदी के खिलाफ मदद के लिए संदेश भेजा था। लेकिन क्या यह सच है? आइए तथ्यों को देखें:

  1. सांगा और लोदी का इतिहास: सांगा ने इब्राहिम लोदी को 1517 और 1518 में दो बार हराया था। इतिहासकार सतीश चंद्रा लिखते हैं कि सांगा ने लोदी को 18 बार युद्ध में परास्त किया। अगर सांगा इतने शक्तिशाली थे, तो उन्हें बाबर जैसे विदेशी की मदद क्यों लेनी पड़ती?
  2. बाबर का दावा: “बाबरनामा” में बाबर कहता है कि सांगा का दूत उसके पास आया था, लेकिन उसने यह भी लिखा कि सांगा ने बाद में वादा तोड़ दिया। इतिहासकार जी.एन. शर्मा और आर.सी. मजूमदार इसे बाबर का प्रचार मानते हैं। बाबर अपनी जीत को वैध ठहराने के लिए यह दावा कर सकता था। कोई स्वतंत्र स्रोत इसकी पुष्टि नहीं करता।
  3. सांगा की नीति: सांगा का लक्ष्य राजपूताना को एकजुट कर दिल्ली पर कब्जा करना था। वे विदेशी शासकों के खिलाफ थे। खानवा में उनकी सेना में हिंदू-मुस्लिम एकता थी—महमूद लोदी और हसन खाँ उनके साथ थे। यह दर्शाता है कि सांगा भारत से ही सहयोगी ढूंढ रहे थे, न कि बाहर से।
  4. समकालीन साक्ष्य: फारसी इतिहासकार निजामुद्दीन अहमद और अबुल फजल ने सांगा को बाबर का कट्टर दुश्मन बताया है। “अकबरनामा” में सांगा को एक महान योद्धा कहा गया, जिसने मुगलों को कड़ी चुनौती दी। बाबर को बुलाने का कोई जिक्र इनमें नहीं है।
  5. तर्कसंगत विश्लेषण: अगर सांगा ने बाबर को बुलाया होता, तो खानवा में वे उससे क्यों लड़ते? बयाना में सांगा की जीत और खानवा में उनकी पूरी ताकत से लड़ाई यह साबित करती है कि वे बाबर को हराना चाहते थे, न कि उसका साथ देना।

बाबर का दावा एकतरफा है और संदिग्ध लगता है। इतिहासकार इसे सांगा के खिलाफ कोई ठोस सबूत नहीं मानते। सांगा ने बाबर को नहीं बुलाया था; यह बाबर की रणनीति का हिस्सा हो सकता है।


क्या राणा सांगा गद्दार थे?

Was Rana Sanga A Traitor: “गद्दार” शब्द सांगा पर लागू नहीं होता। उन्होंने अपने जीवन में एक आँख, एक हाथ, और एक पैर खोया, फिर भी मेवाड़ की रक्षा के लिए लड़ते रहे। वे राजपूताना के सबसे बड़े योद्धा थे, जिन्होंने मालवा, गुजरात, और लोदी को हराया। बाबर ने खुद “बाबरनामा” में लिखा कि सांगा उत्तर भारत के सबसे शक्तिशाली शासक थे। उनकी हार खानवा में तकनीकी कमजोरी और विश्वासघात का नतीजा थी, न कि देशद्रोह का। सांगा ने अपने राज्य और सम्मान के लिए आखिरी साँस तक संघर्ष किया। उन्हें “गद्दार” कहना ऐतिहासिक तथ्यों का अपमान है।

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